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बिहार : बाढ़ प्रभावित इलाकों में भूख, भय व भयावहता के बीच कट रही जिंदगी
लोगों की जिंदगी भूख, भय व भयावहता के बीच कट रही है. लोग अभी भी ऊंची जगहों पर शरण लिये हुए हैं. पानी तो कम हुआ, लेकिन बाढ़ में उजड़ चुके आशियाने को लेकर उनके सामने असमंजस की स्थिति है. सरकार ने पहले तो ऐसी जगहों पर राहत शिविर चलाया, लेकिन अब पानी कम होने […]
लोगों की जिंदगी भूख, भय व भयावहता के बीच कट रही है. लोग अभी भी ऊंची जगहों पर शरण लिये हुए हैं. पानी तो कम हुआ, लेकिन बाढ़ में उजड़ चुके आशियाने को लेकर उनके सामने असमंजस की स्थिति है.
सरकार ने पहले तो ऐसी जगहों पर राहत शिविर
चलाया, लेकिन अब पानी कम होने के साथ ही राहत शिविर को बंद कर दिया. अभी भी लोगों के सामने पेट भरने की समस्या है.पटना : पीड़ित परिवार इस उम्मीद में जी रहे हैं कि सरकार से मिलने वाली राहत सामग्री उन्हें मिल जाये, ताकि आगे का जीवन शुरू हो सके. पूर्णिया जिले के अमौर वायसी में स्टेट हाइवे 99 पर 50 परिवार से अधिक रह रहे हैं.
उनके लिए सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं है. उनके सामने भूखमरी की समस्या है. पलसा निवासी नुरुला ने बताया कि शिविर में खाना नहीं मिला. कीचड़ अधिक होने से वापस घर नहीं जा रहे हैं. अब्दुल मतीन शिविर में मात्र तीन दिन शिविर चला. लेकिन खाना सही तरीके से नहीं मिला.
राहत शिविर केवल खानापूर्ति के लिए है. जबकि राहत शिविर के नाम पर लूट हो रही है. कटिहार में चल रहे राहत शिवरों में सिर्फ औपचारिकता निभायी जा रही है. प्रभावित परिवारों को पका-पकाया भोजन एक समय मिल रहा है. छोटे-छोटे बच्चों को दूध नसीब नहीं हो रहा है.
मुख्यमंत्री के कदवा दौरे के दिन एक मात्र राहत शिविर में बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था हुयी थी. अभी कटिहार में 13 राहत शिविर चल रहा है. 155 सामुदायिक रसोइघर संचालित है. लेकिन अब सिर्फ औपचारिकता निभायी जा रही है. कटिहारी-मनिहारी रोड पर पीड़ित परिवार शरण लिये हुए हैं. उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है.
पीड़ितों के रहने तक शिविर में रहेगी व्यवस्था: सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के रहने तक शिविर को चलाने की बात कही थी. आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि पीड़ित जब तक चाहेंगे शिविरों में रह सकते हैं. स्थिति सामान्य होने पर वे लौटेंगे. विभाग की यह तैयारी जमीन पर नहीं दिखायी दे रही है.
इतना ही नहीं बाढ़ प्रभावित जिले में चल रहे राहत शिविरों को लेकर जिला व आपदा प्रबंधन विभाग के मुख्यालय में कोई तालमेल नहीं दिख रहा है.
मंगलवार को कटिहार जिले में जिला प्रशासन द्वारा 13 राहत शिविर चलाने की बात कही गयी, जबकि आपदा प्रबंधन विभाग की शाम के रिपोर्ट के अनुसार राहत शिविरों की संख्या शून्य बतायी गयी है. ऐसे में राहत शिविरों को लेकर तालमेल का अभाव है. आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार मंगलवार की शाम के रिपोर्ट के अनुसार तक किशनगंज में पांच,पूर्णिया में एक, दरभंगा में10, सीतामढ़ी में एक मुजफ्फरपुर में 79, सारण में 11,मधेपुरा में आठ व समस्तीपुर में एक राहत शिविर चलाया गया. इन शिविरों में एक लाख 38 हजार 602 लोग ठहरे हैं
बड़े भूखे पेट सो जाते हैं, बच्चों को कैसे समझायें
दिन मंगलवार, दोपहर के दो बजे हैं. मुशहरी प्रखंड के गंगापुर राहत कैंप में दिन के भोजन का वितरण किया जा रहा है. चावल, दाल व आलू-सोयाबीन की सब्जी बनी है. इस कैंप में शरण लिये बेदौलिया और आसपास के बाढ़पीड़ित भोजन लेने के लिए कतार में खड़े हैं. बड़ाें के साथ बच्चे भी कड़ी धूप में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. इलाके के मुखिया बाबूलाल पासवान व वार्ड सदस्य विनय कुमार अपनी देखरेख में बाढ़पीड़ितेां को भोजन दिलवा रहे हैं.
