पटना : देश में सबसे पहले 1954 में मजदूरों का पलायन रोकने बनाए गए भूमि सुधार कानून को लागू करने वाले बिहार राज्य में मजदूरों का पलायन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है. हालांकि इसमें उत्साहवर्धक कमी जरूर आई है. आधिकारिक आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं. साल में करीब बीस […]
पटना : देश में सबसे पहले 1954 में मजदूरों का पलायन रोकने बनाए गए भूमि सुधार कानून को लागू करने वाले बिहार राज्य में मजदूरों का पलायन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है. हालांकि इसमें उत्साहवर्धक कमी जरूर आई है. आधिकारिक आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं. साल में करीब बीस लाख मजदूर रोजी-रोटी के लिए देश के अन्य भागों में पलायन कर जाते हैं.
बात साफ है कि बिहारी मजदूरों की दुनिया में छाये अंधेरे को दूर करने के लिए अभी भी काफी प्रयास करने की जरूरत है. इस लिहाज से मजदूर दिवस बिहार में कहीं ज्यादा प्रासंगिक है. अलबत्ता ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बिहार के श्रमिकों की दुनिया गिरमिटिया मजदूरों के नाम से समूची दुनिया में आज भी पहचानी जाती है. जानकारी हो कि बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में दुनिया का राजनीतिक विभाजन मसलन साम्यवाद और पूंजीवादी धड़े का जन्म, मजदूर के नाम पर ही हुआ था.
पूंजीवादियों के लिए सस्ता मैनपावर : यह भी एक सच्चाई है कि भारतीय मजदूर देश के नेताओं के लिए राजनीति का मुद्दा हैं. जबकि पूंजीवादियों के लिए वह एक सस्ता मैनपावर हैं. हालांकि बिहार में मजदूरों को दशा दिशा सुधारने के लिए काफी प्रयास हुए हैं. अलबत्ता इस दिशा में अभी काफी कुछ करना बाकी है. इस दिशा में वर्तमान बिहार सरकार प्रयास कर भी रही है. उनके लिए कई योजनाएं लाई गई हैं. उनके सकारात्मक परिणाम सतह पर दिखाई देने लगे हैं.
मजदूर दिवस का महत्व
मई दिवस की शुरुआत वर्ष 1886 में शिकागो में मजदूरों के आठ घंटे काम और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी की मांग को लेकर अांदोलन से हुई थी. इसके बाद इसी आंदोलन में एक मई को हेर्माकेट में गोली चलने से कई मजदूर शहीद हो गये थे. इसके बाद 1889 में पेरिस में अंतराष्ट्रीय महासभा की दूसरी बैठक में एक मई को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया. देश में मजदूर दिवस मनाने की शुरूआत 1923 में हुई. इस दिन की महत्ता इससे है कि इस दिन दुनिया भर के सभी मजदूर अधिकार और हकों के लिए एकजुटता दिखाते हैं.
बाढ़ और मौसमी बेरोजगारी की मार झेलते हैं बिहारी मजदूर : बिहार में रोजगार मिलने की स्थिति बेहतर नहीं है. कोसी क्षेत्र से प्रभावित कई जिलों में वर्ष के छह महीने स्थानीय काम नहीं मिलता है. राज्य में खेती के अलावा मजदूरों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. काम करने के लिए बिहार के बेरोजगार मजदूर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात जैसे राज्यों में जाते हैं.
यूनियनों को खत्म करने की चल रही है साजिश
मजदूर आंदोलन को अप्रभावी बनाने के लिए प्राइवेट सेक्टर दबंगों का सहारा ले रहा है. अब प्राइवेट सेक्टर में बनी यूनियनों को स्थानीय दबंग दबाने का प्रयास कर रहे हैं. इस तरह मजदूर यूनियनों को खत्म करने की साजिश रच रहे हैं.
चंद्र प्रकाश सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस(इंटक)