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पटना : खंडहर में तब्दील हो रहा है राधाकृष्ण मंदिर, 16वीं सदी कराया था निर्माण
16वीं सदी में मुगल शासनकाल के दौरान महान संत बाबा दयाराम ने कराया था मंिदर का िनर्माण दुल्हिनबाजार : पटना जिले के दुल्हिनबाजार प्रखंड क्षेत्र के धाना गांव में सोन नदी के तट पर स्थित प्राचीन मुगलकालीन राधाकृष्ण मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड की उपेक्षा का शिकार है. उचित देखरेख के अभाव में मंदिर का भवन […]
16वीं सदी में मुगल शासनकाल के दौरान महान संत बाबा दयाराम ने कराया था मंिदर का िनर्माण
दुल्हिनबाजार : पटना जिले के दुल्हिनबाजार प्रखंड क्षेत्र के धाना गांव में सोन नदी के तट पर स्थित प्राचीन मुगलकालीन राधाकृष्ण मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड की उपेक्षा का शिकार है. उचित देखरेख के अभाव में मंदिर का भवन खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. इस मंदिर के ऊपरी भाग में दो भव्य नक्काशीदार गुंबज हैं, जो उचित देखरेख के अभाव में ध्वस्त होता जा रहा है.
मंदिर के भवन की दीवारों में दरारें पड़ गयी हैं. कई कमरों की छतें गिर चुकी हैं. इस मंदिर परिसर में कई प्राचीन मूर्तियां हैं, जबकि मंदिर के गर्भगृह में अष्टधातु निर्मित राधाकृष्ण की प्रतिमा है. मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए सात दरवाजों से गुजरना पड़ता है, लेकिन देखरेख के अभाव में ये दरवाजे टूटते जा रहे हैं.
मरम्मत के लिए मिले पैसों का अता-पता नहीं
ग्रामीण रितेश शर्मा ने बताया कि यह मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड से पंजीकृत है. फिलहाल इस मंदिर की देखरेख पटना जिला धार्मिक न्यास बोर्ड की ओर से पूजा-पाठ करने के लिए मनोनीत किये गये यमुना दास के द्वारा किया जाता है. वहीं, मंदिर के पुजारी यमुना दास ने बताया कि यह मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड से पंजीकृत होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है.
उन्होंने बताया कि इसकी मरम्मत के लिए 2016 में 41 लाख की राशि सरकार की ओर से दी गयी थी, लेकिन बाद में उसका आज तक कोई अता-पता नहीं चल पाया. वहीं, स्थानीय जिला पार्षद रामनिवास शर्मा उर्फ मेहीजी ने बताया कि धार्मिक न्यास बोर्ड से पंजीकृत होने के बावजूद भी यह मंदिर बोर्ड के उपेक्षा का शिकार है.
फिलहाल कई महीनों से दुल्हिनबाजार प्रखंड कार्यालय में बीडीओ व सीओ के पद रिक्त हैं. नये सीओ को आने के बाद इस मंदिर से संबंधित जमीन के बारे में बात की जायेगी. पता िकया जायेगा िक मंिदर की जमीन पर िकन-िकन लोगांे ने कब्जा कर रखा है.
मंदिर की जमीन पर ग्रामीणों ने कर लिया है कब्जा
बुजुर्गों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 16वीं सदी में मुगल शासनकाल के दौरान महान संत बाबा दयाराम के द्वारा करायी गयी थी. उस समय इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर- दूर के इलाकों तक फैली थी.मंदिर में स्थापित राधाकृष्ण की प्रतिमा के दर्शन व पूजा-पाठ के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती थी.
वहीं, 65 वर्षीय सोहराई मिस्त्री का कहना है कि इस मंदिर के अधीन सैकड़ों बीघा जमीन है, जिससे प्राप्त होने वाली आय से पहले के समय में मंदिर के भवन की मरम्मत व देखभाल की जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे इन जमीनों पर आसपास के ग्रामीणों ने कब्जा कर लिया, जिससे आय का स्रोत बंद हो गया. इसके बाद देखभाल के अभाव में धीरे-धीरे मंदिर खंडहर होता जा रहा है.
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