29.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

खो गये 500 तालाब

रिपोर्ट है कि जिला मत्स्य कार्यालय के पास 1022 तालाबों की जिम्मेवारी है, लेकिन प्रति वर्ष या प्रति पांच वर्ष में लगभग 500 तालाबों की ही बंदोबस्ती की जाती है. शेष तालाब कहां, किस स्थिति में है, इसकी कोई जानकारी नहीं है. इसके अलावा शहर के कई बड़े तालाबों को पाट कर काॅलोनियां बस चुकी […]

रिपोर्ट है कि जिला मत्स्य कार्यालय के पास 1022 तालाबों की जिम्मेवारी है, लेकिन प्रति वर्ष या प्रति पांच वर्ष में लगभग 500 तालाबों की ही बंदोबस्ती की जाती है. शेष तालाब कहां, किस स्थिति में है, इसकी कोई जानकारी नहीं है.
इसके अलावा शहर के कई बड़े तालाबों को पाट कर काॅलोनियां बस चुकी हैं. सरकार ने भी कई तालाबों को मिटा दिया है, उस पर सरकारी भवन खड़े हो गये. वहीं, अब नये तालाब बनाये नहीं जा रहे हैं. कुल मिला कर सवाल है कि आखिर उन तालाबों पर कोई क्यों ध्यान नहीं दे रहा, जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के लिए जरूरी है.
शहर के पुराने तालाब समय के साथ समाप्त
बात जब पुराने तालाबों की आती है तो सबसे पहला नाम गुणसागर तालाब का आता है. सैदपुर- गायघाट के इलाके में स्थिति इस तालाब पर अब कालोनियां बस गयी हैं. जिला मत्स्य कार्यालय की ओर से इसकी बंदोबस्ती 1996 तक हुई थी. अब उसका वजूद नहीं दिखता. लगभग 36 एकड़ क्षेत्र अब कंक्रीट के जंगलों में बदल चुका है. इस पर अतिक्रमण किया जा चुका है. इसके अलावा कुम्हरार स्थित बड़े तालाब को भी भर दिया गया है. जहां पटना अंचल का सदर कार्यालय बनना है.
पुराने समय के तालाबों पर बने हैं आज के भवन
वहीं पृथ्वीपुर तालाब पर रेलवे कॉलोनी बन गयी. आज का तारामंडल भी तालाब पर बना हुआ है. इसके अलावा आर ब्लॉक स्थिति महा-लेखागार भवन भी तालाब पर बना हुआ है. वैशाली सिनेमा के पीछे भी तालाब का काम तमाम हो चुका है. इसके अलावा वेटनरी तालाब को भर कर कौटिल्य नगर बसा दिया गया. मीठापुर बस स्टैंड के पास का पूरा क्षेत्र वर्ष भर जल मग्न रहता था. पूरा इलाका जल्ला क्षेत्र से जाना जाता है. आज पूरे जगह को पाट कर कॉलेजों की इमारतें खड़ी की जा रही हैं.
अदालतगंज तालाब बन सकता है उदाहरण
वर्षों से बदहाली व अतिक्रमण का शिकार रहे अदालतगंज तालाब की स्थिति सुधरने वाली है. नगर निगम ने इसे स्मार्ट सिटी योजना के तहत ले लिया है. अब इसे 16 करोड़ की लागत से तालाब को फिर से बनाने, पानी बदलने, अतिक्रमण मुक्त करने, लाइटिंग से लेकर एक घुमने की जगह बनाने का काम शुरू कर दिया गया है, जिसे 15 अगस्त तक पूरा कर लिया जायेगा. अगर इस तालाब की दशा सुधर जाती है, तो ये अन्य तालाबों के लिए एक उदाहरण बन जायेगा.
खोजे नहीं मिल रहे कुछ तालाब
ले में कुछ तालाब ऐसे भी हैं, जो जिला मत्स्य कार्यालय को खोजे नहीं मिल रहे हैं. बहादुरपुर में स्थिति चार एक के तालाब में मात्र 10 कट्ठा छोड़ कर बाकी जमीन गायब हो चुकी है. नंदलाल छपरा में तीन एकड़ के तालाब का कुछ भाग बचा है. कंकड़बाग के हनुमान नगर में स्थिति 41 एकड़ तालाब का कोई अता-पता नहीं है. पटना सिटी के रानीपुर स्थित तीन एकड़ के तालाब का अवशेष तक नहीं मिल रहा. इसके अलावा चकअमानत, सिमली मुरादपुर (पांच एकड़) व पटना सिटी का नगला तालाब (पांच एकड़) भी गायब है.
प्राइवेट को संरक्षण
अगर कोई अपने निजी जमीन पर तालाब बनाकर मछली पालन करना चाहता है, तो जिला मत्स्य कार्यालय की ओर से कई तरह की सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं. इसके अलावा मछली पालन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. प्राइवेट तालाबों की संख्या अगर बढ़ती है, तो भूजल रिचार्ज करने में इसका बड़ा लाभ होगा.
तालाबों का कई वैज्ञानिक, पर्यावरण के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व भी है. तालाब भू-गर्भ रिचार्ज करने का सबसे सशक्त माध्यम होते हैं.
इसके अलावा जिस क्षेत्र में तालाब रहते हैं, वहां बाढ़ के समय भी उनका बहुत बड़ा फायदा मिलता है. वहीं तालाब अपने खास क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए जरूरी होते हैं. सूक्ष्म जीव से लेकर बड़े जीव व मानव इस जैव विविधता में तालाब के साथ शामिल होते हैं. राज्य व शहर में तालाबों का सांस्कृतिक महत्वपूर्ण रहा है. सभी संस्कृतियों में तालाब को महत्व दिया गया है.
—अतुल आदित्य पांडेय, भू-गर्भशास्त्र, साइंस कॉलेज, पटना
नये बड़े प्रोजेक्टों को बगैर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्लान की स्वीकृति नहीं दी जा रही है. पटना विवि में भी इस तरह का प्रोजेक्ट लगाया जा रहे है. मगर, जहां तक तालाबों की बात है तो ये प्राकृतिक भूू-जल रिचार्ज के सबसे बेहतर माध्यम होते हैं. वॉटर टेबुल को मेनटेन करने में इसका बहुत काम है. दूसरा गर्मी व सुबह के समय बड़े तालाबों पर लोग टहलने व व्यायाम करने आते हैं. दूसरे शहरों में इस तरह की व्यवस्थाएं की गयी हैं. पटना व राज्य के अन्य शहरों में भी इस तरह का प्रोजेक्ट बढ़ना चाहिए.
—डॉ बीरेंद्र प्रसाद, सदस्य, राज्य इंवायरमेंटल क्लियरेंस कमेटी सह प्रोफेसर पटना विवि
अाज से लगभग 40-50 वर्ष पहले पटना जिले में तालाबों की संख्या एक हजार के करीब थी, जबकि अब बड़े तालाबों की संख्या 200 के लगभग रह गयी है. वहीं पूरे राज्य में 250 लाख तालाबों की संख्या थी, जो चार से पांच दशक में 90 हजार के लगभग आ चुकी है. इसके अलावा सबसे बड़ी बात है कि तालाबों पर तेजी से अतिक्रमण हो रहा है. आम लोगों के अलावा सरकारी स्तर पर भी तालाबों को नष्ट किया जा रहा है. शहर में पटना एम्स की जगह स्थित 35 एकड़ तालाब का समाप्त होना. नेताजी सुभाष पार्क का बनना कई उदाहरण हैं.
—बीके मिश्रा, पूर्व प्राचार्य पटना साइंस कॉलेज

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें