अनिकेत त्रिवेदी , पटना : अब इसे लोकतंत्र की मजबूरी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन छोटी पार्टियों व निर्दलीय उम्मीवारों ने पटना साहिब व पाटलिपुत्र लोकसभा सिस्टम को केवल बोझ देने का काम किया है. संवैधानिक रूप से भले ही उनका प्रत्याशी होना हक बनाता हो, मगर किसी भी निर्दलीय व छोटी पार्टियों के उम्मीवारों में इतना दम नहीं था कि वो अपना जमानत तक बचा सकें.
जिनके कारण जिला निर्वाचन कार्यालय दोनों लोकसभाओं में दो-दो इवीएम(बीयू) का प्रयोग करना पड़ा. अगर, उन सभी उम्मीवारों को मिले वोट को जोड़ दिया जाये तो उनका प्रतिशत किसी भी विधानसभा में छह फीसदी से अधिक नहीं रहा. कुल मिला कर इस चुनाव में इनकी स्थिति वोट बटोरने वाली तो दूर, वोट काटने वाले की भी नहीं रही है.