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केंद्र के मानस पटल पर बिहार नहीं, विशेष राज्य का दर्जा जरूरी

शैबाल गुप्ता, अर्थशास्त्री ऐसा लगता है कि बिहार केंद्र सरकार के मानस पटल पर नहीं है. यह तर्क दिया जा सकता है कि कृषि और ग्रामीण विकास के लिए घोषित की गयी योजनाओं से राज्य को लाभ होगा. लेकिन, हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बिहार सामाजिक और आर्थिक विकास के कई संकेतकों […]

शैबाल गुप्ता, अर्थशास्त्री
ऐसा लगता है कि बिहार केंद्र सरकार के मानस पटल पर नहीं है. यह तर्क दिया जा सकता है कि कृषि और ग्रामीण विकास के लिए घोषित की गयी योजनाओं से राज्य को लाभ होगा. लेकिन, हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बिहार सामाजिक और आर्थिक विकास के कई संकेतकों में निचले पायदान पर बना हुआ है. राज्य ऐतिहासिक रूप से देश में आर्थिक नीतियों में उपेक्षा झेलता रहा है और यह वर्तमान बजट के साथ भी जारी है. बिहार सीमित स्रोतों के साथ राजस्व जुटाने के लिए घनी आबादी वाला राज्य है. यह संसाधनों के लिए केंद्र से कर राजस्व और अनुदान पर अत्यधिक निर्भर रहा है.
ये ज्यादातर वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार होते हैं. इन सब सीमाओं के बावजूद राज्य ने पिछले कुछ वर्षों में राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा है. निश्चित रूप से यह विकास के लिए जरूरी खर्चों को सीमित करने की लागत पर आता है. राज्य को हमेशा केंद्र से सबसे कम योजना और गैर.योजना प्रति व्यक्ति अनुदान प्राप्त हुआ.
राज्य के लिए विशेष राज्य के दर्जा के लिए बहुप्रतीक्षित मांग से ध्यान हटाने के लिए पिछले दो दशकों में दो अवसरों पर विशेष पैकेजों के लिए वादे किये गये थे. लेकिन, इन वादों को पूरा नहीं किया गया है. साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत इस तरह के पैकेज का वादा किया गया था.
लेकिन, बाद के बजट में इसे नजरअंदाज कर दिया गया था. दूसरे पैकेज की घोषणा प्रधान मंत्री द्वारा 2015-16 में की गयी थी. लेकिन यह अभी तक राज्य में नहीं पहुंच पायी है. बिहार की सामाजिक,आर्थिक स्थिति के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये हैं. विशेष मदद के अभाव में बिहार के लिए लगभग असंभव है कि वह विभिन्न क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत की ओर अग्रसर हो सके.
केंद्रीय बजट 2020-21 ऐसे समय में आया है, जब भारतीय अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है. आर्थिक विकास दर पिछले छह वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है और राजस्व संग्रह में गिरावट आयी है.
इस परस्थिति में भी ऐसी कोई विशेष योजना नहीं दिख रही है जो अर्थव्यवस्था में वृद्धि को बढ़ावा दे. इस बीच वर्तमान सरकार ने 2024 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने और 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. अकेले सरकारी खर्च के माध्यम से ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करना लगभग असंभव है.
आर्थिक मंदी के साथ राजस्व संग्रह लक्ष्यों और इसलिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करना मुश्किल है. देश के सामाजिक,आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर खर्च करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है. हालांकि, आर्थिक मंदी के साथ राजस्व संग्रह के लक्ष्यों और राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करना मुश्किल है. बजट गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्राथमिकता बताता है. इस संबंध में भारत के लिए अच्छी गुणवत्ता के अनुसंधान को बढ़ावा देने वाली शिक्षा प्रणाली को विकसित किये बिना चौथी औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बनना मुश्किल है.

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