पटना: राजेंद्र नगर टर्मिनल या दानापुर से पटना जंकशन पर आते समय यदि ट्रेन के व्हील या किसी दूसरे पार्ट में खराबी आ जाये, तो आरएनसीसी कोचिंग कॉम्प्लेक्स में बैठे अधिकारियों को इसकी सूचना तुरंत नहीं मिल पायेगी. दानापुर मंडल से दिये जानेवाले ज्यादातर वॉकी-टॉकी सेट खराब हो चुके हैं.
इसके चलते पटना जंकशन के रोलिंग प्वाइंट पर चलती ट्रेन की जांच करने बैठे कर्मचारियों को ट्रेन के गार्ड व ड्राइवर से ट्रेन की गड़बड़ियों की सही सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं. वॉकी-टॉकी का खराब हुए करीब दो माह हो गये हैं, लेकिन अब तक किसी को ठीक नहीं करवाया गया. स्टोर सूत्रों की मानें, तो वॉकी-टॉकी सेट की बैटरी खराब हो रही हैं. रेलवे यूनियन ने दानापुर मंडल के डीआरएम से वॉकी-टॉकी की मांग की है. वहीं डीआरएम एनके गुप्ता ने बताया कि खराब हो रहे वॉकी-टॉकी की जांच की जा चुकी है. बहुत जल्द ही सभी को यह सिस्टम मिल जायेंगे और कार्य प्रगति पर चलने लगेगा.
सूचनाओं के लिए है जरूरी : रोलिंग प्वाइंट पर बैठे हुए कर्मचारियों और आरएनसीसी दफ्तर में कार्यरत अधिकारियों के लिए वॉकी-टॉकी सिस्टम आपस में बातचीत के लिए बहुत जरूरी है. चलती ट्रेनों में यदि कोई गड़बड़ी होती है, तो रोलिंग प्वाइंट पर बैठा कर्मचारी तत्काल वॉकी-टॉकी के माध्यम से संबंधित अधिकारी को इसकी सूचना देता है. अधिकारी स्वयं टीम को लेकर मौके पर पहुंच कर गड़बड़ी ठीक कर देते हैं, लेकिन वॉकी-टॉकी के खराब रहने से सूचनाएं सही समय पर नहीं पहुंच सकती हैं. मोबाइल फोन का प्रयोग तो किया जा रहा है, लेकिन वह सफल नहीं हो पा रहा है, क्योंकि रोलिंग प्वाइंट पर कार्यरत कर्मचारी बुजुर्ग हैं और वे मोबाइल फोन को ठीक से ऑपरेट नहीं कर पाते हैं.
रफ्तार व सुरक्षा के लिए है सिस्टम : रेल अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2002 में रेलवे की रफ्तार देने और यात्राियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वॉकी-टॉकी सिस्टम को लांच किया गया था. कोहरे के दिनों में जब सिग्नल नहीं दिखाई देता है, तो गार्ड व ड्राइवर स्टेशन के अधिकारियों से वॉकी-टॉकी पर सिगनल की जानकारी देकर ट्रेन की स्पीड मेनटेन रखते थे.
कंपनी पर उठ रहे सवाल
रेलवे के गार्ड, ड्राइवर और स्टेशन पर कार्यरत सुरक्षाकर्मियों को दिये जानेवाले वॉकी-टॉकी की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लग रहे हैं. दरअसल दानापुर डिवीजन में इन दिनों रेक्सॉन कंपनी के वॉकी-टॉकी से काम चल रहा है. रेक्सॉन कंपनी के वॉकी-टॉकी तीन महीने में ही धोखा दे दिया, जबकि पुराने वाकी-टॉकी चार से पांच साल से चल रहे हैं. इतना ही नहीं, रेक्सॉन कंपनी के वॉकी-टॉकी की बैटरी छह माह में ही खराब होने लगी है. मानकों पर खरा नहीं उतरने से कर्मचारी खासे परेशान हैं. दूरसंचार विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस कंपनी की सप्लाइ को बोगस करार दिया गया है. फील्ड से बड़ी तादाद में रेक्सॉन कंपनी के उपकरणों की गुणवत्ता ठीक नहीं रहने की शिकायतें मिल रही हैं. हालांकि डीआरएम ने कहा कि रेक्सॉन कंपनी के वॉकी टॉकी की तो इसके बारे में भी पूछताछ की जायेगी.