अमित कुमार, पटना : इस्ट का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले देश के सातवें सबसे पुराने पटना विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी है. अभी इस विश्वविद्यालय के कॉलेजों में कुल स्वीकृत पद के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई शिक्षक ही कार्यरत हैं. विवि में शिक्षकों के कुल 810 पद हैं, जिसके मुकाबले महज 311 शिक्षक ही कार्यरत हैं.पिछले तीन वर्षों में 94 शिक्षक रिटायर हो चुके हैं. गेस्ट फैकल्टी के भरोसे कॉलेज होने से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, छात्र भी पलायन को मजबूर हो रहे हैं.
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यहां शिक्षा को संभाल रहे ‘अतिथि’
अमित कुमार, पटना : इस्ट का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले देश के सातवें सबसे पुराने पटना विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी है. अभी इस विश्वविद्यालय के कॉलेजों में कुल स्वीकृत पद के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई शिक्षक ही कार्यरत हैं. विवि में शिक्षकों के कुल 810 पद हैं, जिसके मुकाबले महज 311 शिक्षक ही […]
किसी कॉलेज में हैं मात्र एक नियमित शिक्षक
वर्तमान में किसी विभाग में शून्य तो कहीं पूरे काॅलेज में ही एक ही नियमित शिक्षक मौजूद हैं. आने वाले समय में भी बड़ी संख्या में शिक्षकों के रिटायर होने से चिंता बढ़ने वाली है. यह हाल तब है जब 2014 में निकली वैकेंसी से 68 शिक्षक आये हैं, जो पिछले छह साल से चल ही रही है. अब न तो नया पद ही स्वीकृत हो रहा है और न ही नयी वैकेंसी ही आ रही है.
पुरानी वैकेंसी अगर पूरी भी हो जाये तो राज्य के विश्वविद्यालयों में आधे सीट भी नहीं भरेंगे. यही स्थिति कमोवेश राज्य के सभी विश्वविद्यालयों की है. वर्तमान स्थिति में विवि को जल्द शिक्षक मिलने की उम्मीद भी नहीं दिख रही.
छात्र बढ़ रहे लेकिन शिक्षक नहीं
पटना विश्वविद्यालय में छात्र बढ़ रहे हैं, लेकिन शिक्षक बढ़ने के बजाये घटते ही जा रहे हैं. 50 साल पहले 1976 में जब विवि में सिर्फ 11 हजार छात्र पढ़ते थे, तो उस समय कुल 925 शिक्षकों के पद स्वीकृत थे और ज्यादातर विभागों में शिक्षक मौजूद थे. 2006 में इंटर शिक्षा को अलग कर दिया गया.
इसके साथ ही इंटर के 115 पद भी विवि ने सरेंडर कर दिया. सिर्फ 810 पद बचे और शिक्षक लगातार घटते गये. वर्तमान में करीब 20 हजार छात्र विवि में पढ़ते हैं, लेकिन शिक्षकों की संख्या मात्र 310 है और नये पद पिछले 40 वर्षों से स्वीकृत नहीं हुए हैं.
बिना शिक्षक के चल रहे कई विभाग
स्थिति यह है कि कहीं पूरे कॉलेज में ही एक ही शिक्षक मौजूद हैं तो कहीं किसी स्नातक या पीजी विभाग में एक भी शिक्षक नहीं हैं. पटना कॉलेज में संस्कृत, पर्सियन और इतिहास में सिर्फ एक शिक्षक बचे हैं. पीजी बांग्ला विभाग में एक भी शिक्षक नही हैं. इसके अतिरिक्त पटना कॉलेज के उर्दू, स्टैट, अरबी, बांग्ला व राजनीति शास्त्र में एक भी शिक्षक नहीं हैं.
बीएन कॉलेज व मगध महिला कॉलेज के इतिहास विभाग में शून्य शिक्षक हैं. अब जहां किसी विभाग में शून्य शिक्षक हो वहां की स्थिति समझी जा सकती है. ऐसी ही स्थिति लगभग सभी कॉलेजों में है.
