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बिहार में भूमिहारों के लिए आरक्षण व उनके आत्मसम्मान के लिये खड़ा हुआ एक युवा, सोशल मीडिया में पॉपुलर, देखें वीडियो

पटना : कहते हैं कि अपने जीवन में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो जज्बे, जुनून के लिए जहमत उठाते हैं. जातिगत समीकरण की चाशनी में लिपटी बिहार की सियासत में अपनेजमातकी राजनीति भी किसीसार्थकऔर समीचीन मुद्दे को बहुतदूर तक ले जा सकती है. इस बात को बखूबी समझते हैं, बिहार में एक युवा,जिनका […]

पटना : कहते हैं कि अपने जीवन में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो जज्बे, जुनून के लिए जहमत उठाते हैं. जातिगत समीकरण की चाशनी में लिपटी बिहार की सियासत में अपनेजमातकी राजनीति भी किसीसार्थकऔर समीचीन मुद्दे को बहुतदूर तक ले जा सकती है. इस बात को बखूबी समझते हैं, बिहार में एक युवा,जिनका नाम है, आशुतोष कुमार. सूबे के अरवल जिले में जन्मे आशुतोष की कर्मभूमि गया रही है.बतौरसैनिक भारतीय सेना की नौकरी मेंमननहीं रमा और उन्होंने बिहार में भूमिहारों की स्थित और उनकीसमस्या पर काम करना शुरू कर दिया. आशुतोषकाआरक्षण को लेकर एकपवित्रस्टैंड है, हालांकिवहअपने तरीकेसे अपनी बातों को कहने में विश्वास रखते हैं. उन्होंने प्रभात खबर डॉट कॉम के प्रतिनिधि आशुतोष कुमार पांडेय से विस्तृत बातचीत में अपने इस अभियान के बारे में खुलकर बातचीत की.

बातचीत में उन्होंने कहा कि भूमिहारों को भी आरक्षण मिलना चाहिए. इसके लिए आंदोलन जरूरी है. वह मानते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. वैसे भी भूमिहारों का राजनीतिक वजूद वी.पी. सिंह ने ओ.बी.सी आरक्षण लाकरखत्म कर दिया है. अगर भूमिहार ओ.बी.सी वर्ग में शामिल हो जाए, तो फिर नेतृत्व इसी के हाथ में होगा. जिस तरह से2006 में गुजरात के तेली (धानची) समाज को ओ.बी.सी वर्ग में जोड़ा गया था. उसी तरह से भूमिहारों को भी आरक्षित वर्ग में शामिल किया जाये. आशुतोष भूमिहार समाज के मुद्दों को लेकर बेलाग और बेलौस बोलते हैं. उनकी बोली में एक ओज है, शायद इसलिए उनको पसंद करने वालों की संख्या खासी बढ़ती जा रही है.

उन्होंने बातचीत में बचपन में हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मेरेगांवमें एक समान जाति के मित्र को किसी दूसरे जाति के लोगों ने बहुत बुरी तरह पीटा. हमारा क्षेत्र उस समय जातिय संघर्ष के उथल पुथल में उलझा हुआ था. पंचायत में फैसला हुआ और फैसला कर्ता में हमारे पितास्वयंशामिल थे. फैसला दूसरे जाति वालों के पक्ष में था, मैं नाखुश था, पिता जी के सामने विरोध दर्ज किया. मैंने कहा कि जब गलती दूसरे जाति कीहै, तो फैसला हमारे खिलाफ क्यों? पिताजी ने कहा था कि हमारे जाति का धर्म सामाजिक समन्वय है न कि माहौल बिगाड़ना. लेकिन हमारे जाति के आपसी फूट का फायदा माहौल बिगाड़ने वाले ले रहे हैं. यह बात मुझे बचपन में इतना प्रेरित किया कि उसके बाद मैंने अपने जाति को एक कर सामाजिक समन्वय के लिए अपनी जिंदगी लगाने की सोची.

