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63 करोड़ की पोस्टल सामग्री चोरी की सीबीआइ जांच शुरू
पटना : पटना जंकशन पर वर्ष 1994 से लेकर 2008 तक लगातार करोड़ों रुपये की पोस्टल साम्रगी के चोरी मामले की जांच सीबीआइ ने शुरू कर दी है. पटना जंकशन पर पोस्टल आॅर्डर, केवीपी, एनएससी, इंदिरा विकास समेत अन्य पोस्टल सामग्रियों की चोरी के दस मामले दर्ज किये गये थे. इसमें करीब 63 करोड़ की […]
पटना : पटना जंकशन पर वर्ष 1994 से लेकर 2008 तक लगातार करोड़ों रुपये की पोस्टल साम्रगी के चोरी मामले की जांच सीबीआइ ने शुरू कर दी है. पटना जंकशन पर पोस्टल आॅर्डर, केवीपी, एनएससी, इंदिरा विकास समेत अन्य पोस्टल सामग्रियों की चोरी के दस मामले दर्ज किये गये थे.
इसमें करीब 63 करोड़ की सामग्री चोरी हुई थी. इस तरह के मामले पटना जंकशन के साथ पूरे देश भर में हुए थे. उन राज्यों में भी इससे संबंधित मामले दर्ज हैं. इधर पटना रेल पुलिस पुलिस ने इस कांड से संबंधित कागजात व अब तक के अनुसंधान के सारे दस्तावेज सीबीआइ को सौंप दिया.
दरअसल पटना जंकशन से इतनी बड़ी मात्रा में पोस्टल सामग्री की चोरी की घटना से सरकार भी सकते में थी.
यह घटना पहली बार 1994 में सामने आयी और तब पटना जंकशन जीआरपी में केस नंबर 241/94 दर्ज किया गया. इस मामले के प्रकाश में आने के बाद भी चोरी की घटना नहीं रुकी. फिर 1998 में इस तरह की घटना हुई.
2001 में हुई थीं आधा दर्जन घटनाएं : वर्ष 2001 में तो हद हो गयी. उस साल छह बार चोरी की घटनाएं हुईं.इन मामलों की भी प्राथमिकी पटना जंकशन जीआरपी में दर्ज की गयी. कुछ दिनों तक मामला शांत रहा और फिर वर्ष 2007 व 2008 में करोड़ों की पोस्टल सामग्री पटना जंकशन से चोरी चली गयी. एनएससी, केवीपी व अन्य पोस्टल सामग्रियों को नासिक से रेल के माध्यम से पटना भेजा गया था.
जीआरपी से बिहार के संबंधित डाकघरों में सामग्रियों को भेजा जाना था. लेकिन, पटना जंकशन पर आने के बाद पता चला कि काफी मात्रा में पोस्टल सामग्रियां गायब हैं. गायब पोस्टल सामग्रियां 63 करोड़ की थीं. रेल एसपी ने कहा : इस संबंध में रेल एसपी पीएन मिश्रा ने बताया कि पटना जंकशन जीआरपी में अब तक इससे संबंधित दस मामले दर्ज किये गये थे और सभी मामलों के दस्तावेज सीबीआइ को सौंप दिये गये हैं.
ठेकेदारों ने सिक्यूरिटी मनी में किया उपयोग
पोस्टल सामग्री के गायब होने की घटना को गंभीरता से नहीं लिया गया. लेकिन, बिहार व झारखंड में कई ऐसे ठेकेदारों का नाम सामने आया, जिसने विभागों में टेंडर देने के लिए इसी चोरी की पोस्टल सामग्री का इस्तेमाल सिक्यूरिटी मनी के रूप में किया. चूंकि केवीपी, एनएससी व इंदिरा विकास पत्र सादे भेजे गये थे, ऐसे में जालसाजी से विभिन्न डाकघरों की मुहर लगाने के बाद उसे विभाग में जमा कर दिया था.
टेंडर लेने के लिए चोरी के एनएससी व केवीपी के कागजात इस्तेमाल की जानकारी मिलने के बाद पुलिस सकते में आ गयी. अनुसंधान में पता चला कि पोस्टल सामग्री की चोरी क्यों और किस उद्देश्य से की गयी थी.
हालांकि इस नेशनल रैकेट में पुलिस को ठोस सुराग हाथ नहीं लगा. ठेकेदारों ने पुलिस को केवल इतनी जानकारी दी कि उन्होंने कम दामों में खरीदी थी. किससे और कहां से ली, इसकी जानकारी वे नहीं दे पाये. तब सीबीआइ से मामले की जिम्मेवारी लेने के लिए सरकार व रेल पुलिस के स्तर से वर्ष 2014 से प्रयास शुरू किया गया. इसके बाद सीबीआइ को इसकी जिम्मेवारी मिली.
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