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बिहार : खतरे के बाद भी घरों में हो रही 100 में से 13 डिलिवरी, गांवों में संख्या ज्यादा, जागरूकता की है कमी
डिलिवरी को लेकर आज भी जागरूकता की कमी पटना : अस्पताल में प्रसव के मामले में भले ही राजधानी पटना की स्थिति में सुधार आया है. लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों में 100 में से 13 ऐसी महिलाएं हैं, जिनका प्रसव अस्पताल के बजाय घर पर ही होता है. इतना ही नहीं प्रेग्नेंसी के दौरान […]
डिलिवरी को लेकर आज भी जागरूकता की कमी
पटना : अस्पताल में प्रसव के मामले में भले ही राजधानी पटना की स्थिति में सुधार आया है. लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों में 100 में से 13 ऐसी महिलाएं हैं, जिनका प्रसव अस्पताल के बजाय घर पर ही होता है. इतना ही नहीं प्रेग्नेंसी के दौरान एक लाख में 219 महिलाओं की मौत हो जाती है. यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों से हुआ है. जून से दिसंबर तक के आंकड़ों में करीब 12 प्रतिशत से ज्यादा गर्भवती महिलाओं की डिलिवरी घर पर ही हो रही है.
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे बिहार में 27 हजार महिलाओं ने घर में ही दिया बच्चे को जन्म
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे बिहार में पिछले छह महीने में 27,700 महिलाओं ने घर पर ही बच्चे को जन्म दिया. बड़ी बात तो यह है कि दरभंगा, पूर्वी चंपारण, मुंगेर, औरंगाबाद जिले हैं, जहां की आधी गर्भवती महिलाएं अस्पताल नहीं जाती हैं. इन चार जिलों में 33% महिलाएं ऐसी हैं, जिनका प्रसव घर पर कराया जाता है. घर पर डिलिवरी होने वाली महिलाओं की मौत भी अधिक हो रही है. इनमें ग्रामीण, स्लम एरिया व गरीब महिलाओं की संख्या अधिक है.
सुविधाओं पर खड़े हो रहे सवाल : प्रदेश में तकरीबन 6500 से अधिक आशा हैं. गांवों में गर्भवती महिलाओं की ट्रैकिंग-रजिस्ट्रेशन, समय पर उनका टीकाकरण, सुरक्षित प्रसव के लिए अस्पताल ले जाने जैसी जिम्मेदारी आशा और स्वास्थ्य कर्मचारियों की होती है. इतनी बड़ी संख्या में घर पर प्रसव पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
केंद्र सरकार की क्या है योजना
केंद्र सरकार की सहायता से चल रही जननी-शिशु योजना में कई सुविधाएं नि:शुल्क मिलती हैं. इसमें गर्भवती को मुफ्त दवाएं, इलाज व सर्जरी, नवजात का एक माह तक फ्री इलाज, गर्भवती को अस्पताल तक ले जाने और घर छोड़ने के लिए फ्री एंबुलेंस की सुविधा शामिल है. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति से संबंध रखने वाली महिला वर्ग के लिए 2200 रुपये अतिरिक्त सहायता भी देने का प्रावधान है. इस सुविधा के बाद भी घर पर क्यों प्रसव हो रहे हैं इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
पिछले पांच वर्षों के अंदर महिलाओं में डिलिवरी को लेकर जागरूकता बढ़ी है. यही वजह है कि सरकारी अस्पतालों के डिलिवरी रूम फुल रहते हैं. वहीं जिन लोगों में जागरूकता की कमी है, वही घर में डिलिवरी करा रही हैं. मेरा कहना है कि सरकार एंबुलेंस से लेकर सभी तरह की सुविधाएं मुहैया करा रही है, ऐसे में प्रसूताएं जागरूक होकर अस्पताल की ओर रुख करें.
डॉ पीके झा, सिविल सर्जन
घर में बढ़ जाता है रिस्क
घर में डिलिवरी के दौरान नॉर्मलमामले में भी हाई रिस्क प्रेग्नेंसी होने की आशंका हो जाती है. क्योंकि 5 से 15 प्रतिशत ऐसी महिलाएं होती हैं, जिनको घर में डिलिवरी नहीं हो पाती है. इनको अस्पताल ले जाना ही पड़ता है. अगर इनकी डिलिवरी होती है, तो उनको बचाने में परेशानी होती है. क्योंकि बच्चेदानी फटने की आशंका होती है.
डॉ अमिता सिन्हा, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ
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