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स्कूलों में किताब बेचने के नाम पर 10 से 80 लाख तक की कमीशनखोरी का होता खेल

पटना : प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के खिलाफ अभिभावक आवाज नहीं उठा पाते. वहीं राज्य सरकार यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लेती है कि इन स्कूलों पर उसका नियंत्रण नहीं है. स्कूल इसका भरपूर फायदा उठाते हुए फीस के अलावा किताब-कॉपी की बिक्री से भी लाखों में रुपये की कमाई करते हैं. एक बुकसेलर […]

पटना : प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के खिलाफ अभिभावक आवाज नहीं उठा पाते. वहीं राज्य सरकार यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लेती है कि इन स्कूलों पर उसका नियंत्रण नहीं है.
स्कूल इसका भरपूर फायदा उठाते हुए फीस के अलावा किताब-कॉपी की बिक्री से भी लाखों में रुपये की कमाई करते हैं. एक बुकसेलर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि स्कूल पब्लिशर्स के अलावा बुकसेलर से भी कमीशनखोरी में पीछे नहीं हैं. पिछले ही वर्ष संत जेवियर्स स्कूल ने आपूर्तिकर्ता पब्लिशर्स से लगभग 15 लाख का सौदा किया था. जबकि, पाटलिपुत्रा सेंट्रल स्कूल के साथ तो यह सौदा करीब 80 लाख में हुआ था. कुल मिला कर पब्लिशर्स से 15 से 30% व बुकसेलर से भी लगभग इतना ही कमीशन लेते हैं. इन पर किसी का नियंत्रण नहीं होने के कारण न तो ये एनसीईआरटी की किताबें चलाते हैं और न ही किसी आदेश या निर्देश का पालन करते हैं.
शहर से लेकर आसपास के क्षेत्र तक कमीशन का धंधा : कमीशन का यह धंधा केवल शहर ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में भी चलता है. शहर के संभ्रात इलाकों में स्थित बड़े स्कूल भी इसमें पीछे नहीं हैं.
बाइपास स्थित एक स्कूल में एडमिशन का क्रेज तो रहता ही है, पब्लिशर्स व बुकसेलर्स की भी विशेष नजर होती है. कुर्जी स्थित एक बड़े स्कूल ने कुल बिक्री की 25 प्रतिशत व पाटलिपुत्रा कॉलोनी स्थित स्कूल ने 80 लाख रुपये कमीशन पर सौदा तय किया था, जबकि गांधी मैदान के निकटस्थ एक मिशनरी स्कूल ने 16 व एक ने 10 लाख रुपये कमीशन की राशि ली थी. इसके अलावा बोरिंग रोड स्थित दो स्कूलों ने क्रमश: 15 व 30 लाख, कंकड़बाग के भूतनाथ स्थित स्कूल ने 25 लाख लेकर स्कूल में किताबों की सहमति दी थी.
हर साल बदल दी जाती हैं किताबें : स्कूलों में हर साल नयी किताबें खरीदना बच्चों व अभिभावकों की मजबूरी होती है. क्योंकि, स्कूल किताबें बदल देते हैं. बदले में उन्हें अच्छा-खासा कमीशन मिल जाता है. उसके बाद स्कूल की ओर से बच्चों व अभिभावकों पर नयी किताब ही खरीदने का दबाव बनाया जाता है. पब्लिशर ने बताया कि स्कूल की ओर से जिन किताबों को नया बताया जाता है, उसमें ज्ञानवर्धन की दृष्टिकोण से कोई खासा बदलाव नहीं होता, बल्कि बिजनेस के उद्देश्य से ऐसा किया जाता है. अधिकांश किताबें पूर्ववत होती भी हैं, उसमें एक-दो चैप्टर (पाठ) बदल दिया जाता है. इसके अलावा आकर्षक बनाने के लिए किताबों के कवर के साथ पहले पन्ने को फाड़ कर बदल दिया जाता है. इस तरह पुरानी किताबों को ही नये रूप में पेश कर अधिक मूल्य की वसूली की जाती है.
हम भी अभिभावक है. हमारे बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़े हैं. स्कूल के स्टॉल या स्कूल द्वारा बतायी गयी दुकान से ही किताब खरीदने का दबाव झेला है. किताबों की बिक्री में स्कूलों की कमीशनखोरी को हमने भी महसूस किया है. यह मालूम था कि मनमाना दाम लिया जा रहा है, क्योंकि एनसीईआरटी की किताबें हों, तभी मूल्य में समानता होगी. बावजूद शिक्षा विभाग में पदाधिकारी होते हुए भी कुछ नहीं कर सकता था. क्योंकि, आज की तिथि में प्राइवेट स्कूलों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है. हालांकि, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत इस पर विचार किया जा रहा है.
आरएस सिंह, सेवानिवृत्त अपर परियोजना निदेशक, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद
किताबों की बिक्री के लिए स्कूल पब्लिशर्स या बुकसेलर से स्टॉल लगाने का आग्रह करते हैं या खुद मंगा कर किताबें बेचते हैं.इंटरनल डीलिंग क्या होती है, पता नहीं. लेकिन, पैरेंट्स को किताबों के लिए दौड़-भाग न करनी पड़े, इसलिए स्कूल यह सुविधा मुहैया कराती है. इस तरह यह पैरेंट्स, स्कूल व सप्लायर तीनों के लिए सुविधाजनक होता है. किसी स्कूल द्वारा कमीशन लिये जाने की बात अभी तक प्रकाश में नहीं आयी है. हां, जहां तक स्कूल ड्रेस की बिक्री की बात है, तो स्कूलों को इससे परहेज करना चाहिए, क्योंकि ड्रेस कोड के हिसाब से कपड़े व जूते बाजार में आसानी से मिल जाते हैं.
सैयद श्मायल अहमद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन

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