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बिहार की गरीबी दूर करने में लगेंगे 15 वर्ष
पटना : नीति आयोग द्वारा सतत विकास के जारी किये गये 2019-20 के लक्ष्य के अनुसार बिहार से गरीबी दूर करने में कम -से- कम 15 वर्ष लग जायेंगे. विकास के पहले लक्ष्य में बिहार का 100 में स्कोर 33 है. राज्य में बीपीएल आबादी की संख्या 21 प्रतिशत है. राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में […]
पटना : नीति आयोग द्वारा सतत विकास के जारी किये गये 2019-20 के लक्ष्य के अनुसार बिहार से गरीबी दूर करने में कम -से- कम 15 वर्ष लग जायेंगे. विकास के पहले लक्ष्य में बिहार का 100 में स्कोर 33 है. राज्य में बीपीएल आबादी की संख्या 21 प्रतिशत है. राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दूर करने के लिए रोजगार सृजन के मामले में मनरेगा एक बड़ा हथियार है.
नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 100 दिनों का रोजगार मांगनेवालों में सिर्फ आठ दिनों का ही रोजगार उपलब्ध कराया गया है. इसी प्रकार से सामाजिक सुरक्षा के तहत मातृत्व लाभ देने और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में कच्चा मकान में रहनेवाले लोगों की समस्याएं बनी हुई हैं. आद्री के निदेशक प्रो पीपी घोष का कहना है कि नीति आयोग द्वारा जारी बीपीएल की रिपोर्ट पुरानी है. उन्होंने बताया कि बिहार की ऐतिहासिक समस्या है. यहां संसाधनों की भी कमी है.
अविकसित राज्यों को अधिक संसाधन उपलब्ध हो
आद्री के निदेशक ने कहा कि देश के अंदर क्षेत्रीय असमानता है. नीति आयोग को क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए अविकसित राज्यों को अधिक संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है.
वित्त आयोग द्वारा यह जरूर है कि बिहार को कुछ अधिक संसाधन उपलब्ध कराया जाता है,फिर भी जितनी राशि उपलब्ध करायी जाती है उससे यह समस्या दूर करने में 15 वर्ष का समय लगेगा. उन्होंने बताया कि बिहार में 21 फीसदी लोगों के पास खाने की समस्या हो तो उसके पास घर मकान की अभी बात ही नहीं की जा सकती. नीति आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में 10 प्रतिशत लोग ही स्वास्थ्य बीमा से जुड़े हुए हैं.
अभी राज्य की 90 फीसदी जनता को किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुरक्षा अभी तक उपलब्ध नहीं है. गरीब जनता को स्वास्थ्य बीमा से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से अभी एक करोड़ से अधिक लोगों को जोड़ा जाना है. सामाजिक सुरक्षा के तहत मातृत्व योजनाओं का लाभ अभी तक सिर्फ 53 प्रतिशत को ही उपलब्ध हो रहा है.
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