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बिहार : पितरों को मुक्ति दिलाने वाली फल्गु पर अस्तित्व का संकट, बढ़ रहा प्रदूषण
पटना : दक्षिण बिहार के गया में ऐतिहासिक नदी फल्गु में लाखों लोग प्रतिवर्ष अपने पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए तर्पण करते हैं. खासकर पितृपक्ष के दौरान यहां मेला लगा रहता है. इस कारण इस नदी का धार्मिक महत्व भी है. तीज-त्योहारों में बड़ी संख्या में लोग फल्गु नदी में स्नान करते थे. […]
पटना : दक्षिण बिहार के गया में ऐतिहासिक नदी फल्गु में लाखों लोग प्रतिवर्ष अपने पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए तर्पण करते हैं. खासकर पितृपक्ष के दौरान यहां मेला लगा रहता है. इस कारण इस नदी का धार्मिक महत्व भी है. तीज-त्योहारों में बड़ी संख्या में लोग फल्गु नदी में स्नान करते थे. एक समय में इस नदी से गया के बड़े भू-भाग की सिंचाई की जाती थी लेकिन अब इस नदी में पानी नहीं के बराबर है.
अामतौर पर बारिश के समय जब उत्तर बिहार की नदियों में बाढ़ आ जाती है उस समय भी यहां आने वाले श्रद्धालु नदी का बालू खोदकर पानी निकालते हैं. ऐसे में इस नदी का अस्तित्व ही खतरे में है. फल्गु नदी का उद्गमस्थल उत्तरी छोटानागपुर का पठारी भाग है. यह गंगा की सहायक नदी है. इसके पश्चिमी तट पर गया शहर बसा है.
रोज नदी में डाला जा रहा कचरा
प्रतिदिन लाखों टन सड़ी-गली वस्तुएं नदी में फेंकने और नाली का पानी बहने के कारण इसमें दिनों दिन प्रदूषण बढ़ रहा है. नदी किनारे पानी इतना गंदा बहता है कि उससे स्नान कर लेने भर से ही कई रोग होने की आशंका रहती है. यही नहीं मानव उत्सर्जित गंदगी भी नदी में मिल रही है. इससे प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है. नदी किनारे स्थित खटालों से निकलने वाली गंदगी भी नदी में मिल रही है. इसके कारण प्रदूषण दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है.
धार्मिक मान्यता
फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने और इस नदी के सूखने के बारे में कुछ धार्मिक मान्यताएं भी हैं. यहां के बारे में धार्मिक ग्रंथों में इस बात का विवरण है कि भगवान राम अपनी पत्नी सीता के साथ फल्गु नदी के तट पर अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान के लिए आये थे.
इसके बाद से ही लोग इस नदी किनारे पितरों को पिंडदान देने लगे. वहीं, नदी सूखने के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम के साथ पिंडदान के लिए वहां पहुंचीं सीता ने फल्गु नदी को शाप दिया था. उन्होंने कहा था- तुम्हारी धारा अब ऊपर नहीं, नीचे बहेगी. उसके बाद से फल्गु नदी की धारा ऊपर नहीं बहती है. इसके बाद से ऐसी स्थिति है.
क्या कहते हैं
पर्यावरणविद
पर्यावरणविद और तरुमित्र संस्थान के संस्थापक फादर रॉबर्ट कहते हैं कि फल्गु नदी का उद्गमस्थल उत्तरी छोटानागपुर का पठार है. पहले वहां घना जंगल था. बारिश होने के बाद उसके एक तिहाई पानी का अवशोषण जंगल की पेड़ों की जड़ें कर लेते थे. इसके साथ ही बारिश का पानी जमीन के अंदर भी जाता था.
जंगल के पेड़ अवशोषित पानी को तीन महीने बाद जमीन में छोड़ते थे. यही पानी फल्गु नदी में आता था. अब हालत दूसरी है. पठार पर मौजूद पेड़ कट चुके हैं. इस कारण बारिश का पानी पठारों से नीचे की ओर बह जाता है. जल संचयन नहीं हो पा रहा है. इस कारण केवल बारिश के समय ही फल्गु में थोड़ा पानी दिखता है.अन्य समय में यह नदी सूखी रहती है. इस नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार को ध्यान देना चाहिए.
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