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पटना : टीबी के इलाज में कर्जदार बने लोगों की पहल, अब दूसरे मरीजों को दिखा रहे राह
आनंद तिवारी पटना : इसे सुखद आश्चर्य ही कहा जायेगा कि महंगे इलाज और डॉक्टरों की ‘लूट’ के शिकार बने लोग अब दूसरे टीबी मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों के क्रूर नेटवर्क से बचाना चाहते हैं. दरअसल, पटना में पुराने टीबी मरीज, जो प्राइवेट अस्पतालों के मनमाने इलाज और आर्थिक शोषण के शिकार हुए हैं, उन्होंने […]
आनंद तिवारी
पटना : इसे सुखद आश्चर्य ही कहा जायेगा कि महंगे इलाज और डॉक्टरों की ‘लूट’ के शिकार बने लोग अब दूसरे टीबी मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों के क्रूर नेटवर्क से बचाना चाहते हैं. दरअसल, पटना में पुराने टीबी मरीज, जो प्राइवेट अस्पतालों के मनमाने इलाज और आर्थिक शोषण के शिकार हुए हैं, उन्होंने एक संगठन बनाया है.
इसमें केवल पुराने टीबी मरीज हैं, जो अब ठीक हो चुके हैं. ये लोग घर-घर जाकर टीबी मरीजाें को खोज कर उन्हें नि:शुल्क या सस्ते इलाज के लिए राह दिखाते हैं. वे खुद जाकर उन्हें सरकारी अस्पतालों में भर्ती तक कराते हैं. दरअसल, इन लोगों ने प्राइवेट अस्तपालों में इलाज के दौरान महसूस किया कि अगर सही रास्ते और नियम-कायदे पता हों तो सरकारी अस्पतालों में भी बेहतर इलाज कराया जा सकता है.
जानकारी के मुताबिक जो लोग गंभीर रूप से बीमार नये टीबी मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की लूट से बचाने में लगे हैं, वे खुद के इलाज के दौरान न केवल कर्जदार बन गये थे, बल्कि घर-बार भी बेच बैठे हैं. फिलहाल ये लोग टीबी के मरीजों को चिकित्सा जगत में मची लूट से आगाह करने और उन्हें सही राय देने के लिए एक समूह के रूप में काम कर रहे हैं.
भीख मांगने की आ गयी थी नौबत : दूसरों की भाड़ा गाड़ी चला कर एक-एक पैसा जमा करने वाले गोपालगंज के राम दयाल महतो को टीबी ने एक समय कर्जदार बना दिया था. काम की तलाश में पटना आये राम दयाल को जब काम नहीं मिला तो भीख मांगने की नौबत तक आ गयी. हाथ का हुनर और पत्नी-बच्चों को पालने के लिए फिर गाड़ी चलायी. तीन साल की मेहनत के बाद उसने कर्ज चुका दिया. रामदयाल की मानें, तो तब उनको सरकार की चल रही योजनाएं और टीबी जांच केंद्रों की जानकारी नहीं थी. अगर रहती तो शायद वह कर्जदार नहीं बनते. तमाम डॉक्टरों ने मनमाना इलाज किया था. यह स्थिति सिर्फ राम दयाल के साथ ही नहीं, बल्कि लखीसराय के राजीव कुमार, समस्तीपुर की सोनम कुमारी और जमुई जिले की स्मृति कुमारी के साथ भी हुई, जब डॉक्टरों ने मनमाना इलाज किया. इनसे सिर्फ पैसा बनाया. डॉक्टरों से तभी पीछा छूटा, जब ये लोग कर्जदार हो गये.
डॉक्टरों ने फेफड़ा काटने की सलाह और मांगे Rs 5 लाख
समस्तीपुर के रहने वाले सत्येंद्र नाथ झा को टीबी की बीमारी थी. बेहतर इलाज के चक्कर में सत्येंद्र अपना इलाज समस्तीपुर के ही एक प्राइवेट अस्पताल में करा रहे थे. करीब एक साल तक इलाज चला, बावजूद बीमारी कंट्रोल नहीं हुई, बल्कि बाद में वे एमडीआर टीबी की चपेट में आ गये. नतीजा एक प्राइवेट डॉक्टर ने फेफड़े में संक्रमण की बात कहकर फेफड़ा काटने की सलाह दे डाली. इसके लिए पांच लाख रुपये की डिमांड कर दी. बाद में उन्हें टीबी जांच सेंटर के बारे जानकारी मिली, लगातार चार माह इलाज चला और अब बीमारी कंट्रोल में है.
20 दिनों में थमा दिये थे डेढ़ लाख के बिल
मजदूरी करने वाले लखीसराय के राजीव कुमार को चार साल पहले टीबी हुआ था. अच्छे इलाज के चक्कर में राजीव ने लखीसराय के ही एक प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर से संपर्क किया. डॉक्टर ने उसे तुरंत भर्ती कर लिया. 20 दिन भर्ती करने के बाद करीब डेढ़ लाख रुपये का बिल थमा दिया. अंत में राजीव को कर्ज लेने की नौबत अा गयी. हालांकि, बीमारी तो ठीक हो गयी, लेकिन कर्ज के भार से वह आज भी उबर नहीं पाया है.
टीबी मुक्ति वाहिनी नेटवर्क के तहत जगा रहे अलख
टीबी से कर्जदार हुए राजीव, राम दयाल, स्मृति, सत्येंद्र नाथ झा व सोनम कुमारी का कहना है कि इस बीमारी का इलाज नि:शुल्क होता है. हालांकि इसके लिए लोगों को पहले जागरूक होने की जरूरत है. खुद की तरह कोई दूसरा मरीज कर्जदार न हो, इसके लिए इन लोगों ने टीबी मुक्ति वाहिनी नेटवर्क बिहार नाम से एक टीम बनायी है. इसमें उन्होंने 119 ऐसे मरीजों को शामिल किया है, जो टीबी की जंग जीत चुके हैं. इनकी देखरेख में 243 मरीजों का अलग-अलग टीबी सेंटरों पर नि:शुल्क इलाज चल रहा है.
मुफ्त इलाज और Rs 1000 की मिलती है सरकारी मदद
रीच के पंकज सिंह बघेल ने बताया कि टीबी मरीजों का इलाज पूरी तरह से नि:शुल्क है. इतना ही नहीं, अब टीबी के नये मरीजों को सरकार हर महीने एक हजार रुपये की आर्थिक मदद दे रही है. यह रकम उन्हें अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए दी जाती है, ताकि वे अपने खान-पान पर ध्यान दे सकें.
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