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आधुनिक रंगमंच के शलाका पुरुष थे नेमिचन्द्र जैन : नंदकिशोर आचार्य

पटना : भारत में रंगमंच की परंपरा सदियों पुरानी है. रंगमंच से आम से लेकर खास लोगों का जुड़ाव भी काफी पुराना है. बात नेमिचन्द्र जैन की करें तो उन्होंने रंगमंच की भाषा और अभिनय को नया आयाम दिया. इसका जिक्र वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नंदकिशोर आचार्य ने किया. एएन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान के सभाकक्ष […]

पटना : भारत में रंगमंच की परंपरा सदियों पुरानी है. रंगमंच से आम से लेकर खास लोगों का जुड़ाव भी काफी पुराना है. बात नेमिचन्द्र जैन की करें तो उन्होंने रंगमंच की भाषा और अभिनय को नया आयाम दिया. इसका जिक्र वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नंदकिशोर आचार्य ने किया. एएन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान के सभाकक्ष में इप्टा के नेमिचन्द्र जैन जन्मशती पर आयोजित दो दिवसीय नेशनल सेमिनार का उद्घाटन करते हुए प्रो. नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि आजादी के बाद नेमिचन्द्र जैन रंगमंच के नायक के रूप में उभरे. उन्होंने भाषा की अनिवार्यता और अभिनय की सार्थकता को स्थापित किया. उन्होंने दोनों की जरूरतों को नाटक के लिए अनिवार्य बताया था.

नेमिचन्द्र जैन से सीखें देश के युवा
नेमिचन्द्र जैन जन्मशती पर एएन सिन्हा सामाजिक शोध संस्थान के सभाकक्ष में आयोजित दो दिवसीय नेशनल सेमिनार में देशभर के साहित्यकारों, नाट्यकर्मियों और रंगकर्मियों का जमावड़ा लगा है. इसके उद्घाटन के मौके पर प्रो. नंदकिशोर आचार्य ने नेमिचन्द्र जैन की उपलब्धियों को रखा. उन्होंने बताया कि नेमिचन्द्र जैन ने नाटकों के साथ ही उपन्यास के जरिये साहित्य की काफी सेवा की. नाट्यकला को बेहतर तरीके से समझने के लिए उन्होंने युवाओं से नेमिचन्द्र जैन को पढ़ने-समझने की अपील की. इक़बाल, अरविंद, रविंद्रनाथ टैगोर की कविताओं को उन्होंने दार्शनिक अंदाज में दुनिया के सामने रखा. ‘मन की यात्राएं’ उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति रही.

नारी सशक्तिकरण के समर्थक नेमिचन्द्र जैन
सेमिनार के दौरान राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पूर्व निदेशक कीर्ति जैन ने नेमिचन्द्र जैन को याद किया. उन्होंने बताया कि इप्टा से नेमिचन्द्र का जुड़ाव दिल से था. वो नारी सशक्तिकरण के हिमायती थे और नारी मुक्ति की अवधारणा को जीवन में उतारा. नाट्य आलोचक दीवान सिंह बजेल ने नेमिचन्द्र जैन को रंगमंच, कविता, उपन्यास और अनुवाद का शीर्ष पुरुष करार दिया. नेमिचन्द्र जैन नाटक की सजीव प्रस्तुति के पक्षधर थे और आलोचना को नाटक की संजीवनी बताते थे. नेमिजी का पटना से बड़ा लगाव था और उन्होंने हमेशा यहां के रंगकर्मियों से संवाद जारी रखा. सेमिनार में नेमिचन्द्र जैन पर डॉक्यूमेंट्री और चित्र प्रर्दशनी का आयोजन भी किया गया.

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