शिक्षकों की कमी झेल रहा… देश का 7 वां सबसे पुराना विश्वविद्यालय पीयू
1 क्षमता के एक तिहाई शिक्षकों से ही चलाना पड़ रहा काम, गुणवत्ता हो रही प्रभावित
2 किसी विभाग में शून्य तो कहीं पूरे कॉलेज में सिर्फ एक शिक्षक, राज्यभर से छात्र पढ़ने आते हैं पटना यूनिवर्सिटी में
एक विभागाध्यक्ष संभाल रहे दो विभाग
शिक्षकों के नहीं रहने से स्थिति यह है कि एक विभागाध्यक्ष दो विभागों को संभाल रहे हैं. यह पीजी स्तर से लेकर कॉलेजों में भी दशा है. दर्शनशास्त्र की हेड बांग्ला का भी हेडशिप देख रही हैं, क्योंकि वहां भी शिक्षक नहीं हैं तो कहीं पॉलिटिकल साइंस की शिक्षक, इतिहास विभाग को संभाल रहे हैं.
इसी तरह पटना कॉलेज में संस्कृत के विभागाध्यक्ष राजनीति शास्त्र विभाग भी संभाल रहे हैं. स्टैटिस्टिक विभाग को गणित के विभागाध्यक्ष संभाल रहे हैं. बीएन कॉलेज में इतिहास विभाग को राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष संभाल रहे हैं. मगध महिला कॉलेज में भी इतिहास विभाग को समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष देख रहे हैं.
पांच दशक से नहीं हुई बहाली
पटना विश्वविद्यालय में करीब 300 से अधिक पद ऐसे हैं, जिसमें प्रोफेसर व रीडर (एसोसिएट प्रोफेसर) की सीधी बहाली होती है. लेकिन विगत 50 वर्षों से उक्त सीटों पर कोई भी बहाली नहीं हुई है, जबकि सारे पद खाली हो चुके हैं. अब समस्या यह है कि उक्त सीटों को प्रमोशन के जरिये नहीं भरा जा सकता है.
इसकी वैकेंसी सरकार निकालती है और इसमें दूसरे विश्वविद्यालय के लेक्चरर और रीडर भी आवेदन करते हैं. लेकिन इसके लिए वैकेंसी निकल ही नहीं रही है, तो ये सीटें खाली ही पड़े हैं. वर्तमान में जितने भी रीडर या प्रोफेसर बन रहे हैं, वह प्रमोशन से बन रहे हैं.
यह जब रिटायर होते हैं तो सीट लेक्चरर की खाली होती है. प्रोमोटेड शिक्षकों को भी उक्त सीटों पर शिफ्ट करने का प्रावधान नहीं है. अगर ऐसा भी हो जाते तो लेक्चरर के पद अधिक खाली होंगे और उन पर अभी बहाली से अधिक शिक्षक आ सकते थे लेकिन उन्हें भी ब्लॉक करके रखा गया है. यही वजह है कि लेक्चरर की बहाली पूरी होने के बाद भी करीब आधी सीटें हमेशा खाली ही रह जाती हैं.
गुणवत्ता पर सवाल
जहां शिक्षक नहीं हैं वहां गेस्ट फैकल्टी से काम चलता है. लेकिन गेस्ट फैकल्टी की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहते हैं, क्योंकि उन्हें राशि काफी कम दी जाती है और ऐसे में कोई योग्य शिक्षक जल्दी क्लास नहीं लेना चाहता. यहां तक कि रिटायर शिक्षक भी क्लास लेने से पीछे हट जाते हैं.
कॉलेजवार शिक्षक
कमी के कारण कॉलेज चलाने में कठिनाई होती है. क्वालिटी एजुकेशन के लिए पर्याप्त शिक्षक जरूरी हैं. हमलोग गेस्ट फैकल्टी की मदद लेते हैं लेकिन कॉलेज के स्तर की गुणवत्ता के लिए नियमित बहाल शिक्षक जरूरी हैं.
प्रो राजकिशोर प्रसाद, प्राचार्य, पटना कॉलेज
हमारे यहां पार्ट टाइम शिक्षकों की बहाली
वर्षों से नहीं हुई है और 14 पद खाली हैं. 14 फुल टाइम शिक्षकों के पद हैं उनमें सिर्फ आठ शिक्षक हैं. कई शिफ्ट में कक्षाएं चलानी पड़ती हैं, ताकि रूटीन पूरा हो.
प्रो मोहम्मद शरीफ, प्राचार्य, पटना लाॅ कॉलेज
शिक्षकों की कमी तो है. पर्याप्त शिक्षक नहीं होने से प्रभाव तो पड़ता ही है. हालांकि हमलोगों का भरसक प्रयास होता है कि छात्रों को इसका एहसास नहीं होने दिया जाये और उन्हें पूरी कक्षाएं करायी जाएं. लेकिन, अगर अधिक शिक्षक हों तो गुणवत्ता अधिक होगी.
प्रो बीएन पांडे, प्राचार्य, वाणिज्य कॉलेज
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