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पटना: सिपाही की जगह दिया होमगार्ड, वे भी पूरे नहीं, कैसे संभलेगा ट्रैफिक

वाहनों का लोड बढ़ने के अनुपात में न तो ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ी है और न ही बढ़े हैं अन्य संसाधन पटना: ट्रैफिक पुलिस पर पिछले कई वर्षों से वाहनों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. 2005 में पटना जिला परिवहन कार्यालय में पंजीकृत वाहनों की संख्या 4.96 लाख थी, जो बढ़ते […]

वाहनों का लोड बढ़ने के अनुपात में न तो ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ी है और न ही बढ़े हैं अन्य संसाधन
पटना: ट्रैफिक पुलिस पर पिछले कई वर्षों से वाहनों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. 2005 में पटना जिला परिवहन कार्यालय में पंजीकृत वाहनों की संख्या 4.96 लाख थी, जो बढ़ते बढ़ते सितंबर 2017 में 13 लाख को पार कर चुका है.
वाहनों का लोड बढ़ने के अनुपात में न तो ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ी है और न ही गाड़ी व अन्य संसाधन. यहां तक कि आधे से ज्यादा सृजित पद भी वर्षों से खाली पड़े हैं. सिपाहियों की कमी जब बहुत बढ़ गई तो होमगार्ड से उसे भरने का प्रयास किया गया, लेकिन कई वर्षों से होमगार्ड भी पर्याप्त संख्या में नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में ट्रैफिक को संभालना मुश्किल हो रहा है.
जरूरी स्थलों पर भी नहीं हो पाती तैनाती : शहर में इस समय 110 ट्रैफिक आउटपोस्ट हैं. सिपाहियों की कमी के कारण कई ऐसे जगहों पर भी ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की तैनाती नहीं हो पाती, जहां ट्रैफिक नियंत्रण की दृष्टि से ऐसा जरूरी है. कई जगह इनकी तैनाती होती भी है तो संख्या जरूरत से कम होती है. इससे भी ट्रैफिक नियंत्रण में समस्या आ रही है.
गाड़ी व कई जरूरी उपकरणों की भी कमी : ट्रैफिक पुलिस के पास जरूरत के अनुसार गाड़ियां व उपकरण भी नहीं हैं. शहर का जितने बड़े क्षेत्र में विस्तार हो चुका है और वाहनों की संख्या जितनी अधिक है, उसको देखते हुए यहां 20 ट्रैफिक रेगुलेशन दस्ते की जरूरत है. लेकिन स्वीकृत केवल 10 दस्ते हैं. उनमें से भी चार कई महीनों से बंद हैं क्योंकि उनके वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण चलने लायक नहीं रहे और नये वाहन मिले नहीं.
सिपाहियों के 660 में से 277 पद खाली
पटना ट्रैफिक पुलिस में सिपाहियोंं के सृजित पद 660 हैं. इनका सृजन 2005 के वाहन लोड को देखते हुए किया गया, जो आज की तुलना में 40 फीसदी से भी कम था. 2007 में एक बार सृजित पद को पूरी तरह भर दिया गया, लेकिन उसके बाद भर्ती की प्रक्रिया दोबारा नहीं शुरू की गई.
इस दौरान कई सिपाही पदोन्नत होकर अधिकारी बन गये और कई सेवानिवृत भी. जब सिपाहियों की कमी सौ से अधिक हो गई तो होमगार्ड से सिपाहियों की कमी को दूर करने का प्रयास किया गया. लेकिन कई वर्षों से नये होमगार्ड भी नहीं मिले. उनके 400 पद सृजित किए गये जबकि इन दिनों सिर्फ 325 होमगार्ड ट्रैफिक पुलिस को मिले हैं. आज सिपाहियों के रिक्त पदों की संख्या 277 पर पहुंच गई है, जो कुल सृजित पदों का 41 फीसदी है.
दारोगा और हवलदार भी कम, कैसे हो नियंत्रण
दरोगा और हवलदार भी पटना ट्रैफिक पुलिस में जरूरत से कम हैं. दरोगा के यहां 53 सृजित पद हैं जिनमें 18 खाली है जबकि हवलदार के 76 में से 46 पद खाली हैं. जो हैं उनमें भी सीधे नियुक्त युवा अधिकारी कम और सिपाही से प्रोन्नत अधिकारी ज्यादा हैं. इससे भी समस्या आती है. उम्रदराज होने के कारण कई दरोगा डायबिटीज और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों से पीड़ित हो चुके हैं और ट्रैफिक रेगुलेशन जैसे श्रमसाध्य कार्यों को लंबे समय तक करने में सक्षम नहीं हैं. इससे ट्रैफिक का संचालन ठीक से नहीं हो पा रहा है.
बचते रहे अधिकारी : संसाधनों की कमी से ट्रैफिक के परिचालन में हो रही परेशानी पर प्रभात खबर की टीम ने पटना ट्रैफिक पुलिस के कुछ वरीय अधिकारियों से बात की.
सबने दबे जुबान से मानव व अन्य संसाधनों की कमी व इससे हो रही परेशानी की बात स्वीकारी, लेकिन सीधे सीधे कुछ कहने की बजाय यह कह कर बचने का प्रयास किया कि वे अपने तरफ से उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम दोहन और उसमें जहां तक संभव है, ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर ढंग से संचालित करने का प्रयास करते हैं.

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