शिक्षा सुख दिलाने की बजाय दुख दे रही है. लोगों की धारना है कि शिक्षक सिखायेंगे तभी छात्र सीखेगा, लेकिन शिक्षक छात्र का सही से आकलन नहीं कर पा रहे हैं. हर छात्र को शिक्षक खाली बोतल समझते हैं, जबकि बच्चों का बोतल उनकी क्षमताओं और प्रतिभाओं से भरा होता है. शिक्षक पूरी क्लास में अपने ज्ञान की बौछार (बारिश) कर देते हैं. ऐसे में बौछार की जो बूंदें उस बोतल में जाती हैं उसी से उस छात्र का वे मूल्यांकन करते हैं. वे चाहते हैं कि उन्होंने जो सिखाया, वह बच्चे को आया या नहीं.
उन्होंने कहा कि जब तक शिक्षक बच्चे की क्षमताओं और प्रतिभा को नहीं पहचाना और उसका उपयोग नहीं किया तब तक बच्चे में ज्ञान रूपी रस नहीं जायेगा. क्योंकि स्कूल जाने से पहले हर बच्चा यह सिद्ध कर चुका होता है और कोई न कोई भाषा सीख चुका होता है. बच्चा शिक्षक के बिना भाषा सीखता है, लेकिन शिक्षक उसे दूसरी चीजें सीखाने में वर्षों लगा देते हैं लेकिन वह सीख नहीं पाता. हर बच्चे में सीखने की अपार क्षमता है. उन्होंने कहा कि बहुत लोग बच्चों को कोचिंग भेजते हैं. बच्चे में कूच-कूच कर भरने की कोशिश करते हैं. स्कूल जाने से पहले तो बच्चे को खड़ा होने, चलाने, बोलने के लिए ट्यूटर तो नहीं रखते, तो फिर होमवर्क के लिए क्यों ट्यूटर रखते हैं. बच्चे में पूरी क्षमता होती है, उसे समझे और तरासें. उनका सम्मान करने की जरूरत है. बच्चे बोतल के अंदर पॉकेट्स की तरह हैं जिसमें हीरे-मोती भरे हैं. उस पर पड़ी धूल को हटाने और उसे एक माला में पिरोने की जरूरत है. प्रो एचसी वर्मा ने कहा कि आज हम छात्र के साथ-साथ शिक्षक को सोचने ही नहीं देते. शिक्षा से थिंकिंग ही गायब हो गयी है. धारना बन गयी है कि अच्छा शिक्षक या किताब वही है जो बिना सोचे सब कुछ समझा दें. इससे छात्र की सोचने की शक्ति ही खत्म हो जायेगी. वहीं, शिक्षक को सिलेबस समय पर पूरा करने की बाध्यता होती है. ऐसे में वह अपनी तरफ से एक्स्ट्रा एफर्ट भी नहीं दिखा पाते हैं.