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बैंकिंग सिस्टम की खामियों से पनपते हैं वित्तीय घोटाले, बैंक इस तरह कर रहे गड़बड़ियां, टारगेट के फेर में जारी हो रहे लोन
II सुबोध कुमार नंदन II अधिकारियों की मिलीभगत से काम हाे जाता है आसान, नियम तोड़ कर लूटते हैं राशि पटना : बैंकों से लोन लेकर नहीं चुकाने का रिवाज कोई नया नहीं है. अलबत्ता बैंकों के ताजातरीन घोटाले बैंकिंग सिस्टम की खामियों की वजह से हो रहे हैं. बात साफ होती जा रही है […]
II सुबोध कुमार नंदन II
अधिकारियों की मिलीभगत से काम हाे जाता है आसान, नियम तोड़ कर लूटते हैं राशि
पटना : बैंकों से लोन लेकर नहीं चुकाने का रिवाज कोई नया नहीं है. अलबत्ता बैंकों के ताजातरीन घोटाले बैंकिंग सिस्टम की खामियों की वजह से हो रहे हैं.
बात साफ होती जा रही है कि इस तरह के घोटालों में अफसरों की मिली भगत होती है. लोन देने और उनकी वसूली में पारदर्शिता न होने की वजह से इनका भांडा फूटने पर ही पता चलता है. हालिया नीरव मोदी या इससे पहले माल्या प्रकरण में यह बात सामने आ चुकी है.
13 लाख करोड़ से ऊपर है डाउटफुल एसेट्स : मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान परिवेश में जब बैंकों की डाउट फुल एसेट्स यानी तनावग्रस्त अस्तियां 13 लाख करोड़ से ऊपर हैं. विगत 5 सालों में तीन लाख 67 हजार करोड़ बट्टे खाते में डाले गये.
कुल मिला कर काॅरपोरेट घरानों से ऋण वसूली एक कठिन कार्य हो गया है. राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी के ताजा आंकड़े के अनुसार सालों से बकाये लोन के रिकवरी के लिए पटना जिला प्रशासन को सर्टिफिकेट फाइल किया है जो प्रशासन के पास लंबित है. पटना जिले में कुल कर्जदारों को संख्या 38,177 है जिन पर 31,107 लाख का बकाया है. यह आंकड़ा 31 दिसंबर 2017 तक का है.
गजब की बात ये है कि असरदार लोन आवेदकों से परे सामान्य लोन धारकों से इतनी औपचारिकताएं पूरी करायी जाती हैं कि वह पूरी ही नहीं कर पाता. इसके पिछले बैंक अधिकारी की क्या मंशा रहती है उसे आम आदमी समझ नहीं पाता है. अलबत्ता एक प्रश्न तार्किक है कि जहां आम आदमी के लिए बैंक से लोन लेना एक कठिन काम है. वहीं बड़े लोगों को ऋण कैसे आसानी से उपलब्ध हो जाता है.
बैंक इस तरह कर रहे गड़बड़ियां
-सरकारी कार्यालयों में सभी कागजात अपडेट नहीं होते.
-फर्जी तरीके से वांछित कागजात मुहैया करा दिये जाते हैं.
-संपत्ति का मूल्यांकन बाजार भाव से बढ़ा दर्शाकर लोन हासिल कर लिए जाते हैं.
-कभी-कभी तो प्रतिभूतियों केकागजात भी फर्जी सत्यापित होते हैं.
टारगेट के फेर में भी जारी होते हैं लोन
बैंक के उच्च अधिकारी के घालमेल का भी उदाहरण मिलता है. सामान्यत: कारोबार बढ़ाने को लेकर बैंकों की आपसी प्रतियोगिता, टारगेट पूरा करने की आपाधापी में भी बड़े लोगों के आकर्षण के शिकार हो जाते हैं. राजनैतिक दबाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. लापरवाही यह होता है कि अधिकारी द्वारा स्टॉक का वेरिफिकेशन नहीं किया जाता है.