आशुतोष ने बताया कि मुझे एहसास हुआ कि जातिवाद को बढ़ावा देने का एक मात्र हथियार आरक्षण है, जिस पर भारतीय लोकतांत्रिक सरकार की सारी पार्टियां अपनासर्वत्रलुटाने के लिए तैयार हैं. मंडल आयोग के सिफारिश वाली सरकार हो या हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाली, किसी ने नौकरी के अवसर को बढ़ानेकी ओर ध्यान नहीं दिया.लेकिन आरक्षण के विस्तार को जातीय भेदभाव के रूप में जरूर बढ़ाया. आरक्षण के लिए मेरा विचार है कि आरक्षण मिले, लेकिनआर्थिकरूप से लाचार और कमजोरोंको. सीमित नौकरियों में सिर्फ गरीबों को अवसर मिले न कि जाति विशेष को. मैंने आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाई. कई जगह आंदोलन ,धरना प्रदर्शन करने के बाद एहसास हुआ कि पूरी कायनात हमारे विपक्ष में है और आर्थिक आधार पर आरक्षण मांगना एक सही मांग है पर टेढ़ी खीर भी. उसी बीच बिहार के राजनीति में भूमिहारों पर राजनैतिक आक्रमण होने लगे.

आशुतोष को उस राजनीति हमले ने बहुत कुछ सिखाया. उन्होंने कहा कि इंग्लिश पथरा नवादा की घटना में जाति सूचक शब्द का उपयोग करके पूरे गांव के भूमिहार भाइयों, माताओं व बहनों को पीटा गया और जब हम वहां शांति पूर्वक विरोध में हिस्सा लेने पहुंचे,तो पूर्व नियोजित ढंग से हमें झूठे मुकदमे केस में फंसाया गया. उसकेबादमैंने भूमिहार एकता मंच की नींव रखी और सारे भूमिहारों के पक्ष में आरक्षण की मांग रखना शुरू किया. लाखों बिखरे हुए भूमिहारों को एक करते हुए पटना, नवादा औरंगाबाद, भागलपुर, गया आदि जिलों में बैठक करते हुए सबों को एक मंच पर लाने का प्यास किया और करता रहूंगा. जल्द ही भूमिहारों के आरक्षण की मांग को लेकर एक बड़े आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जा रही है.

वहीं इस मामले पर भूमिहारों की राजनीति और उनकी सोच को करीब से देखने वाले वरिष्ठ टीवी पत्रकार धीरेंद्र कहते हैं कि समग्र रूप से देखेने पर ऐसा लगता है कि संघर्ष का माद्दा रखने वाली इस जाति के अधिकांश लोग आरक्षण प्राप्त करने की बजाय वर्तमान आरक्षण प्रणाली को समाप्त कर स्वस्थ्य प्रतियोगिता के पक्षधर हैं. बदलते दौर में आजीविका का मुख्य स्रोत के रूप में सरकारी सेवा और व्यापर का उभार हुआ है. लेकिन जाति आधारित आरक्षण की नीति ने सवर्ण जमात के योग्य अभ्यर्थियों को सरकारी सेवा से दूर किये हुए हैं. ऐसे ने न केवल भूमिहारों की ओर से बल्कि समस्त सवर्ण वर्ग या तो आरक्षण समाप्त करने का पक्षधर है या आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की नीति का पक्षधर है. जो लोग भूमिहारों के लिये जाति आधरित आरक्षण की वकालत कर रहे हैं उन्हें खुद अपनी जाति के विचार का अंदाजा नहीं है. भूमिहार आरक्षण की वकालत आर्थिक आधार और तो कर सकता है लेकिन जाति के आधार और नहीं, इसकी एक वजह यह भी है कि इस जाति के वरीय लोगों को यह पता है कि जाति के आधार पर आरक्षण की मांग संविधान के मापदंडों के आगे उचित नहीं ठहरेगा. फिलहार, आशुतोष का यह आंदोलन एक वृहद रूप लेने जा रहा है, इसमें कोई शक नहीं.

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