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बौनेपन की गोद में बिहार का बचपन, 48% बच्चे बौनेपन की चपेट में, पूर्वी चंपारण में सबसे अधिक समस्या

पटना : तेजी से बढ़ते कुपोषण और बौनेपन को लेकर केंद्र से प्रदेश सरकार तक सतर्क हो गयी है. बिहार के 48 प्रतिशत बच्चे बौनेपन की चपेट में हैं. इससे मुकाबले के लिए तमाम योजनाओं को क्रियान्वित किया गया है, ताकि बिहार के बच्चे स्वस्थ हो जाएं. वर्ष 2025 तक का लक्ष्य रखा गया है. […]

पटना : तेजी से बढ़ते कुपोषण और बौनेपन को लेकर केंद्र से प्रदेश सरकार तक सतर्क हो गयी है. बिहार के 48 प्रतिशत बच्चे बौनेपन की चपेट में हैं. इससे मुकाबले के लिए तमाम योजनाओं को क्रियान्वित किया गया है, ताकि बिहार के बच्चे स्वस्थ हो जाएं. वर्ष 2025 तक का लक्ष्य रखा गया है. प्रदेश के 23 जिले संवेदनशील हैं, जहां कुपोषण के साथ ही बौनेपन ने भी बच्चों को गिरफ्त में लिया है.
मुख्य सचिव दीपक कुमार ने पिछले दिनों हुई बैठक में बच्चों में स्टंटेड ग्रोथ को लेकर विस्तार से चर्चा भी की थी. उन्होंने इसकी रोकथाम के लिए निर्धारित सूचकांक एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तय कार्यक्रमों के लगातार अनुश्रवण पर जोर दिया था.
उन्होंने समाज कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग को इसके लिए गंभीरता से काम करने के निर्देश भी दिये थे. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)-4 के आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार के बच्चों की सेहत अच्छी नहीं है. इससे सरकार हरकत में आयी है.
विशेषज्ञों की मानें तो कुपोषण तो था ही, अब नयी समस्या के रूप में बौनापन ने बिहार में पैर पैसारे हैं. बच्चे दुबले-पतले, कमजोर तो हो ही रहे हैं, अब उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई भी नहीं बढ़ रही. इसकी वजह कई हैं. जैसे – कम उम्र में शादी, पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं मिल पाना आदि. इसके कारण मां कमजोर रहती है तो शिशु कैसे स्वस्थ होगा.
ऐसी माताओं के शिशु बौनेपन और कुपोषण की चपेट में हैं. राष्ट्रीय पोषण अभियान का मकसद प्रतिवर्ष दो फीसदी की दर से बौनापन, दो फीसदी की दर से कुपोषण, दो फीसदी की दर से दुबलापन और तीन फीसदी की दर से एनीमिया के मरीजों की संख्या में कमी लाना है.
समाज कल्याण, स्वास्थ्य व शिक्षा विभाग का मिलेगा साथ, 2025 तक का मिला लक्ष्य
दरअसल हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट में बिहार में शून्य से पांच साल तक के 48.3 फीसदी बच्चों को कुपोषण के चलते बौनेपन का शिकार बताया गया है. साथ ही राज्य में कुल 47.3 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं.
अधिकारियों की मानें तो सरकार ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर पूरा कार्यक्रम तय कर लिया है. ‘स्निप’ के माध्यम से सात साल का खाका खींचा गया है. ‘मिशन मालन्यूट्रिशन फ्री इंडिया’ के तहत भी काम हो रहा है.
संवेदनशील 23 जिलों में स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से काम किया जा रहा है. इसमें शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के भी पदाधिकारी लगातार नजर रख रहे हैं और अपने स्तर से योजनाओं को सफल बनाने में मदद कर रहे हैं.
प्रभावित जिलों की परियोजनाओं पर खास नजर
संवेदनशील 23 जिलों की सभी परियोजनाओं के आंगनबाड़ी केंद्रों पर सरकार की नजर है. इन केंद्रों पर विशेष इंतजाम किये जा रहे हैं. सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रत्येक माह के 19 तारीख को अन्नप्राशन (ऊपरी आहार) कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.
सबसे ज्यादा प्रभावित जिले
मधेपुरा,कैमूर,भोजपुर,सारण,सीवान,वैशाली ,मुंगेर, जमुई,भागलपुर, किशनगंज,पूर्णिया, कटिहार,सहरसा,सुपौल,अररिया,पूर्वी चंपारण,पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर,दरभंगा,बक्सर,गया,नवादा,नालंदा
राष्ट्रीय पोषण माह में हुए कार्यक्रम
राष्ट्रीय पोषण माह के तहत बिहार में सितंबर में आईसीडीएस निदेशालय की ओर से तमाम जिलों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये गये थे. विभाग का दावा है कि इसमें दो करोड़ से अधिक लोगों की भागीदारी हुई. अधिकारियों की मानें तो गर्भवती महिलाओं और बच्चों में कुपोषण कम करने को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है.
इसके लिए समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) निदेशालय की देखरेख में सभी जिलों में व्यापक स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. राज्य के करीब 94,000 आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविका और सहायिका सहित 84,000 से अधिक आशा वर्कर का भी सहयोग लिया गया था.

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