खंडपीठ ने दो सप्ताह में सरकार को यह बताने को कहा कि किस कारण से पटना में कीमती जमीन पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय बनाने का फैसला लिया गया. सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे को खंडपीठ ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें निर्माण कार्य की प्रगति की जानकारी है, जिसे कोर्ट ने मांगा ही नहीं था.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षतावाले खंडपीठ ने संग्रहालयों की स्थिति को लेकर तल्ख टिप्पणी भी की. कोर्ट के बार-बार सवाल किये जाने पर कि इस संग्रहालय के निर्माण का निर्णय किसलिए किया गया, अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने कहा कि प्रदेश में कई जगहों पर पुरातात्विक अवशेष बिखरे पड़े हैं, जिन्हें इस संग्रहालय में रखा जायेगा. इस पर कोर्ट ने कहा कि इसके लिए इतनी कीमती जमीन को ही क्यों चुना गया? इसका जवाब सरकारी वकील नहीं दे पाये. हालांकि, अपर प्रधान महाधिवक्ता ने कहा कि इसी साल संग्रहालय का उद्घाटन किया जायेगा. तब कोर्ट ने टिप्पणी की कि मेरा अनुभव बता रहा है कि सरकार अगले साल भी इसका उद्घाटन नहीं कर पायेगी. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह धरती महान विभूतियों की जन्म और कर्म स्थली रही है. लेकिन, यहां के लोग बुनियादी चीजें पानी, सड़क आदि के लिए तरस रहे हैं.
ऐसे में मात्र पांच प्रतिशत लोगों की खुशी के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब बिहार के पुरातत्व की बात की जा रही है, तब विदेशी कंपनी को इसके निर्माण का ठेका क्यों दिया गया? कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने कहा कि 2009 में राज्य कैबिनेट की बैठक में इस संग्रहालय के निर्माण की मंजूरी दी गयी. अभी तक तीन सेक्टर का निर्माण हो चुका है. छह और सेक्टर में निर्माण होना है. इस पर कोर्ट ने कहा कि शहर को कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा रहा है.