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तीजन बाई की पांडी सुन कायल हुए श्रोता

तीजन ने अपनी आवाज से राजगीर की पंच पहाडि़यों को किया झंकृतदर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से किया अभिवादनराजगीर. पद्मविभूषण तीजन बाई की आवाज की खनक से शुक्रवार को राजगीर महोत्सव का मंच सहित राजगीर की पंच पहाडि़यां झंकृत हो उठी. उन्होंने जैसे ही महोत्सव के मंच पर कदम रख दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट […]

तीजन ने अपनी आवाज से राजगीर की पंच पहाडि़यों को किया झंकृतदर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से किया अभिवादनराजगीर. पद्मविभूषण तीजन बाई की आवाज की खनक से शुक्रवार को राजगीर महोत्सव का मंच सहित राजगीर की पंच पहाडि़यां झंकृत हो उठी. उन्होंने जैसे ही महोत्सव के मंच पर कदम रख दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका अभिवादन किया. पंडवानी गायन के लिए विश्वप्रसिद्ध तीजन बाई ने महाभारत कालीन पांडवों के युद्ध का वर्णन अपनी गायन शैली से किया. उन्होंने दु:शासन वध के बाद की कहानी अपनी गायन शैली से इस प्रकार प्रस्तुत की कि लगा मानों लोग कुरुक्षेत्र में बैठ साक्षात महाभारत देख रहे हैं. तीजन बाई की आवाज देर रात तक राजगीर की वादियों में गूंजती रही. दर्शक उनकी गायन शैली तथा हाथ में करतान को लहराने के अंदाज के कायल हो गये.कई देशों में दे चुकी हैं प्रस्तुतिबताते चलें कि 1956 में जन्मी तीजन बाई 13 वर्ष की आयु से ही अपने गायन के लिए चर्चित रहीं. इन्होंने इंदिरा गांधी के समक्ष भी अपनी कला की प्रस्तुति कर उन्हें भी अपना कायल बना लिया था. जीतन बाई ने अपने गायन के लिए देश-विदेश के मंच की भी शोभा बढ़ायी है. 1980 में भारत के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, अफ्रीका, यूरोप सहित कई देशों का भ्रमण कर चुकी है. अपने गायन के लिए इन्हें 1988 में पद्मश्री पुरस्कार, 1995 में संगीत विरासत एकेडमी पुरस्कार तथा 2003 में पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाजा गया. वे इसके पूर्व भी राजगीर महोत्सव में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी हैं.

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