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जरूरतों को पूरा करने के लिए होता है संघर्ष

लाइफ रिपोर्टर @ पटनाजब इनसान की इच्छाएं बढ़ने लगती हैं, जिन्हें पूरा करने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. तब इच्छाओं के बोझ से दबा इनसान फ्रस्टेट हो जाता है. शुक्रवार को कालिदास रंगालय में कैटेलिस्ट द्वारा ‘घरौंदा’ नाटक की प्रस्तुत दी गयी. जिसमें एक ऐसे कशमकश की स्थिति से लोगों को अवगत कराया जाता […]

लाइफ रिपोर्टर @ पटनाजब इनसान की इच्छाएं बढ़ने लगती हैं, जिन्हें पूरा करने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. तब इच्छाओं के बोझ से दबा इनसान फ्रस्टेट हो जाता है. शुक्रवार को कालिदास रंगालय में कैटेलिस्ट द्वारा ‘घरौंदा’ नाटक की प्रस्तुत दी गयी. जिसमें एक ऐसे कशमकश की स्थिति से लोगों को अवगत कराया जाता है, जिसमें आदमी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरे करने के लिए उसके आस-पास संघर्ष की स्थिति बन जाती है. हर इनसान के नजर में उसके घर और परिवार की जरूरतें रहती हैं. शंकर शेष द्वारा रचित यह नाटक में एक मीडिल क्लास संघर्ष करने वाले माइंड सेट को दिखाया गया है. अपने पद का प्रभाव, ज्यादा पैसे कमाने के लए खुशियों को नजर लग जाती है. यह सभी दर्द और कशमकश के रंग को मंच पर बखूबी दर्शाया गया. नाटक के माध्यम से इच्छाओं के दलदल में फंसे एक मिडिल क्लास इनसान की मानसिक स्थिति को उकेरने का प्रयास किया. हर कोई आराम की जिंदगी जीना चाहते हैं. सबका सपना होता है एक बड़ा सा घरौंदा, लेकिन महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी के कारण अपने आप को असक्षम पाते हैं. दूसरी और कुछ ऐसी इच्छाओं का भूत उसके सीर पर सवार हो जाता है, जिसकी वजह से वह अपनी लक्ष्य से भटक जाता है. इस स्थिति में ज्यादा पैसे कमाने के लिए शॉर्टकट इस्तेमाल करते हैं और ज्यादातर शॉर्टकट अपनाने की कोशिश करता है. इन सभी गलत कामों में उलझ कर रह जाता है. उसकी जिंदगी खराब होने लगती है और वह कुछ ऐसे कदम उठा लेता है विष मानव की श्रेणी में आ जाता है. मंचित घरौंदा का निर्देशन अशोक श्रीवास्तव ने किया. इसके मुख्य कलाकार श्वेता सागर, दीपा, नंदन, मिश्रा, सौरभ सिंह, आनंद कुमार और शिशु कुमार थे.

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