लाइफ रिपोर्टर@पटनामच गया सारे गांव हल्ला, हमार घर लल्ला हुआ है.लल्ला हुआ है, हल्ला हुआ है. था एक तल्ला, दो तल्ला हुआ है.गोरा हुआ है, कल्ला हुआ है. लड्डू है घी का निरल्ला हुआ है.बांटो मिठाई-रसगुल्ला हमार घर लल्ला हुआ है.इस कविता से प्रतीत हो जाता है कि इसे गानेवाले लोग बेटे की चाह रखते हैं. गानेवाले भी तो मौजपूर के थे. यह एक कहानी का हिस्सा था, जिसे बिहार आर्ट थियेटर के कलाकारों ने सुविख्यात फोटो पत्रकार कृष्ण मुरारी किशन की याद में कालिदास रंगालय में शनिवार को प्रस्तुत किया. नाट्यकार जयवर्धन द्वारा लिखित और गुप्तेश्वर कुमार द्वारा निर्देशित नाटक ‘किस्सा मौजपूर का’ में बेहतरीन बातों को हास्य रूप में दिखाया गया. गांव मौजपूर में कोई भी अपने घर में लड़की नहीं चाहता था. जाने कहां से एक डॉक्टर अपनी नयी मशीन के साथ गांव में आता है, जिससे लिंग की जांच हो जाती है. एक वक्त ऐसा आता है, जब उस गांव में लड़की ही नहीं बचती. पास के गांव से लड़की का न्योता आता है, तो इस शर्त पर कि लड़का को ससुराल में रहना होगा. इस बात से सारे लड़के भी गांव से बाहर जाने लगे. अंत में एक लड़की अपने ससुराल में रहने की हट लगा देती है और कहती है कि सारी लड़की चली जायेगी, तो इस गांव का अस्तित्व खत्म हो जायेगा. नाटक शुरू से अंत तक दर्शकों को गुदगुदाता रहता है. इस गुदगुदाने के बीच में नाटक एक मैसेज भी दे जाता है कि हमें बेटी को बचाना चाहिए. नाटक में सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया.
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बेटी नहीं बचाओगे, तो मां कहां से पाओगे
लाइफ रिपोर्टर@पटनामच गया सारे गांव हल्ला, हमार घर लल्ला हुआ है.लल्ला हुआ है, हल्ला हुआ है. था एक तल्ला, दो तल्ला हुआ है.गोरा हुआ है, कल्ला हुआ है. लड्डू है घी का निरल्ला हुआ है.बांटो मिठाई-रसगुल्ला हमार घर लल्ला हुआ है.इस कविता से प्रतीत हो जाता है कि इसे गानेवाले लोग बेटे की चाह रखते […]
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