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पारदर्शी हो नियुक्ति प्रक्रिया

न्यायपालिका जजों की नियुक्ति को बेहतर परख सकती है, आमलोग नहीं पांचवीं प्रधान ज्वाला प्रसाद मेमोरियल व्याख्यान में उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति पर हुई बहस पटना : उच्च न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में जजों की नियुक्ति में काॅलेजियम सिस्टम की उपयोगिता पर शनिवार को तीखी बहस हुई. व्याख्यान का विषय डू द गवर्नमेंट हैव […]

न्यायपालिका जजों की नियुक्ति को बेहतर परख सकती है, आमलोग नहीं
पांचवीं प्रधान ज्वाला प्रसाद मेमोरियल व्याख्यान में उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति पर हुई बहस
पटना : उच्च न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में जजों की नियुक्ति में काॅलेजियम सिस्टम की उपयोगिता पर शनिवार को तीखी बहस हुई. व्याख्यान का विषय डू द गवर्नमेंट हैव एनी रोल इन जूडिशियल अप्वाइंटमेंट था. विषय प्रवेश कराते हुए प्रधान ज्वाला प्रसाद के पुत्र डाॅ अजीत प्रधान ने उनके जीवन की कई सारी बातों का जिक्र किया.
पांचवीं प्रधान ज्वाला प्रसाद मेमोरियल व्याख्यान के तहत तारामंडल सभागार में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस संतोष हेगड़े ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट में जजों की बेहतर बहाली न्यायपालिका ही कर सकती है.
व्याख्यानमाला में जदयू सांसद पवन कुमार वर्मा, सुप्रीम कोर्ट में एडिशनल सॉलीसीटर जेनरल पिंकी आनंद, पटना हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता विनोद कुमार कंठ, वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर व पटना कालेज के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी ने हिस्सा लिया.
न्यायपालिका कभी चेक और बैलेंस की बात नहीं करती : जस्टिस संतोष हेगड़े ने कहा कि न्यायपालिका के सामने जो गुजरता है, वह उसे देखती है. न्यायपालिका कभी चेक और बैलेंस की बात नहीं करती. उच्च न्यायपालिका में बहाली को लेकर न्यायपालिका यह चाहती थी कि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी हो और इसमें सुधार आये.
उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति में न्यायपालिका को बाहर कर देने की बात समझ में नहीं आती है. उन्होंने कहा कि जजों के मामले में न्यायपालिका का दृष्टिकोण साफ रहा है. दो जजों पर न्यायपालिका ने महाभियोग लगाया और उनकी सुविधाएं खत्म कीं. लेकिन, जब यह बात विधायिका के पास गयी, तो बात बदल दी गयी. इसलिए जब न्यायपालिका पर विधायिका भरोसा नहीं कर सकती, तो हम कैसे विधायिका पर भरोसा कर सकते हैं. नि:संदेह जजों की नियुक्ति में कुछ पावर का अतिरिक्त इस्तेमाल हुआ है, इसलिए इसमें सुधार की राय मांगी गयी थी.
न्यायपालिका जजों की नियुक्ति की बेहतर परख सकती है, पर आम लोग नहीं. इसके पहले सांसद पवन कुमार वर्मा ने कहा कि संसद ने बड़ी मुश्किल से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक को पारित किया था, लेकिन इसे रिजेक्ट कर दिया गया. उन्होंने जजों की नियुक्ति की बेहतर प्रक्रिया की वकालत की.
समन्वय से रास्ता निकालना चाहिए
एडिशनल साॅलीसीटर जेनरल पिंकी आनंद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर विचार करना चाहिए था. इसे संसद ने पारित किया था. संसद जनता का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन सरकार ने कोर्ट की बात मान ली. वरीय अधिवक्ता विनोद कुमार कंठ ने कहा कि न्यायिक आयोग को जमीन पर उतरनेही नहीं दिया गया. सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट में जजों की बहाली में न्यायपालिका खुद की जमींदारी खत्म नहीं करना चाहता है.
वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने कहा िक उच्च न्यायपालिका में बहाली के लिए संसद व न्यायपालिका को मिल कर समन्वय से कोई रास्ता निकालना चाहिए. व्याख्यान का संचालन पटना हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता तुहीन शंकर ने किया. व्याख्यानमाला में बड़ी संख्या में प्रोफेसर, वकील, डाक्टर व समाज के विभिन्न तबके के लोगों ने हिस्सा लिया.

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