पटना: पड़ोसी देशों के साथ बेहतर रिश्ते भारत की प्राथमिकता रही है, लेकिन भारत की आज विदेश नीति की समस्याएं पड़ोसियों के साथ ही है. दूसरे देशों से हमारा कोई झगड़ा नहीं है. पड़ोसी देश से डील करना बहुत मुश्किल काम है. खासकर पाकिस्तान और नेपाल के साथ. पाक और भारत में आपसी बातचीत का […]
पटना: पड़ोसी देशों के साथ बेहतर रिश्ते भारत की प्राथमिकता रही है, लेकिन भारत की आज विदेश नीति की समस्याएं पड़ोसियों के साथ ही है. दूसरे देशों से हमारा कोई झगड़ा नहीं है. पड़ोसी देश से डील करना बहुत मुश्किल काम है. खासकर पाकिस्तान और नेपाल के साथ.
पाक और भारत में आपसी बातचीत का इसलिए भी कोई अधिक फायदा नहीं होता क्योंकि हमारे बीच आपसी भरोसा नहीं है. उनकी संदिग्ध गतिविधियों पर ना हम उन पर पूरी तरह से भरोसा कर सकते हैं और ना ही वे हम पर भरोसा करने को तैयार हैं. जब तक ऐसी स्थिति है तब तक दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते कायम नहीं हो सकते. ये बातें पूर्व केंद्रीय विदेश और वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने मंगलवार को पटना संग्रहालय में स्थित बिहार रिसर्च सोसाइटी के काउंसिल हॉल में ‘भारत और उसके पड़ोसी’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में कहीं.
श्रीलंका से डील करना सबसे आसान: उन्होंने कहा कि श्रीलंका से डील करना सबसे आसान है. चाइना के साथ हमारे संबंध ऐसे हैं कि हम अपने बॉर्डर से जुड़ी विवादों को अलग रखते हैं और बाकी दूसरे मामलों पर खुल कर बात करते हैं. चाइना से हमारे कुछ विवाद हैं लेकिन वह हमें रोज परेशान नहीं करता. हालांकि कुछ पड़ोसी देश चाइना को हमारे खिलाफ यूज करने की कोशिश करते रहते हैं. वे चाइना से संबंधों के आधार पर हमें डराने की कोशिश करते हैं. जबकि भारत की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि हम सीधे चाइना से कंपटीशन में हैं. हम भी सशक्त हैं और इस स्थिति से निपटने के लिए अपने आपको और भी सशक्त बना रहे हैं.
बांग्लादेश से विवाद जल्द सुलझाये जाने की उम्मीद : बांग्लादेश के जन्म में हमने मदद की लेकिन बाद में उससे रिश्ते बिगड़ते चले गये. कुछ विवाद हैं जिसे जल्द सुलझा लिये जाने की उम्मीद है. अफगानिस्तान सीधे तौर पर हमारा पड़ोसी नहीं है लेकिन फिर भी वह हमारे पड़ोसी की तरह ही है लेकिन उससे हमारे बेहतर रिश्ते हैं. अमेरिका के बाद भारत ने सबसे अधिक अफगानिस्तान को मदद दी है. नेपाल के साथ डील करना भी काफी मुश्किल है. वहां के लोग काफी सेंसेटिव हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल पाकिस्तान के साथ ही है.
इसलिए सार्क का भी कोई बेहतर परिणाम नहीं है. भारत ने सभी अदावतों के बावजूद पाकिस्तान को मोस्ट फेवर ट्रीट दिया है. फिर पाकिस्तान का रवैया अलग है. इसलिए सबसे अच्छा तरीका है कि उन्हें नजर अंदाज किया जाये. फिर भी हर बार हम ही झुकते हैं और हाथ बढ़ाते हैं.
पाकिस्तान क्रास बॉर्डर टेरेरिज्म से बाज नहीं आता. वह भारत में अशांति बनाये रखना चाहता है. वहां की राजनीति ऐसी है कि लोग नहीं चाहते कि भारत के साथ दोस्ती हो. मुङो नहीं लगता कि अब तक जैसे रिश्ते भारत-पाक के बीच हैं अगले 50-60 वर्षो तक दोनों के बीच कुछ बदलने वाला है. अभी हाल में पाक से किसी राजनीतिज्ञ का ही बयान आया कि कश्मीर अगर हम भारत से ले भी लें तब भी भारत और पाक के बीच रिश्ते नहीं सुधर सकते. कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और इस पर किसी थर्ड पार्टी की मध्यस्तता हमें स्वीकार नहीं है और पाक से वार्ता इस स्थिति में तो संभव नहीं है. कार्यक्रम की अध्यक्षता त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेश्वर कर रहे थे. मंच संचालन बिहार पुराविद परिषद के महासचिव उमेश चंद्रद्विवेदी कर रहे थे.