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निगरानी फेल, आठ माह में बिल्डिंग तैयार
कोर्ट के आदेश की भी परवाह नहीं अवैध भवनों की निगरानी में लगे पथ निर्माण और जल संसाधन विभाग के 30 इंजीनियरों की सेवा ले ली वापस पटना : डाकबंगला चौराहा के समीप निर्माणाधीन मेरिडियन कंस्ट्रक्शन और गणपति डेवलपर्स के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की लुंज-पुंज कार्यप्रणाली के बड़े उदाहरण हैं. नगर […]
कोर्ट के आदेश की भी परवाह नहीं
अवैध भवनों की निगरानी में लगे पथ निर्माण और जल संसाधन विभाग के 30 इंजीनियरों की सेवा ले ली वापस
पटना : डाकबंगला चौराहा के समीप निर्माणाधीन मेरिडियन कंस्ट्रक्शन और गणपति डेवलपर्स के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की लुंज-पुंज कार्यप्रणाली के बड़े उदाहरण हैं.
नगर आयुक्त कोर्ट से बिल्डिंग तोड़ने के आदेश के बावजूद बिल्डरों ने शहर की ह्रदय स्थली पर आठ महीने में न सिर्फ भवन को तैयार किया, बल्कि अब फिनिशिंग टच देने में भी जुटे हैं. इस एक भवन से शहर में चल रहे करीब साढ़े चार सौ निगरानी वाद मामलों की स्थिति समझी जा सकती है.
निगरानी मशीनरी हुई फेल
अवैध भवनों की मॉनीटरिंग को लेकर नगर निगम की मशीनरी फेल हो चुकी है. हाइकोर्ट के आदेश पर तत्कालीन आयुक्त कुलदीप नारायण ने अवैध भवनों की पहचान तथा उसकी निगरानी में तेजी लायी थी. इस कार्य के लिए पथ निर्माण व जल संसाधन विभाग के करीब 30 इंजीनियरों की प्रतिनियुक्ति हुई थी. इसी का परिणाम रहा कि बड़ी संख्या में अवैध भवन चिह्न्ति कर निगरानी वाद केस शुरू किया गया, लेकिन कुलदीप नारायण के हटते ही उनकी सेवा वापस ले ली गयी. उनकी प्रतिनियुक्ति तीन महीने के लिए हुई थी, जिसे एक बार ही बढ़ाया गया.
निगम के अभियंता नहीं करते हैं जांच
निगम में तैनात अभियंताओं पर भवनों की जांच की जिम्मेवारी है, लेकिन वे जांच नहीं करते हैं. अभियंताओं की कमी का बहाना बना कर हमेशा जांच में कोताही करते हैं. इसी का परिणाम रहा कि अति व्यस्त डाकबंगला चौराहे पर बिना रोक-टोक आठ महीने में ही पूरी बिल्डिंग बन कर तैयार हो गयी. हालांकि इस बीच तत्कालीन नगर आयुक्त ने एसएसपी को अवैध निर्माण पर रोक लगाने को पत्र भी लिखा, लेकिन उनका यह पत्र एसएसपी कार्यालय से होते हुए कोतवाली थाने तक आ कर सिमट गया. इस बीच मामले में दो एफआइआर भी दर्ज हुई, लेकिन काम नहीं रूका. अब बिल्डर का खौफ कहें या निगम की सुस्ती कि शुक्रवार को अखबार में खबर छपने के बावजूद कोई अधिकारी इसकी जांच करने तक नहीं पहुंचा.
सितंबर 2013 में सिर्फ स्ट्रक्चर, अब फिनिशिंग पूरी
डेढ़ साल पहले सितंबर 2013 में जब इंजीनियरों की टीम ने इस भवन की जांच की, तो उस वक्त स्ट्रक्चर खड़ा हो रहा था, लेकिन ग्यारह माह बाद जब जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन नगर आयुक्त ने इसे तोड़ने का फैसला सुनाया, तो भवन के सभी फ्लोर बन कर तैयार हो गये थे. उस वक्त भवन में एक भी ईंट नहीं थी. नगर आयुक्त की रिपोर्ट आने के बाद बिल्डर ने आनन-फानन में ईंट जोड़ कर पूरा कॉम्प्लेक्स ही तैयार कर लिया. अब तो शीशा लगा कर उसे सिर्फ फिनिशिंग टच दिया जा रहा है.
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