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5 सालों में 6 गुना कम हुए नक्सली हमले

तमाम नक्सलग्रस्त जिलों में सीआरपीएफ की लगातार चल रहे कांबिंग ऑपरेशन का प्रभाव पटना : राज्य में मौजूदा विधानसभा चुनाव में नक्सली हमले नहीं के बराबर होने की संभावना है. इसका मुख्य कारण पिछले पांच सालों में तीनों श्रेणियों (ए, बी और सी) के नक्सल प्रभावित 29 जिलों में नक्सली वारदातों या हमलों में कमी […]

तमाम नक्सलग्रस्त जिलों में सीआरपीएफ की लगातार चल रहे कांबिंग ऑपरेशन का प्रभाव
पटना : राज्य में मौजूदा विधानसभा चुनाव में नक्सली हमले नहीं के बराबर होने की संभावना है. इसका मुख्य कारण पिछले पांच सालों में तीनों श्रेणियों (ए, बी और सी) के नक्सल प्रभावित 29 जिलों में नक्सली वारदातों या हमलों में कमी आयी है. 2009 में साल भर में जहां 300 से ज्यादा नक्सली वारदातें दर्ज की गयी थी.
वहीं, 2014-15 में इन वारदातों में छह गुणा की कमी आयी और यह घटकर सालाना 50-55 हो गयी हैं. वारदातों की संख्या में कमी आने के कारण इस बार चुनाव के दौरान नक्सली हमले होने की आशंका कम आंकी जा रही है. वाबजूद इसके प्रशासन ने अपनी तरफ से चाक-चौबंद सुरक्षा बनाये रखने में किसी तरह की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. पिछले चुनावों की तुलना में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में इस बार करीब दो गुणा केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.
ज्यादा नक्सल प्रभावित जिले ज्यादा शांत
नक्सल के प्रभाव के अनुसार, राज्य में श्रेणी-ए के तहत प्रभावित जिलों गया, औरंगाबाद, जमुई, मुजफ्फरपुर, रोहतास और मोतिहारी में वारदातों की संख्या काफी घटी है.
श्रेणी-सी के तहत आने वाले पटना, जहानाबाद, अरवल, नालंदा समेत 16 जिलों में भी वारदातें काफी कम हुई हैं. जबकि श्रेणी-बी में आने वाले जिलों वैशाली, सारण, मुंगेर, सीतामढ़ी, शिवहर, लखीसराय और बांका में से कुछ एक-दो जिलों में अभी भी थोड़ी बहुत गतिविधियां देखी जा रही है. सूत्रों के अनुसार उत्तर बिहार के तकरीबन सभी जिले फिलहाल शांत हैं. इनमें पिछले दो सालों में कोई बड़ी वारदात नहीं दर्ज की गयी है.
स्थिति यह रही, तो नक्सल जिले हो सकते हैं सामान्य
अगर श्रेणी-ए, बी और सी के 29 नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सल वारदातें नहीं हुई, तो इसमें श्रेणी-सी के कुछ जिलों को सामान्य जिलों में शामिल करने की कवायद हो सकती है. हालांकि इसके लिए बिहार सरकार को ही अंतिम फैसला करना होता है. यह राज्य के अधिकार क्षेत्र की बात होती है, जो राज्य की खूफिया रिपोर्ट समेत अन्य बातों पर निर्भर करती है.
वारदातों की संख्या कम होने की वजह यह
गया, औरंगाबाद, कैमूर, सासाराम, जमुई समेत तमाम नक्सल प्रभावित जिलों में स्थानीय पुलिस के अलावा सीआरपीएफ ने बड़ी संख्या में कैंप कर रखा है. सीआरपीएफ के विशेष दस्ता बल लगातार इन जिलों में कांम्बिंग ऑपरेशन चला रखा है.
लगातार सर्च और इनकॉउंटर के कारण नक्सलियों के हमले पस्त हो गये हैं और ये धीरे-धीरे झारखंड बॉर्डर की तरफ शिफ्ट हो गये हैं. जमुई, गया, औरंगाबाद, कैमूर के जंगलों में लगातार सर्च ऑपरेशन चलाये जा रहे हैं.
नक्सली जिलों में कुछ अंतराल पर ‘डिमाइनिंग ऑपरेशन’ चलाने के कारण भी यहां नक्सली वारदातें अंजाम तक नहीं पहुंच पाती हैं. ‘डिमाइनिंग ऑपरेशन’ में सीआरपीएफ को काफी बड़ी सफलता मिली है. गया, कैमूर, सासाराम से पिछले दो सालों में नक्सली के बड़े नेता मसलन शिवजी धोबी, संजीवन बैठा, बालेश्वर समेत कई बड़े नक्सल लीडर गिरफ्तार हुए हैं. इससे भी नक्सल ऑपरेशन को काफी बड़ा झटका लगा है.

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