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प्रदेश में बारगेनिंग की स्थिति में नहीं रही कांग्रेस

पटना : विधानसभा उपचुनाव के बाद कांग्रेस नेताओं को आगामी विधानसभा आम चुनाव को लेकर पीड़ा हो रही है. पार्टी नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को अभी बड़े मंथन की आवश्यकता है. उपचुनाव में जिस तरह के परिणाम आये हैं उससे यह आशंका है कि महागठबंधन में कांग्रेस सीटों की बारगेनिंग की स्थिति में […]

पटना : विधानसभा उपचुनाव के बाद कांग्रेस नेताओं को आगामी विधानसभा आम चुनाव को लेकर पीड़ा हो रही है. पार्टी नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को अभी बड़े मंथन की आवश्यकता है.

उपचुनाव में जिस तरह के परिणाम आये हैं उससे यह आशंका है कि महागठबंधन में कांग्रेस सीटों की बारगेनिंग की स्थिति में भी नहीं होगी. सबसे अधिक चिंतित पार्टी के 26 विधायक हैं. अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है. बिहार में महागठबंधन के अंदर चुनाव में उतारना होगा, तो राजद के भरोसे ही सीटों की उम्मीद रखनी होगी.
2015 में पार्टी को जदयू-राजद और कांग्रेस की महागठबंधन में चालीस सीटें मिली थीं, जिनमें 27 विधायक चुनाव जीत कर आये. इस बार महागठबंधन से जदयू बाहर हो चुका है. महागठबंधन में अब राजद सबसे बड़ी पार्टी है.
इस उपचुनाव में सबसे अधिक सदमा किशनगंज में हुई पराजय का लगा है. धर्मनिरपेक्ष मतों पर किशनगंज में जीत करती रही कांग्रेस को एक वैसी पार्टी के प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा है, जो एक नजरिये की राजनीति करती है. साथ ही उसका राज्य में कोई अस्तित्व भी नहीं है.
हाल ही में विधानसभा उपचुनाव के पहले आयोजित प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के विधायकों और जिलाध्यक्षों ने भी शक्ति सिंह गोहिल के समक्ष एक-एक कर अपनी राय जता दी थी. इसमें अधिसंख्य विधायकों का मत राजद से पीछा छुड़ाने को लेकर व्यक्त किया गया था. ऐसे विधायकों व नेताओं का मानना है कि उपचुनाव में महागठबंधन पूरी तरह से बिखर गया है.
जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी महागठबंधन से बागी हो गये, जबकि उपेंद्र कुशवाहा उपचुनाव में पूरी तरह से उदासीन रहे. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य अमरेंद्र सिंह बताते हैं कि महाराष्ट्र व हरियाणा के साथ बिहार में हुए उपचुनाव में विपक्ष की स्थिति में सुधार हुआ है. लोगों ने सरकार के खिलाफ मत डाला.
कांग्रेस अपनी परंपरागत किशनगंज की सीट असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) से हार गयी. समस्तीपुर में पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा. अगर दोनों सीटों पर पार्टी संघर्ष की स्थिति में रहती तो विधानसभा चुनाव में सीटों का मोलतोल भी किया जा सकता है.
मजबूती पर ध्यान दे रही पार्टी संगठन की मजबूती पर ध्यान दे रही है. बूथ लेवल तक संगठन को मजबूत किया जायेगा. जहां तक अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या की बात है तो इसमें अभी देरी है. कांग्रेस अपनी ताकत जानती है.
डाॅ मदन मोहन झा, प्रदेश अध्यक्ष
पार्टी की अभी हैसियत
अकेले चुनाव लड़ने की नहीं
कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, पर इसे विस चुनाव में गठबंधन में ही उतरना चाहिए. पार्टी की अभी हैसियत अकेले चुनाव लड़ने की नहीं है. गठबधंन जिससे भी हो, यह आलाकमान को तय करना है.
विनय वर्मा , विधायक कांग्रेस

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