कृषि विज्ञानियों की मेहनत रंग लायी, मसूर की रोग अवरोधक क्षमता वाली किस्म विकसित
पटना : बदलती जलवायुविक दशाओं और मौसमी उतार चढ़ाव से अक्सर पस्त होने वाले किसानों के लिए थोड़ी राहत वाली खबर है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने मसूर की ऐसी प्रजाति विकसित की है, जिस पर मौसम का ज्यादा जोर नहीं चलेगा. दूसरे शब्दों में कहें तो विपरीत मौसमी दशाएं उसे प्रभावित नहीं कर सकेंगी. मसूर की इस प्रजाति का नाम एचयूएल-57 है.
यह प्रजाति किसानों को भी उपलब्ध करा दी गयी है. कृिष विज्ञानियों को उम्मीद है कि किसानों के लिए मसूर की ये प्रजाति फायदेमंद साबित होगी. ये किस्म बिहार और उसकी मौसमी दशाओं वाले राज्यों के लिए उपयुक्त है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इन दिनों मौसमी दशाओं की सहन शक्ति वाली किस्मों को ईजाद करने के प्रयास में है.
इसी क्रम में मसूर की विशेष प्रजाति विकसित की गयी है. इस प्रजाति में रोग अवरोधक क्षमता ज्यादा है. उपज भी अच्छी होगी. मात्र 120 दिनों में तैयार होने वाली एचयूपएल-57 प्रजाति की बीज किसानों को भी उपलब्ध करायी गयी है. इसमें पानी की जरूरत नहीं होगी.
खास बात यह है कि 15 नवंबर तक अगर किसान इसको लगा लें तो 120 दिनों में फसल तैयार हो जायेगी. एक हेक्टेयर में करीब 15 क्विंटल उत्पादन का दावा किया जा रहा है. जाहिर है प्रोटिन से भरपूर मसूर का उत्पादन बढ़ेगा तो बिहारवासियों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर दिखने लगेगा. आधिकारिक जानकारी के मुताबिक नयी किस्म का बीज किसानों को मुहैया कराने के लिए कवायद शुरू हो गयी है.
200 से अधिक किस्मों पर चल रहा अनुसंधान
200 से अधिक बीजों के वैरायटी पर प्रयोग चल रहा है. इसमें मसूर, देसी चना, काबली चना, अरहर आदि शामिल हैं. यह लंबी प्रक्रिया होती है. काफी छानबीन के बाद ही तय होता है कि कौनसी प्रजाति किसानों और मौसम के हिसाब से अनुकूल रहेगी. कैंपस में ही विभिन्न तरह के बीजों को उगाया गया है.
इसकी लगातार मॉनीटरिंग हो रही है. बेहतर परिणाम मिलने के बाद इन बीजों को किसानों के लिए तैयार किया जायेगा. इसके अलावा मसूर की एचयूएल-57 प्रजाति तैयार है. किसानों को यह उपलब्ध करा दिया गया है. कम समय में बेहतर उत्पादन होगा. मौसम की बेरुखी भी झेलने की क्षमता मसूर की इस प्रजाति में है.
– डॉ अरविंद चौधरी, प्रधान वैज्ञानिक (पादप प्रजनन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पटना