29.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विकास से कोसों दूर हैं दानापुर दियारे की छह पंचायतें

अनुज शर्मा, पटना : काली सड़कें स्ट्रीट लाइट में नहाकर कैसी दूधिया दिखती हैं. लोगों का जीवन बचाने को सरकारी अस्पताल भी 24 घंटे खुले रहते हैं. सरकार ने उच्च शिक्षा की इमारतें भी बुलंद बनायी हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट क्या होता है. बिना पैदल चले भी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है. यह देखने के […]

अनुज शर्मा, पटना : काली सड़कें स्ट्रीट लाइट में नहाकर कैसी दूधिया दिखती हैं. लोगों का जीवन बचाने को सरकारी अस्पताल भी 24 घंटे खुले रहते हैं. सरकार ने उच्च शिक्षा की इमारतें भी बुलंद बनायी हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट क्या होता है. बिना पैदल चले भी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है. यह देखने के लिए दियारे के लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.

नाव में बैठकर राजधानी के किनारे आना पड़ता है. विकास क्या होता है यह पटना पहुंचकर दिखता है. बिहार की राजधानी पटना का हिस्सा होने के बाद दानापुर विधानसभा क्षेत्र की छह पंचायतें पानापुर, मानस, कासिमचक, हेतनपुर, गंगहरा और पतलापुर के गांव दियारा क्षेत्र में आते हैं. यहां जिंदगी बहुत ही कठिन है.
सरकार ने यहां काम तो बहुत किया है, लेकिन यहां की भौगोलिक स्थिति, प्रशासन की अनदेखी से दिखाई नहीं देती. पक्का पुल के बिना यहां विकास पहुंचता नहीं दिख रहा. शंकरपुर खास के लालमोहन राय बताते हैं कि पूरे दियारे में दो ही हाइस्कूल हैं. एक गंगहरा व दूसरा पानापुर में. मैट्रिक के बाद पढ़ने के लिए गंगा पार करनी पड़ती है. पतलापुर में एक हेल्थ सेंटर खुला भी था, लेकिन एक साल के अंदर ही बंद हो गया.
सरकारी अस्पताल एक भी नहीं है.
सड़क को चलने लायक बनाते हैं ग्रामीण
आज भी लोगों को नाव से आना-जाना पड़ता है. दिसंबर से जून तक पीपा पुल चालू रहता है, तो पटना से पतलापुर बाजार तक डग्गेमार वाहन चलते हैं. इससे लोगों को कुछ राहत मिलती है. पुल बंद होते ही वाहन बंद हो जाते हैं. इसके बाद तो दियारे के लोग अपने गांव से पैदल ही पुरानी पानापुर पश्चिमी टोला घाट आते हैं. यहां से नाव में बैठकर गंगा पार कर दानापुर-पटना पहुंचते हैं.
घाट पर एक पेड़ के नीचे हरिंदर राम और कमल राय बैठे कटाव पर बात कर रहे थे. दियारे में रहने वाले हरिंदर का घर कटाव में चला गया है. वह दानापुर में ब्लाॅक परिसर में करीब सात साल से पॉलीथिन तान कर रह रहे हैं. 159 परिवार उनकी तरह विस्थापित हैं. कमल राय का घर तो बच गया है, लेकिन खेत कटाव में चला गया है.
उनको डर है कि इस बार घर न कटाव में बह जाये. दस साल पहले बनी पीसीसी रोड उखड़ रही है या रेत में डूब रही है. कुछ महीनों के अंतराल पर ग्रामीण सामूहिक रूप से कई फुट रेत उठवाकर सड़क को चलने लायक बनाते हैं. कासिमचक के तारकिशोर कहते हैं 71 साल बाद बिजली तो पहुंच गयी है, लेकिन इलाज व शिक्षा की सुविधा नहीं मिली.
हरसान चक में कौशल्या के घर में अभी भी दीपक जलता है. अन्य महिलाएं भी शिक्षा और स्वास्थ्य काे लेकर चिंतित हैं. वह कहती हैं बिजली से कूलर की हवा मिल रही है, लेकिन बीमार होने पर यहां दवा नहीं मिलती.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें