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दीघा-सोनपुर ट्रैक पर कब तक वायदों की ट्रेन

उन्नत तकनीक के इस युग में एक पुल बनने के लिए आखिर कितना समय चाहिए? दीघा-सोनपुर रेल सह सड़क पुल को सामने रख कर यह सवाल पूछा जाये, तो आप वाकई चौंक जायेंगे. उत्तर और दक्षिण बिहार को रेल और सड़क से जोड़ने वाले इस पुल का निर्माण 17 वर्षो में भी पूरा नहीं हो […]

उन्नत तकनीक के इस युग में एक पुल बनने के लिए आखिर कितना समय चाहिए? दीघा-सोनपुर रेल सह सड़क पुल को सामने रख कर यह सवाल पूछा जाये, तो आप वाकई चौंक जायेंगे.
उत्तर और दक्षिण बिहार को रेल और सड़क से जोड़ने वाले इस पुल का निर्माण 17 वर्षो में भी पूरा नहीं हो पाया. इस बीच लोकसभा और बिहार विधानसभा के चार-चार चुनाव हो चुके. बीते आठ अगस्त को दीघा पहलेजा रेल पुल पर लाइट इंजन दौड़ी, तो उम्मीद जगी कि शायद अब यह चालू हो जाये. पर, अब तक दीघा-सोनपुर रेलखंड पर ट्रेनों का परिचालन शुरू नहीं हुआ. पाटलिपुत्र स्टेशन के उद्घाटन की तिथि भी टलती जा रही है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा है भी नहीं.
कौशलेंद्र रमण, पटना
पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन की कहानी हिंदी के उस फिल्म की तरह हो गयी है जो स्टारडम के साथ बनती तो है, पर डिब्बे से बाहर नहीं निकल पाती. पाटलिपुत्र जंक्शन बनकर तैयार है, पर उसके दोनो ओर विवादों की पटरी खड़ी हो गयी है. पटना क्षेत्र में स्थानीय गांव के लोगों ने रास्ते की मांग करते हुए ट्रैक पर चौकी लगा दी है.
उधर, गाइड बांध का निर्माण होने तक लाइन चालू नहीं हो पायेगा. गाइड बांध तभी बनेगा, जब गंगा किनारे से बिंद टोली हटेगी. बिंद टोली के 205 परिवारों के पुनर्वास के लिए जमीन की व्यवस्था होना बाकी है.
दीघा-सोनपुर रेल लाइन परियोजना को 1997-98 के रेल बजट में मंजूरी मिली थी. पहले गंगा पर सिर्फ रेल पुल बनना था. 2006 में इसे रेल सह सड़क पुल बनाने का फैसला हुआ. लेकिन, अब तक यह शुरू नहीं हुआ है. इस साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह से वीडियो कान्फ्रेंसिंग में गंगा पर बनने वाले दीघा रेल सह सड़क पुल की दिक्कतों को दूर करने का टास्क दिया था.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सात महीने बाद जब हमने पाटलिपुत्र रेलवे स्टेशन का जायजा लिया, तो हालात को जस के तस पाया. स्टेशन वीरान है. पर सुरक्षा में आरपीएफ के जवान तैनात हैं. एक जवान ने पूछने पर कहा कि स्टेशन कब से शुरू होगा, यह तो ऊपरवाले ही जानें. इसके बारे में हम क्या बता सकते हैं?
विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दीघा-सोनपुर रेल लाइन के चालू होने और पाटलिपुत्र स्टेशन से ट्रेनों के परिचालन की जोर-शोर से घोषणा की गयी थी. न तो रेल लाइन चालू हुआ और न पाटलिपुत्र स्टेशन से ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ.