बड़े लोन देने का फैसला बैंक के उच्च स्तर पर होता है. छाेटे कर्मचारियों पर काम का दबाव होता है. इसके वजह से वह स्टॉक का वेरिफिकेशन नहीं नहीं करता है. जबकि बड़े लोन धारक पर बड़े अधिकारियों से मौखिक दबाव दिलवा काम को निकलवा लेते हैं.
शिवाजी सिंह, पूर्व महासचिव, स्टेट बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन
कंपनियों के लोन की अदायगी न
होने से खाता एनपीए हो जाता है. पर कंपनी के निदेशकों पर इसका कोई खास असर नहीं होता. दूसरी नयी कंपनी बना लोन लेने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. पर अब तकनीकी विकास के कारण सिविल का प्रावधान होने के बाद लोन देने के चलते इसमें कमी आयी है. लोन नहीं अदा करने वालों को क्रिमिनल ऑफेन्स के दायरे में लाकर चुनाव लड़ने पर पाबंदी तथा नाम प्रचारित करने की जरूरत है.
डाॅ. कुमार अरविंद, वरीय उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन
बड़े उद्योगपति ऋण को लेकर वास्तविक उद्याेग में पैसा नहीं लगाते. वे छोटा प्लॉट को बैंक अधिकारियों के समक्ष बड़े प्लॉट दिखा कर या नकली कागजात पेश कर ऋण स्वीकृत करा लेते है. बैंक को इस बात की सच्चाई तब पता चलता है जब कर्जधारक कर्ज नहीं लौटाते हैं या फिर बैंक अधिकारी का तबादला होने के बाद मामला उजागर होता है. इसके अलावा कंपनी एक ही बैलेंस सीट पर एक से अधिक बैंक से भी लेटर ऑफ क्रेडिट कराते हैं.
अमरेंद्र कुमार, उपाध्यक्ष, इलाहाबाद बैंक स्टॉफ एसोसिएशन
बैंकों द्वारा ऋण देने का आधार न केवल प्रतिभूति होती है बल्कि उसका आधार परिचालन से प्राप्त हाेता है, जो ऋण राशि की किस्त और ब्याज अदायगी को करने में सक्षम होती है. जो बड़े एवं प्रभावशाली व्यवसायी व उद्योगपति है, वो बनावटी बैलेंस सीट एवं वित्तीय सूचनाएं प्रस्तुत कर, ऋण देने वाले सक्षम अधिकारी को प्रभावित कर या भ्रमित कर ऋण लेने में सफल हो जाते है.
बी डी प्रसाद, पूर्व मुख्य प्रबंधक,
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
एक व्यक्ति अलग- अलग कार्य के लिए विभिन्न बैंकों से लोन ले सकता है. बशर्ते की उसकी आमदनी लोन चुकाने के लिए पर्याप्त हो तथा सारे खाते को वह नियमित तरीके से चला रहे हो. अगर कोई व्यक्ति जिस संपत्ति पर लोन ले रखा है उस संपत्ति पर फिर लोन नहीं मिल सकता है. वह व्यक्ति उसी बैंक में इस संपत्ति को रखकर दूसरा लोन ले सकता है. अगर संपत्ति कुल वैल्यू दोनों लोन से ज्यादा हो और उसके पहले वाले सारे लोन नियमित हो.
डॉ. संधीर कुमार, अग्रणी जिला प्रबंधक, पंजाब नेशनल बैंक
बैंक रिकवरी का प्रावधान भी लुंजपुंज
कारोबारी बैंक से पैसा निकाल कर उसे दूसरे मद में निवेश कर देता है . वे कर्ज नहीं लौटाते हैं. बाद में वह लोन बैड हो जाता है. दो साल पहले तक रिकवरी के कई प्रावधान थे. उसे एक कर दिया गया है, जो इनसाॅलवेंसी एंड बैंक करप्सी एक्ट नाम से जाना जाता है. इसके तहत अगर कोई कंपनी जिसने लोन लिया था और वह बंद हो गयी है तो उस मामले में बैंक कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में चली जाती.
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