20 अगस्त से चल रहे इस कैंप में सुबह 10 बजे से चार बजे व शाम छह बजे से रात 10 बजे तक भोजन की व्यवस्था रहती है. अब दोपहर 2: 22 बजे हैं. भोजन के स्टॉल पर भीड़ कम गयी है. मैं कैंप दूसरी ओर पीड़ितों से रू-ब़-रू होने की कोशिश करता हूं. कैंप की दक्षिण छोर पर एक महिला अपने ढाई साल के रोते हुए बच्चे को गोद में लेकर उसे शांत कराने का प्रयास कर रही है. मन नहीं माना और मैं उसके पास पहुंच गया. पूछने जब उसने जो दर्द बयां किया, उसे जान कर हर संवेदनशील इंसान सोचने को मजबूर हो जायेगा. ग्लाेबल विलेज के युग में आज हम कहां है?
गंगापुर के कैंप में रह रही 25 वर्षीया कौशल्या कहती हैं, सर कल बच्चे के लिए बिस्कुट मिला था. आज नहीं मिला है. बड़े, तो भूखे पेट और कम खाकर भी रह लेंगे, लेकिन बच्चे को कैसे समझाया जाये. सुबह से गोलू बिस्कुट के लिए रो रहा है. दूध पिला कर इसे शांत कर रही हूं, लेकिन चुप नहीं हो रहा है. बोलते-बोलते कौशल्या की आखें भर आती हैं.
उसके चेहरे पर अपने बच्चे की पीड़ा और सिकन साफ छलक रही थी. मैं उसे सांत्वना देता हूं और बात को दूसरी मोड़ता हूं. घर के अन्य सदस्य और बच्चों के बारे में जानने की कोशिश करता हूं. कहती है पति रामबाबू सहनी तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करनेवाले रामबाबू के हिस्से में डेढ़ कट्ठा जमीन है, जिसके आधे में हिस्से में झोंपड़ी बना रहते हैं. बाढ़ ने सब कुछ लील लिया.
घर का एक सामान भी नहीं बचा. घर का सब सामान नदी की कोख में समा गया. कौशल्या कहती हैं मायके से मिला आभूषण ट्रंक (बक्शा) में रख था वह भी बाढ़ के पानी में बह गया. इस कैंप में कौशल्या लक्ष्मिनियां, फेकनी जैसी कई कई महिलाएं मिलीं, जिनकी पीड़ा रूलानेवाली थी. अब साढ़े तीन बज चुके हैं. दफ्तर की ओर मैं लौट रहा हूं भारी मन से. उस गोलू के लिए फफक कर रोने का मन कर रहा है. सिस्टम को कोस रहा हूं, लेकिन उम्मीद की किरण मन में जीवंत है. शायद हम-आप के साझा प्रयास से बदलाव की बयार बहे.
-मुजफ्फरपुर के गंगापुर
कैंप से पवन प्रत्यय
कितने लोग हैं, अंगूठा लगाओ और भोजन लो
कैंप में भोजन देने के पहले लोगों से परिवार के सदस्यों की संख्या की जानकारी ली जा रही है. फिर अंगूठे का निशान लगवाया जा रहा है. इसके बाद भोजन दिया जाता है. रामस्वरूप परिवार के सात सदस्यों के साथ इस कैंप में रहे हैं. वहीं लालमणि के परिवार में पांच सदस्य हैं. दोनों कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
भोजन स्टॉल के पास कतार में खड़े सोहन सहनी कहते हैं बाबू यहां भोजन, तो ठीक मिल रहा है, लेकिन बाढ़ के कारण घर में रखा अनाज डूब गया. साल भर की मेहनत बरबाद हो गयी. इसका जख्म भरने में समय लगेगा. हम जल्दी इससे नहीं उबर पायेंगे.
राहत शिविरों में मोबाइल जलदूत
राहत शिविरों में मोबाइल जलदूत व जेरीकेन से हो रही स्वच्छ जलापूर्ति
बाढ़ से प्रभावित इलाके में बने राहत शिविरों में जलापूर्ति व स्वच्छता को लेकर पीएचइडी विशेष ध्यान दे रही है. शिविरों में मोबाइल जलदूत व जेरीकेन से जलापूर्ति हो रही है. शिविरों में आवश्यकतानुसार टैंकरों से भी पानी पहुंचाया जा रहा है. पानी घटने के बाद राहत शिविरों की संख्या में कमी आयी है. जिस जिले में राहत शिविर चलाये जा रहे हैं वहां जलापूर्ति व स्वच्छता का ख्याल रखा जा रहा है. साथ ही पानी घटने के बाद चापाकल की सफाई का काम तेजी से हो रहा है.
सरकारी दवा व खाना खाकर नहीं कट रही जिंदगी
मुजफ्फरपुर. जिस इलाके में अभी भी पानी का प्रकोप है और राहत शिविर चलाये जा रहे हैं. वहां सुविधाएं नदारद है. राहत शिविर केवल खानापूर्ति के लिए है. जबकि राहत शिविर के नाम पर लूट हो रही है. कटिहार जिले में चल रहे राहत शिविरों में सिर्फ औपचारिकता निभायी जा रही है. प्रभावित परिवारों के
बीच पका-पकाया भोजन मात्र एक समय मिल रहा है. सबसे खराब स्थिति महिलाओं व बच्चे की है. छोटे-छोटे बच्चे को दूध नसीब नहीं हो रहा है.
