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स्कूली वाहन में नहीं चलते टीचर

स्कूली वाहन में नहीं चलते टीचर फ्लैगसीबीएसइ के नियम ताक पर रख चलती हैं स्कूल बसें संवाददाता, पटनापटना के प्राइवेट स्कूलों के लिए कई नियम बनाये, लेकिन उनका पालन नहीं हो पा रहा है. इसी में एक नियम है कि स्टूडेंट्स को स्कूल ले जाने और वहां से लाने के दौरान बसों में टीचर होना […]

स्कूली वाहन में नहीं चलते टीचर फ्लैगसीबीएसइ के नियम ताक पर रख चलती हैं स्कूल बसें संवाददाता, पटनापटना के प्राइवेट स्कूलों के लिए कई नियम बनाये, लेकिन उनका पालन नहीं हो पा रहा है. इसी में एक नियम है कि स्टूडेंट्स को स्कूल ले जाने और वहां से लाने के दौरान बसों में टीचर होना जरूरी है. सीबीएसइ और आइसीएसइ बोर्ड की मानें, तो हर स्कूल की बसों में शिक्षकों का होना जरूरी है. हर बस में एक टीचर होंगे, जिनकी देखरेख में स्टूडेंट्स स्कूल आयेंगे-जायेंगे. स्कूल से आयेंगे और छुट्टी के समय घर जायेंगे. लेकिन इस नियम का पालन अधिकतर स्कूलों में नहीं होता है. बच्चों का स्कूल से घर और घर से स्कूल तक का सफर बसे के ड्राइवर और कन्डक्टर के भरोसे ही तय करना पड़ता है.रास्ते में देखने वाला कोई नहीं स्कूल की छुट्टी के पहले और बाद एक से दो घंटे का ऐसा समय होता है, जब स्टूडेंट अकेले होते हैं. सुबह में बस स्टॉपेज पर तो अभिभावक बच्चे को बस में चढ़ा देते हैं, लेकिन उसके बाद स्कूल तक जाने में बस में टीचर नहीं होते हैं. छुट्टी के बाद भी कुछ ऐसा ही होता है. स्कूल बस किस रास्ते से जा रही है, इसकी जानकारी न तो अभिभावकों को होती है और न ही स्कूल प्रशासन को. अगर किसी बस को आने में देरी हो जाये, तो अभिभावक को ड्राइवर के अलावा किसी से कांटेक्ट का ऑप्शन नहीं होता है. शिक्षक रहने से बच्चे रहेंगे अनुशासन में अगर स्कूल बस में टीचर के साथ स्टूडेंट्स को घर भेजा जायेगा, तो स्कूल से लेकर रास्ते भर तक बच्चे अनुशासन में रहेंगे. ऐसा नहीं होने से स्कूली बस में बच्चों के बीच आपसी लड़ाई-झगड़े भी काफी होते हैं. इसके अलावा छुट्टी के बाद स्टूडेंट्स के ऊपर रोक-टोक करनेवाला भी कोई नहीं होता है. एक-दो स्कूलों को छोड़ कर तमाम स्कूल की बस प्राइवेट हैं. ऐसे में कोई भी स्कूल इस ओर ध्यान नहीं देता है. बच्चे कैसे आ रहे हैं, इसकी कोई जिम्मेवारी नहीं लेता है.- स्कूल का अपना बस तो जाते हैं टीचर जिन स्कूलों की अपना स्कूल बस है, उस बस में स्कूल के एक या दो टीचर बच्चों के साथ जाते हैं. लेकिन अधिकतर स्कूलों के पास अपना स्कूल बस नहीं है, ऐसे में प्राइवेट स्कूल बस पर टीचर नहीं जाते हैं. अगर डॉन बास्को की बात करें, तो स्कूल के पास अपनी तीन-चार बसें हैं, इन बसों पर टीचर स्टूडेट के साथ जाते हैं. बाकी बसों पर टीचर नहीं होते हैं. कुछ ऐसा ही हाल बाल्डविन एकेडमी और सेंट डॉमिनिक सोवियोज के साथ भी है. टीचर के स्कूल बस में नहीं होने पर ये सारी होती है दिक्कतें – ड्राइवर के भरोसे रहते है स्टूडेंट – कुछ स्टूडेंट की बस में तानाशाही चलती है – बस में बच्चे गाली या लड़ाई और झगड़े भी करते हैं- ड्राइवर काे रोकने-टोकने वाला कोई नहीं होता है- बच्चे जहां-तहां सड़कों पर उतर जाते हैं – बस का गेट खुला रहता हैकोटस्कूल की यह जिम्मेवारी है. बच्चे कैसे स्कूल आयेंगे और छुट्टी के बाद कैसे जायेंगे. हम इसके लिए सोमवार को डीएम से बात करेंगे. बच्चे की सुरक्षा सभी की जिम्मेवारी है. अधिकांश स्कूल में इसका पालन नहीं होता है. – डीके सिंह, अध्यक्ष, बिहार राज्य प्राइवेट चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन स्कूल के पास तमाम ड्राइवर के मोबाइल नंबर होते हैं. साथ ही स्कूल के पास बस के रूट की भी पूरी जानकारी रहती है. जहां तक प्राइवेट स्कूल बस की सुविधा की बात है, तो उसके लिए बस मालिक पर निर्भर रहना पड़ता है. – राजीव रंजन सिन्हा, प्रिंसिपल, बाल्डविन एकेडेमी\\\\\\\\B

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