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रोड परमिट भी दे रहे हैं किराये पर

अनुपम कुमार पटना : बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के पास एक समय 1700 बसें थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनकी स्थिति इतनी खराब हो गयी कि इनके पास अपनी केवल 100 बसें रह गयीं. इनकी स्थिति को सुधारने के लिए समय-समय पर प्रयास भी किया जाता रहा, लेकिन कोई भी प्रयास अब तक […]

अनुपम कुमार
पटना : बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के पास एक समय 1700 बसें थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनकी स्थिति इतनी खराब हो गयी कि इनके पास अपनी केवल 100 बसें रह गयीं. इनकी स्थिति को सुधारने के लिए समय-समय
पर प्रयास भी किया जाता रहा, लेकिन कोई भी प्रयास अब तक सफल नहीं हो सका है. बुडको से कुछ दिनों पहले इन्हें 350 बसें चलाने को मिली, लेकिन इन बसों को चलाने के लिए इनके पास न अपने ड्राइवर हैं न कंडक्टर. यहां तक कि रोड परमिट भी ये किराये पर लगा रहे हैं.
आउटसोर्स कर रहे ड्राइवर व कंडक्टर : पिछले कई वर्षों से राज्य पथ परिवहन निगम ने नये कर्मी बहाल नहीं किये हैं. पुराने कर्मी में से ज्यादातर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इसके कारण राज्य पथ परिवहन निगम के पास अपनी बसों के परिचालन के लिए ड्राइवर और कंडक्टर तक नहीं हैं. प्राइवेट एजेंसी से बिहार के लिए 600 ड्राइवर और कंडक्टर भाड़े पर लिये गये हैं.
राज्य पथ परिवहन निगम ने सात से 12 फीसदी के रेवेन्यू शेयरिंग पर 350 प्राइवेट बसों को परिचालन संबंधी कई महत्वपूर्ण सुविधाएं दे रखी हैं. राज्य पथ परिवहन निगम के रोड परमिट पर ये बसें निगम के डिपो से पैसेंजर उठाती हैं और टिकट काटने के लिए उसके काउंटर के बगल में ही अपना काउंटर खोल रखा है.
आज भी सस्ती सेवा
बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की सेवा अभी भी सबसे सस्ती है. प्राइवेट बसों की तुलना में बहुत कम खर्च करके इनसे यात्रा की जा सकती है. अधिक फायदे वाले रूटों पर तो प्राइवेट बस ऑपरेटर धड़ल्ले से बस चलाते हैं, लेकिन कम मुनाफे वाले या घाटे वाले रूटों पर निजी बस ऑपरेटर नजर नहीं आते. राज्य पथ परिवहन निगम की हालत जब ठीक थी तो ऐसे रूटों पर भी इनकी गाड़ियां वर्ष भर दौड़ती थीं. इनकी वजह से लोगों को आवागमन में किसी तरह की असुविधा नहीं होती थी, लेकिन अब राज्य पथ परिवहन निगम की बसों के बहुत कम हो जाने की वजह से ऐसे रूट के लोगों को परेशानी होती है.
– निगम की स्थिति सुधर क्यों नहीं रही है?
प्राइवेट बसों की तरह हम किसी तरह से गाड़ी नहीं चला सकते. वे कम पैसेंजर हाेने पर बीच में ही पैसेंजर को छोड़ देते हैं या दूसरे बस में बिठा देते हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते है. राष्ट्रीयकृत मार्गों पर 40 किमी से अधिक प्राइवेट बसों को चलने का परमिट नहीं है. लेकिन उनके अवैध परिचालन को रोकने का प्रयास नहीं किया गया है. इससे निगम घाटे से उबर नहीं पा रहा है.
– बसों के अपने बेड़े को निगम क्यों नहीं बढ़ा रहा है?
संसाधन की कमी है. घाटे से निबटने को 1995 तक हमें सरकार की तरफ से अनुदान और बजटीय समर्थन मिलता था जो अब नहीं मिल रहा है.
– निगम के परमिट पर प्राइवेट बसों का परिचालन कहां तक उचित है?
बसों के रखरखाव के लिए अब हमारे पास आधारभूत संरचना नहीं रही. प्राइवेट ऑपरेटरों से रेवेन्यू शेयरिंग जैसे उपाय से हमें आय भले ही कम होती है, लेकिन बसों के खर्चीले रखरखाव की जिम्मेदारी से हम मुक्त रहते हैं.

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