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पटना : …उलटी-दस्त के चलते सालाना 40 हजार बच्चों की मौत
पटना : तमाम कोशिशों के बाद भी शिशु मृत्यु दर में कमीलाने के प्रयास नाकाम रहे हैं. हालात ये हैं कि प्रदेश में 5साल से कम उम्र के बच्चों की होने वाले मौतों की मुख्य वजहें निमोनिया, डायरिया और उलटी व दस्त बन रही हैं. इनमें उलटी व दस्त के कारण प्रदेश में हर साल […]
पटना : तमाम कोशिशों के बाद भी शिशु मृत्यु दर में कमीलाने के प्रयास नाकाम रहे हैं. हालात ये हैं कि प्रदेश में 5साल से कम उम्र के बच्चों की होने वाले मौतों की मुख्य वजहें निमोनिया, डायरिया और उलटी व दस्त बन रही हैं. इनमें उलटी व दस्त के कारण प्रदेश में हर साल करीब 40 हजार बच्चों की मौत हो जाती है. हालांकि इन सब बातों को ध्यान में रख कर दस्त से होने वाली मृत्यु की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग जल्दी ही दस्त निवारण पखवारा चलाने जा रहा है.
23 हजार बच्चे पहला जन्मदिन नहीं देख सके : फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में पटना सहित पूरे बिहार में 18.07 ख से अधिक बच्चों का जन्म हुआ. बड़ी बात तो यह है कि इनमें करीब 40 हजार बच्चों की मौत उलटी, दस्त के कारण हो गयी. शून्य से पांच साल के अंदर इन बच्चों की मौत हुई है. इतना ही नहीं इनमें 23 हजार ऐसे बच्चे हैं, जो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं देख पाये. यानी जन्म के एक साल के अंदर ही इन बच्चों ने दम तोड़ दिया. योजनाओं पर खर्च के बाद भी मौत प्रदेश में शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से दर्जन भर योजनाएं चलायी जा रही हैं. इन्हें सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में चलाने का दावा किया जा रहा है. उलटी, दस्त की दवाएं व इन्जेक्शन भी देने की बात कही जाती है. बावजूद जीरो से पांच साल तक के बच्चों की मौत का सिलसिला कम नहीं हो रहा है.
बोले डॉक्टर, इलाज से हो सकता है बचाव
उलटी, दस्त से होने वाली मृत्यु अधिकांशत: गर्मी और बरसात में होती है. संसाधनों व जानकारी के अभाव के कारण बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं.
बीमारी से होने वाली मौत को लेकर सभी माताओं को कुछ सावधानी बरत कर व सही समय पर सही इलाज से रोका जा सकता है. ओआरएस, दस्त व उलटी की दवा, जिंक की गोली के साथ सही उपचार, सही पोषक तत्वों की मात्रा, साफ पानी का प्रयोग, साबुन से हाथ धोने की प्रक्रिया, टीकाकरण, स्तनपान इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
– डॉ एनके अग्रवाल, शिशु रोग विशेषज्ञ
5 साल में तेजी से सुधरी व्यवस्था
-प्रसव 2010-11 में संस्थागत प्रसव 37.2% था, जो अब बढ़ कर 78.6% हो गया है
-नवजात बच्चे को जन्म के पहले घंटे में मां का दूध जरूरी होता है, यह 23.3% से 38.8% हो गया है
-विटामिन ए की खुराक पांच साल पहले 23.5% बच्चों को मिलती थी, जो बढ़ कर 48.3% हो गयी है
-फोलिक एसिड की टेबलेट 12% गर्भवतियों को दी जा रही थी, जो बढ़ कर 21% तक पहुंच गयी है
-गर्भवती महिलाओं की पूर्ण जांच के प्रतिशत में 12% का इजाफा हुआ है
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