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शिक्षक छात्र का नहीं कर पा रहे आकलन : प्रो एचसी वर्मा

पटना : मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा सम्मान 2017 से सम्मानित भौतिकी के विद्वान प्रो हरिश चंद्र वर्मा ने कहा कि आज की शिक्षा में ‘मार्क्स’ वाद बढ़ गया है. हर कोई मार्क्स के पीछे भाग रहा है. ”मार्क्स्य माता, च पिता मार्क्स्य, मार्क्स्य बंधु, च सखा मार्क्स्य” की स्थिति हो गयी है. अच्छे मार्क्स […]

पटना : मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा सम्मान 2017 से सम्मानित भौतिकी के विद्वान प्रो हरिश चंद्र वर्मा ने कहा कि आज की शिक्षा में ‘मार्क्स’ वाद बढ़ गया है. हर कोई मार्क्स के पीछे भाग रहा है. ”मार्क्स्य माता, च पिता मार्क्स्य, मार्क्स्य बंधु, च सखा मार्क्स्य” की स्थिति हो गयी है. अच्छे मार्क्स नहीं आने पर छोटे स्कूल से लेकर आईआईटी के छात्र दुखदायी कदम भी उठा रहे हैं.

शिक्षा सुख दिलाने की बजाय दुख दे रही है. लोगों की धारना है कि शिक्षक सिखायेंगे तभी छात्र सीखेगा, लेकिन शिक्षक छात्र का सही से आकलन नहीं कर पा रहे हैं. हर छात्र को शिक्षक खाली बोतल समझते हैं, जबकि बच्चों का बोतल उनकी क्षमताओं और प्रतिभाओं से भरा होता है. शिक्षक पूरी क्लास में अपने ज्ञान की बौछार (बारिश) कर देते हैं. ऐसे में बौछार की जो बूंदें उस बोतल में जाती हैं उसी से उस छात्र का वे मूल्यांकन करते हैं. वे चाहते हैं कि उन्होंने जो सिखाया, वह बच्चे को आया या नहीं.


उन्होंने कहा कि जब तक शिक्षक बच्चे की क्षमताओं और प्रतिभा को नहीं पहचाना और उसका उपयोग नहीं किया तब तक बच्चे में ज्ञान रूपी रस नहीं जायेगा. क्योंकि स्कूल जाने से पहले हर बच्चा यह सिद्ध कर चुका होता है और कोई न कोई भाषा सीख चुका होता है. बच्चा शिक्षक के बिना भाषा सीखता है, लेकिन शिक्षक उसे दूसरी चीजें सीखाने में वर्षों लगा देते हैं लेकिन वह सीख नहीं पाता. हर बच्चे में सीखने की अपार क्षमता है. उन्होंने कहा कि बहुत लोग बच्चों को कोचिंग भेजते हैं. बच्चे में कूच-कूच कर भरने की कोशिश करते हैं. स्कूल जाने से पहले तो बच्चे को खड़ा होने, चलाने, बोलने के लिए ट्यूटर तो नहीं रखते, तो फिर होमवर्क के लिए क्यों ट्यूटर रखते हैं. बच्चे में पूरी क्षमता होती है, उसे समझे और तरासें. उनका सम्मान करने की जरूरत है. बच्चे बोतल के अंदर पॉकेट्स की तरह हैं जिसमें हीरे-मोती भरे हैं. उस पर पड़ी धूल को हटाने और उसे एक माला में पिरोने की जरूरत है. प्रो एचसी वर्मा ने कहा कि आज हम छात्र के साथ-साथ शिक्षक को सोचने ही नहीं देते. शिक्षा से थिंकिंग ही गायब हो गयी है. धारना बन गयी है कि अच्छा शिक्षक या किताब वही है जो बिना सोचे सब कुछ समझा दें. इससे छात्र की सोचने की शक्ति ही खत्म हो जायेगी. वहीं, शिक्षक को सिलेबस समय पर पूरा करने की बाध्यता होती है. ऐसे में वह अपनी तरफ से एक्स्ट्रा एफर्ट भी नहीं दिखा पाते हैं.
अॉपरच्यूनिटी स्कूल से कर रहे प्रयोग प्रो एचसी वर्मा ने बताया कि वे कानपुर आईआईटी कैंपस में वहां काम करने वाले फोर्थ ग्रेड के कर्मचारियों के बच्चों के लिए प्रयोग के रूप में अॉपरच्यूनिटी स्कूल चला रहे हैं. इसमें वहां के फैकल्टी ही बच्चों को प्राकृतिक रूप से पढ़ाते हैं. समय कैसे बीत जाता है न बच्चों को पता चलता है और न ही शिक्षकों को. बच्चों की दो बार परीक्षा भी ले ली गयी, लेकिन उन्हें अब तक पता नहीं है.
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है बड़ी चुनौती : कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा
शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने कहा कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सबसे बड़ी चुनौती है. स्कूलों में बच्चों को पहुंचा दिया गया है, शिक्षक भी बहाल हो गये हैं. अब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिले इस पर काम करना है. इस समस्या का समाधान जल्द निकाला जायेगा और इस दिशा में तेजी से काम होगा.

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