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10 माह में ठीक हो सकता है सिजोफ्रेनिया का मरीज
पटना : इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के मानसिक रोग विभाग में आने वाले आधे से ज्यादा रोगी सिजोफ्रेनिया (एक तरह का पागलपन) बीमारी से पीड़ित होते हैं. यह किसी पर अनचाहा शक और वहम करने वाली बीमारी है जो ज्यादातर 15 से 35 उम्र के पुरुष व महिलाओं में देखने को मिलती है. हर साल […]
पटना : इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के मानसिक रोग विभाग में आने वाले आधे से ज्यादा रोगी सिजोफ्रेनिया (एक तरह का पागलपन) बीमारी से पीड़ित होते हैं. यह किसी पर अनचाहा शक और वहम करने वाली बीमारी है जो ज्यादातर 15 से 35 उम्र के पुरुष व महिलाओं में देखने को मिलती है. हर साल करीब दो हजार ऐसे मरीज आते हैं जो सिजोफ्रेनिया बीमारी की चपेट में होते हैं. समय से इलाज शुरू होने पर 10 माह में मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है.
यह कहना है आइजीआइएमएस के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल व मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ राजेश कुमार का. वे विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस पर आइजीआइएमएस में शुक्रवार को आयोजित एक सेमिनार में बोल रहे थे. कार्यक्रम का उद्घाटन आइजीआइएमएस के निदेशक डॉ एनआर विश्वास व डीन डॉ एसके साही ने किया.
लक्षण दिखने पर तुरंत सलाह लें
डॉक्टरों ने बताया कि समय से इलाज शुरू होने पर 8 से 10 माह में मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है. आमतौर पर युवा इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं. ऐसे में लक्षण दिखने पर तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए. माता-पिता में किसी एक को बीमारी होने पर बच्चे के चपेट में आने की आशंका 15 से 20, जबकि दोनों को होने पर चपेट में आने का खतरा 60 प्रतिशत तक बढ़ जाता है.
ये हैं इस बीमारी के लक्षण
कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश कुमार सिंह व मानसिक रोग विभाग की डॉ निष्का ने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित रोगी को ऐसा महसूस होता है कि उसे अनचाही आवाजें सुनाई देती हैं. उसे उसी चीज पर विश्वास होता है जो मुमकिन नहीं है. ऐसा लगता है कि वह खुद से बातें कर रहा है.
रोगी को अपनों पर और पड़ोसियों पर कई मामलों में हद से ज्यादा शक होने लगता है. इनमें ज्यादातर वे रोगी होते हैं जिन्हें खुद पर तंत्र विद्या से काला जादू होने का शक रहता है. उन्होंने बताया कि ज्यादातर मानसिक तनाव से ये बीमारी होती है. वहीं डॉ श्वेता राय ने बताया कि संगोष्ठी में इस बीमारी को लेकर फैली भ्रांतियों के बारे में जानकारी दी गयी.
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