पटना: महिला हिंसा की रोकथाम के लिए बने कानूनों के बाद भी इसमें लगातार इजाफा हो रहा है. हेल्पलाइन, महिला आयोग जैसे संगठनों के रहते घर से लेकर बाहर तक महिलाएं हिंसा की शिकार हो रही हैं.
नौकरी जाने या समाज में बदनामी के डर से उनको चुपचाप इसे सहना भी पड़ रहा है. ये बातें शुक्रवार को ऑक्सफेम की ओर से एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट में ‘महिला हिंसा की समाप्ति’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहीं. संगोष्ठी में 15 राज्यों से आये विभिन्न संगठनों ने विचार-विमर्श किया.
ऑक्सफेम इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवीण कुमार प्रवीण ने कहा कि महिला हिंसा पर कार्य करनेवाले विभिन्न संगठनों को एक मंच पर कार्य करने की जरूरत है.साझा मंच के जरिये एक प्रक्रिया बनायी जाये, जो आस-पास की विभिन्न चुनौतियों पर काम करें. महिला जागरण केंद्र की अध्यक्ष नीलू कुमारी ने बताया कि 60 फीसदी महिलाएं कार्य स्थलों पर यौन हिंसा की शिकार हो चुकी हैं. विधु प्रभा ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान आये विचारों से संबंधित प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसे अगले सप्ताह गवर्नर को दिया जायेगा. मौके पर निवेदिता झा, मीना तिवारी, सुशीला सहाय मौजूद रहीं.=
महिलाएं भी समान अधिकार की हकदार : सुधा वर्गीस
पद्मश्री सुधा वर्गीस ने बताया कि मानवाधिकार के तहत महिलाएं भी समान अधिकार की हकदार है, लेकिन सामाजिक वातावरण व हाल के दिनों में नैतिक गिरावट का असर महिला हिंसा के रूप में देखने को मिल रहा है. जब तक सरकारी व गैरसरकारी संगठन आपस में मिल कर काम नहीं करेंगे, तब तक इन समस्याओं का निदान नहीं हो सकेगा.