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पटना : गंडक की धार देखने व बाघ की दहाड़ सुनने से पहले कराह रहे हैं पर्यटक

अनुज शर्मा पटना : राजधानी से करीब 290 किमी दूर है वाल्मीकि टाइगर रिजर्व पार्क. यहां प्रकृति का कौन सा नजारा नहीं है. एक तरफ खड़ा हिमालय, दूसरी तरफ गंडक की धार. इनके बीच बाघों की दहाड़ है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र में प्रकृति बांह फैलाये पर्यटकों का स्वागत कर रही है. लेकिन, […]

अनुज शर्मा
पटना : राजधानी से करीब 290 किमी दूर है वाल्मीकि टाइगर रिजर्व पार्क. यहां प्रकृति का कौन सा नजारा नहीं है. एक तरफ खड़ा हिमालय, दूसरी तरफ गंडक की धार. इनके बीच बाघों की दहाड़ है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र में प्रकृति बांह फैलाये पर्यटकों का स्वागत कर रही है.
लेकिन, किसी को भी सम्मोहित कर लेने वाले राज्य के इकलौते वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) तक पहुंचना बहुत ही दुर्गम है. जर्जर सड़काें के कारण यहां पर्यटक आने से कतरा रहे हैं, जो आते हैं तो फिर लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. इसका सीधा असर क्षेत्र के पर्यटन उद्याेग पर पड़ रहा है. विदेशी पर्यटकों की संख्या 10 से घटकर दो फीसदी पर पहुंच गयी है.
वीटीआर पश्चिमी चंपारण जिले के सबसे उत्तरी भाग में नेपाल की सीमा के पास बेतिया से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर है. उत्तर में नेपाल के रॉयल चितवन नेशनल पार्क और पश्चिम में हिमालय पर्वत की गंडक नदी से घिरा हुआ है. यहां कम आबादी है और वन क्षेत्र के अंदर है. अपना वीटीआर उत्तराखंड के जिम कार्बेट और देश के अन्य टाइगर रिजर्व पार्क से कहीं भी कमतर नहीं है, लेकिन सड़कों की दशा ठीक न होने से यह पहली पसंद नहीं बन पा रहा है.
लग्जरी गाड़ी में भी हिचकोले कम नहीं
प्रभात खबर संवाददाता ने 17 नवंबर को पटना के अरण्यभवन से सुबह नौ बजे वीटीआर के लिए यात्रा शुरू की जो रात्रि पौने आठ बजे पूरी हुई. दस घंटे के इस कष्टदायी सफर ने आने का जोश ही खत्म कर दिया.
जेपी सेतु से हाजीपुर पहुंचने में ही धूल-धक्कड़ और जाम के झाम में फंस गया. हाईवे का हाल मत पूछो, इनोवा जैसी लग्जरी गाड़ी में भी हिचकोले इतने लगे की उल्टी तो किसी को सिरदर्द की शिकायत हो गयी. कार के अंदर बैठे हम कभी ताजी हवा के लिए कार का शीशा खोल रहे थे, तो कभी धूल के कारण उनको बंद कर रहे थे.
बेतिया से बगहा तक सड़क किनारे बंधे और खुले जानवर वाहन चालकों के लिए परेशानी खड़ी कर रहे थे. एक पालतू जानवर हमारी भी गाड़ी से टकरा गया. सफर का सबसे खौफनाक मंजर बगहा से शुरू हुआ. बगहा से वाल्मीकि नगर की लगभग 40 किमी की दूरी पूरी करने में हमें करीब ढाई घंटे लगे.
बदतर है सड़क मार्ग का हाल
राजधानी से वाल्मीकिनगर की दूरी करीब 290 किमी है. पश्चिम चंपारण जिले की सीमा छपुआ से वाल्मीकिनगर वाया बेतिया, लौरिया, रामनगर करीब 110 किमी है. छपुआ से चौतरवा करीब 60 किमी सड़क बन चुकी है.
चौतरवा से मदनपुर मोड़ तक लगभग 35 किलोमीटर एनएच 28 बी काफी जर्जर है. रामपुर चेक पोस्ट से मदनपुर मोड़ तक व मदनपुर मोड़ से बगहा रेल छितौनी पुल तक 20 किलोमीटर सड़क खंडहर है. चौतरवा चौक से लेकर मदनपुर मोड़ तक निर्माण अधूरा है. इससे आये दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं. सड़कों को लेकर छह माह पहले भारतीय थारु कल्याण महासंघ ने धरना भी दिया था.
ये जानवर हैं पार्क की शान
यहां पर आप बाघ, स्‍लॉथ बीयर, भेड़िये, हिरण, सीरो, चीते, अजगर, पीफोल, चीतल, सांभर, नील गाय, हाइना, भारतीय सीवेट, जंगली बिल्लियां, हॉग डीयर, जंगली कुत्ते, एक सींग वाले राइनोसिरोस तथा भारतीय भैंसे देख सकते हैं.
जो यहां है, वह कहीं नहीं
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में वो सभी खूबी हैं जो अन्य किसी अभ्यारण्य में शायद ही हो. बाघ, भालू, पहाड़ी मैना, जंगली भैंसा, हिरन, बैम्बू हट, ट्री-हट, एक्जिक्यूटिव सूट, इको हट और कैंटीन आदि सभी सुविधाएं हैं. गंडक नदी का तट समुद्री बीच का एहसास देता है. हिमालय के पहाड़ और नेपाल का शहर मनोहारी दृश्य बनाते हैं. कौलेश्वर , जटाशंकर मंदिर, वाल्मीकि आश्रम धर्म से जोड़ते हैं. आवासीय सुविधाएं इतनी सस्ती हैं कि 50 रुपये में डोरमेट्री तो वातानुकूलित सुइट रूम 1250 रुपये में उपलब्ध हैं.

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