!!मिथिलेश!!
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बिहार में शराबबंदी : अब बेटी पढ़ भी रही और घर-परिवार में चैन भी है
!!मिथिलेश!! पटना : नाम, कृष्ण कुमारी देवी, उम्र करीब 50 साल. शिवहर जिले की कुशहर पंचायत की इस महिला के छह बच्चे हैं. घर में एक बहू भी है. बड़ा बेटा शराब पीने का आदी था. शराबबंदी लागू होने के बावजूद पीने की लत नहीं गयी. एक बार जबरन पीते देखा, तो मां होते हुए […]
पटना : नाम, कृष्ण कुमारी देवी, उम्र करीब 50 साल. शिवहर जिले की कुशहर पंचायत की इस महिला के छह बच्चे हैं. घर में एक बहू भी है. बड़ा बेटा शराब पीने का आदी था. शराबबंदी लागू होने के बावजूद पीने की लत नहीं गयी. एक बार जबरन पीते देखा, तो मां होते हुए भी खुद पुलिस में रिपोर्ट कर आयीं. पुलिस बेटे को ले गयी. जुर्माना देकर वह रिहा हुआ. लेकिन, इसके बाद उसकी जीवन धारा बदल गयी. अब वह राजमिस्त्री का काम सीख चुका है. उसे रोज जो आमदनी होती है, वह घर में खाने-पीने के काम आती है. कृष्ण कुमारी देवी ऐसी अकेली महिला नहीं हैं, जिनके जीवन में शराबबंदी खुशियों का पैगाम लेकर आयी है. वह कहती हैं, शराबबंदी लागू होने से हम जैसी गरीब और पिछड़ी महिलाओं के जीवन में सुख और चैन आया है. पहले घर में मारपीट होती थी और गंदी-गंदी गालियां सुनते दिन और रात गुजरती थी, अब चैन है. इसी जिले के मुसहर समुदाय से आने वाली 45 वर्षीया शकुंतला देवी कहती हैं, शराबबंदी के बाद से पूरे मांझी टोले में शांति है. माली पोखरभिंडा पंचायत के मांझी टोले में रहती हैं. इस महिला ने स्वीकार किया कि टोले में अब भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिनकी आदत छूटी नहीं है. लेेकिन, उनके परिवार की महिलाओं ने शपथ ली है, जब तक पीने की लत छूट नहीं जाती, तब तक वे कोशिश करती रहेंगी. इस टोले के बच्चे पहले स्कूल नहीं जाते थे. शकुंतला देवी बताती हैं कि अब अधिकतर बच्चे स्कूल जाते हैं और शराब पीने के आदी रहे टोले के पुरुष यह देख कर खुश हो रहे हैं कि उनकी अगली पीढ़ी पढ़ाई कर रही है.
शराब की गिरफ्त से आजाद जीवन
मुजफ्फरपुर जिले की नथनी महतो पंचायत की दौलत देवी वार्ड सदस्य हैं. अपनी आपबीती सुनाते हुए वह कहती हैं, जब कभी भी पंचायत के विकास व काम पर बैठक और प्रशिक्षण होता था, हमेशा हैरान-परेशान रहती थी. मेरे पति के काम न करने और दिन-रात दारू पीकर हल्ला-हंगामा करने की घटना ने मुझे मानसिक रूप से बीमार बना दिया था. किसी भी दूसरे काम में मेरा मन नहीं लगता था. गांव के लोग जब वार्ड सदस्य के नाते काम करने के लिए कहते थे, तभी भी मुझे कुछ समझ में नहीं आता था. दिन-रात सिर्फ यह सोचती रहती थी कि किस तरह पति शराब पीना छोड़ दें. गांव में शराब बंद कराने के लिए हम सभी महिलाएं एकजुट होकर आये दिन हल्ला करती थीं. एक-दो दिन दारू बंद होता था, पर फिर शुरू हो जाता था. जब शराबबंदी हुई, तो बहुत राहत हुई. अब मेरे पति न सिर्फ काम करने जाते हैं, बल्कि कमा कर पैसा भी देते हैं. मेरा भी मन अब पंचायत के काम में लगने लगा है.
पकड़ी पकोही पंचायत की कृष्णा देवी को अपने दोनों बच्चों को पढ़ाने की बहुत इच्छा थी. लेकिन, पति नंदकिशोर ठाकुर का रोजी-रोजगार के प्रति मनमाना रवैया और शराब की लत के कारण वह चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही थीं. पैसे की कमी के कारण कृष्णा ने अपनी बेटी और बेटे की पढ़ाई छुड़वा दी. बेटी मैट्रिक के आगे पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन पिता की आदतों के कारण उसे आगे की पढ़ाई छोड़नी पड़ी. कृष्णा कहती हैं, बेटी खूब रोयी कि मुझे आगे पढ़ना है. लेकिन, शराब के नशे में इसके पिता को कोई फर्क नहीं पड़ता था. बेटा को भी अाठवां पढ़ा कर पढ़ाई छुड़वा कर काम करने के लिए बोला जाता था. हम सब मजबूर थे. शराबबंदी के कुछ दिनों तक कृष्णा के पति परेशान रहे, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया. अब नंदकिशोर ड्राइवर का काम करते हैं. घर की माली हालत अच्छी होने के कारण दोनों बच्चों की पढ़ाई शुरू हो गयी है. कृष्णा की बेटी बहुत खुश है. उसका दाखिला इंटर में हो गया है. इसी पंचायत की नुरैशा खातून की कहानी अनोखी है. उनकी दो बेटियों में से बड़ी बेटी की पढ़ाई यह कह कर छुड़वा दी गयी कि अब तुम बड़ी हो गयी हो.
छोटी बेटी नेहा खातून की भी पढ़ाई बंद करवा कर मां के काम में हाथ बंटाने के लिए कहा गया. नुरैशा दूसरे के खेत में मजदूरी कर अपना, अपने पति और दोनों बेटियों का परवरिश करती थीं. पति शराब के नशे में धुत रहते थे. नुरैशा घर का बोझ अकेले उठा नहीं पा रही थीं. 15 वर्षीय नेहा कहती है, मुझे मालूम था कि मेरी पढ़ाई सिर्फ इसलिए छुड़वायी गयी है कि मेरे पापा काम नहीं करते और शराब पीते हैं. जब शराब पर रोक लगी, तो नेहा और उसकी बड़ी बहन की किस्मत ने भी करवट ली. नेहा पढ़ाई जारी रखने का जिद पकड़ी हुई थी. शराबबंदी के बाद नेहा के पिता ने नियमित ऑटो चलाना शुरू किया. जो भी कमाई होती, उसे अपने घर पर लाकर देने लगे. उनके व्यवहार में भी काफी बदलाव आया. आज नेहा पढ़ाई कर रही है. नुरैशा पर भी काम का बोझ कम हुआ है.
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