– अपना व्यवस्थित कार्यालय नहीं
– चार वर्षो से मौर्यालोक परिसर में चल रहा है निगम का मुख्यालय
– पुराने कार्यालय में बनते हैं सिर्फ जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र
पटना : शहर को सजाने-संवारने की जिम्मेवारी नगर निगम की होती है, लेकिन खुद उसकी की हालत खस्ता है. वर्ष 1952 में स्थापित पटना नगर निगम अब तक अपना बेहतर कार्यालय नहीं बना सका है.
वर्तमान में भी नगर निगम का मुख्यालय पीआरडीए (विघटन) कार्यालय से संचालित किया जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि जो खुद अपना कार्यालय बेहतर नहीं कर सकता, वह शहर को कैसे चकाचक कर सकता है.
वर्ष 2009 से पहले नगर निगम का मुख्यालय जीपीओ गोलंबर के समीप अपने भूखंड पर स्थित था, लेकिन उसका रख-रखाव और नियमित सौंदर्यीकरण का कार्य नहीं होने से भवन जजर्र होता चला गया. इसके बाद धीरे-धीरे निगम की शाखाएं मौर्यालोक स्थित पीआरडीए कार्यालय में शिफ्ट होती चली गयीं. निगम मुख्यालय भवन में सिर्फ जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र बनाने का ही काम होता है.
पार्षदों के लिए भी बैठने की जगह नहीं : जीपीओ गोलंबर के समीप या पीआरडीए के कार्यालय में चल रहे निगम मुख्यालय में वार्ड पार्षदों को बैठने के लिए न तो जगह है और न ही निगम बोर्ड या स्थायी समिति की बैठक के लिए सभाकक्ष. यही कारण है कि निगम की ओर से बोर्ड की बैठक एसके मेमोरियल हॉल, होटल या खुद के सामुदायिक भवन में आयोजित की जाती है.
यही नहीं, मौर्यालोक परिसर में पार्किग स्थल मेयर, डिप्टी मेयर और नगर आयुक्त के लिए चिह्न्ति हैं, जबकि 70 वार्ड पार्षद निगम मुख्यालय आते हैं. वार्ड पार्षदों के लिए पार्किग की कोई व्यवस्था नहीं है. यह वार्ड पार्षद अपने वाहनों को परिसर में जैसे-तैसे लगा कर कार्यालय में चले जाते हैं. अधिकारियों में केवल नगर आयुक्त को छोड़ कर किसी के लिए भी पार्किग स्थल नहीं है.