क्या है स्थानीय लोगों की मांग
पाटलिपुत्र स्टेशन से दो किलोमीटर दूर है जलालपुर गांव. इस गांव के लोग चाहते हैं कि रेलवे ट्रैक के समानांतर कच्ची सड़क को पक्की किया जाये. जल निकासी के लिए नाला बनाया जाये और ट्रैक पार करने के लिए क्रॉसिंग बनायी जाये. इसके लिए गांव के लोग आंदोलन पर उतर चुके हैं. उनके साथ रेलवे और सरकार के बीच करार भी हो गया है. लेकिन उनकी मांगें अब तक पूरी नहीं हुई. इस वजह से पाटलिपुत्र स्टेशन से दानापुर की ओर ट्रेन नहीं चल पा रही है. पाटलीपुत्र स्टेशन से ही ट्रेन सोनपुर की ओर जायेगी.
चौकी लगाकर ट्रैक पर हैं लोग
जलालपुर के पास से होकर गुजरने वाले रेलवे ट्रैक पर छोटा सा टेंटनुमा शेड डालकर दो चौकियां रखी हैं. दो आदमी बैठे हैं. एक बैनर लगा है, जिसपर लिखा है- ‘रोड नहीं ,तो वोट नहीं.’ यह मांग पांच गांवों जलालपुर, रूपसपुर, चुल्हाई चक, धनौत और सबरी नगर के लोगों की है. चौकी पर जलालपुर के सुधीर जी बैठे हैं. बताते हैं कि सिर्फ रेलवे की गलती से स्टेशन चालू नहीं हो पा रहा है. हमलोगों की सिर्फ तीन ही मांगे हैं- रोड, नाला और रेलवे गुमटी. तीनों जायज मांगें हैं.
पंचायत के मुखिया धर्मेद्र सिंह हैं. हम उनके घर पहुंचे तो बताया गया कि वह बाहर निकले हैं. मोबाइल पर उनसे बात हुई. मुखियाजी बताते हैं, सब कुछ हो गया है. रेलवे केवल हमारी मांगों को मान ले और स्टेशन शुरू कर दे. धर्मेद्र बताते हैं कि यह सिर्फ जलालपुर ही नहीं, बल्कि पूरे पंचायत की मांग है. पहले तो गांव की आबादी कम थी. लेकिन, अब बाहर से भी लोग जमीन खरीद कर बस गये हैं. कई अपार्टमेंट बन गये हैं.
कह सकते हैं कि आबादी 50-60 हजार के बीच होगी और इसमें 25 हजार से कम वोटर नहीं होंगे. मुखिया जी बताते हैं कि बरसात के समय बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. सड़क भी ठीक नहीं है. इसलिए हमलोग इसकी मांग कर रहे हैं. वह कहते हैं-जब इसके लिए जमीन ली गयी थी तब यहां के लोगों को उम्मीद जगी थी कि इलाके का विकास होगा. लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन, अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमारी छोटी सी मांग के लिए हमे विलेन बनाया जा रहा है.
ट्रेन चलेगा, तो आमदनी भी होगी
हम जलालपुर गांव के बाद चुल्हाई चक गांव पहुंचे. वहां ट्रैक के दूसरी ओर कुछ झोंपड़ियों के बीच एक सरकारी स्कूल है. वहीं पर एक छोटी सी दुकान है. वहीं जलेबी खरीदने आयी रामरती स्टेशन के बारे में पूछने पर कहती हैं- ‘हम्हूं यही ताक में हैं कि कब खुले आ हम एगो भुंजा के ठेला लगाएं. टरेनवा चले लगेगा, त हमनी के आमदनी बढ़ेगा.’ वहां मिले राजेश शर्मा ने कहा, ‘ऊ लोग को रोड चाहिए. तबे ट्रेन चलने देंगे.’ राजेश का घर ट्रैक के उस पार है. आसपास के गांवों के लोग उम्मीद में हैं कि स्टेशन चालू हो, तो उनकी आमदनी के दरवाजे भी खुलेंगे.
दो साल से तैयार पाटलिपुत्र जंक्शन
सड़क, नाला और गुमटी की मांग की वजह से पाटलिपुत्र स्टेशन का उद्घाटन 31 अक्तूबर, 2013 को तीसरी बार टला था. इस दिन लंबी दूरी की दो नयी ट्रेनों पाटलिपुत्र-यशवंतपनुर (साप्ताहिक) और पाटलिपुत्र-चंडीगढ़ (सप्ताह में दो बार) को इसी स्टेशन से चलना था. इसके लिए रेलवे ने टिकटों की बुकिंग भी पहले ही कर ली थी. लेकिन, इस विवाद की वजह से ट्रेन पाटलिपुत्र जंक्शन से नहीं शुरू हो सकी. यात्रियों को दानापुर ले जाया गया और वहीं से इन दोनों गाड़ियों को चलाया गया.
बिंद टोली भी है बड़ा पेच
दीघा-सोनपुर रेल लाइन चालू नहीं होने के पीछे बड़ा पेच बिंद टोली भी है. बिंद टोली के करीब 205 परिवारों को हटा कर यहां गाइड बांध का निर्माण होना है. विस्थापितों को जमीन देने का मामला कोर्ट में है. कोर्ट ने पिछले दिनों जिला प्रशासन को विस्थापितों को पुनर्वास के लिए जमीन देने को कहा था.
चालू होता पुल, तो गांधी सेतु पर दबाव कम होता
सोनपुर/दिघवारा : आठ अगस्त को केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने जब लाइट इंजन को हरी झंडी दिखाकर पुल से गुजरते हुए पाटलिपुत्र से सोनपुर के लिए रवाना किया था, तब लोगों की उम्मीद बढ़ी थी कि अब जल्द ही ट्रेन से पाटलिपुत्र जाने व वहां से आने का सपना पूरा होगा. मगर ऐसा अब तक नहीं हो सका है.
इस रेलखंड पर पटरियों को बिछाने के साथ-साथ माल गाड़ियां सरपट दौड़ लगा रही है. वहीं पहलेजा स्टेशन पर निर्माण कार्य त्वरित रफ्तार में जारी है. मगर यात्री ट्रेने कबतक शुरू होगी, इसपर सस्पेंस बरकरार है. हालांकि रेल प्रशासन एक जनवरी से पाटलीपुत्र स्टेशन से 15 ट्रेनों के शुरू होने का दावा कर रही है.
सड़क पुल के लिए बनने वाले एप्रोच रोड के निर्माण में उत्पन्न बाधा दूर हो गयी है. जिला प्रशासन द्वारा जमीन का अधिग्रहण करने के साथ जमीन को अतिक्रमण से मुक्त करा लिया गया है. लिहाजा संभावना है कि चुनाव बाद सड़क पुल के लिए एप्रोच सड़क बनाने का काम तेजी से शुरू होगा. वहीं एप्रोच सड़क के बनते ही सड़क पुल पर चार पहिया वाहनों की दौड़ लगनी शुरू हो जायेगी.
वर्ष 2003 में इरकॉन कंपनी द्वारा पुल का निर्माण कार्य शुरू हुआ. उस समय गंगा नदी पर केवल रेल पुल बनाने का प्रस्ताव था. मगर वर्ष 2006 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने रेल के समतुल्य सड़क पुल बनाने की स्वीकृति दिलायी. जिसके बाद सड़क पुल बनने का काम रेल पुल बनने के साथ ही काम शुरू हुआ. इस पुल के निर्माण में लगभग तीन हजार करोड़ के खर्च का अनुमान है. मौजूदा वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा 350 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित हुई है.
नीचे रेल ट्रैक व उपर सड़क
दो तल्ले पुल में नीचे रेल लाइन है, जबकि उपर में सड़क है. केवल पुल की लंबाई 4.556 किमी व चौड़ाई 10 मीटर है. संपर्क सड़क को मिलाकर पुल की लंबाई 19 किमी होने का अनुमान है. इस पुल के शुरू हो जाने से उत्तरी बिहार व दक्षिणी बिहार आपस में जुटेंगे, सारण प्रमंडल के विभिन्न जिलों से राजधानी की दूरी घटेगी एवं महात्मा गांधी सेतु पुल पर गाड़ियों का दबाव कम होगा. विभिन्न जिले के लोग कम समय में राज्य मुख्यालय तक पहुंच सकेंगे. व्यापारी, विद्यार्थी एवं किसानों के अलावे कई वर्गो के लोगों को फायदा पहुंचेगा. वहीं यात्रएं भी आसान हो जायेगी.

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