खांसी, जुकाम व बुखार से पीड़ित हो रहे हैं मासूम बच्चे
मुजफ्फरपुर. बेदौलिया के गोनौर सहनी गंगापुर स्थित बाढ़ राहत कैंप के स्वास्थ्य शिविर में खड़े हैं. इनकी गोद में है घाव से पीड़ित पांच वर्षीया शिव कुमारी व बार-बार खांस रही तीन वर्षीया संजना कुमारी. दोनों रोते-राेते बेचैन है. ओम प्रकाश सहनी की पत्नी बबीता देवी अपने साढ़े तीन वर्ष के बेटे आयुष का इलाज करा रहे हैं. उसे सर्दी, खांसी, बुखार व दम फुल रहा है. देखने के बाद चिकित्सा दल दवा दे देते हैं. लेकिन, इनकी पीड़ा केवल इतनी ही नहीं है. गोनौर सहनी बताते हैं कि यहां दवा व खाना खा रहे हैं. घर में अभी गरदन भर पानी है. घर अब कैसे बसायेंगे, इसकी बहुत बड़ी चिंता है.
दिन भइर जत्ते बेर खाइ लेल जाई छिये माहटर सैहैब खाई दइ हई
मधुबनी. दिन के करीब एक बज रहे थे. हम अपने सहयोगी के साथ मधेपुर के जानकीनगर के महादलित टोले पर थे. भूतही बलान नदी के ठीक किनारे बसा यह करीब चार सौ की आबादी का गांव. सभी घर फूस के थे.
बीते दिनों आयी विनाशकारी बाढ़ ने इस गांव पर मानों कहर बरपा दिया. दो दर्जन से अधिक घर गिरे पड़े हैं. न सिर्फ गिरे हैं, बल्कि नदी की तेज धारा से इस कदर माटी भी कट गयी है कि दुबारा इस घर के बनने के आसार नहीं दिख रहे. शायद कई साल लग जायेंगे, इन लोगों को अपने घर को दोबारा खड़ा करने में. मुश्किल से मजदूरी कर दो जून की रोटी जुटा पाते हैं. घर बनाने के लिये तो अब इन्हें कई ट्रक मिट्टी, बांस, बल्ले, खर (एक प्रकार की घास) व अन्य सामान चाहिए. जो अब ये आसानी से नहीं ला सकेंगे.
हम गांव वालों से बातें करते धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. उजड़ी बस्ती को देखने के बाद मन में अचानक ही यह बात आयी कि आखिर अब ये लोग कहां खाते हैं दूर-दूर तक ऐसा कोई धनाढ्य भी नहीं, जो इन गरीबों को खाना खिला सके. हमने गांव के लोगों से बातचीत की. गांव के शनिचर सदा बताते हैं कि गांव में सात दिन पहिले स स्कूल पर खाना बनै हइ.
बलू खाना त एक्के टेम बनई हइ पर लोग भइर दिन में जत्ते बेर खाइ हई माहटर साहेब ओत्ते बेर खाई लेल दइहई. नै भगबई हइ. हम बस्ती में बने प्राथमिक स्कूल की ओर बढे. शनिचर की कही बातें सही दिख रही थी. गांव में बनी सड़क पर अभी भी करीब तीस-चालीस बच्चे व कुछ बुजुर्ग खाना खा रहे थे. पत्तल पर चावल, दाल व आलू का चोखा दिया गया था. सभी खा रहे थे. गांव के ही दो चार युवक इन लोगों को बाल्टी व कठौती में सामान ले ले कर बांट रहे थे.
विद्यालय पर पहुंचते ही स्कूल के मास्टर अनिल सदा आये. कहा कि हर दिन बस्ती के सभी लोग दो से तीन बार खाना खाते हैं. कभी खिचड़ी चोखा तो किसी दिन चावल दाल व सब्जी या चोखा खिलाया जा रहा है. हालांकि सफाई की बात इस त्रासदी में करना भी बेमानी ही होगी. अन्य दिनों की बातें होती, तो शायद ही कोइ इस माहौल में खा पाता. जिस जगह बच्चे खाना खा रहे थे. अगल बगल में ही मवेशी बंधे थे.
बुधन को सता रही घर की चिंता
मुजफ्फरपुर. अंग्रेजों के जमाने का मारवाड़ी हाइस्कूल का नजारा बदला हुआ है. क्लास रूम से लेकर मैदान तक उजड़े चमन की कहानी बयां कर रही है. महिलाएं कहीं बिखरे समान सहेज रही है, तो पुरुष कपड़े सूखा रहे हैं. वहीं बच्चे बेफिक्र मैदान में गुल्ली डंडा व गोली खेल रहे हैं. लकड़ीढ़ाही के बाढ़ पीड़ितों का बसेरा बने मारवाड़ी हाइस्कूल में 92 परिवार के 590 लोग शरण लिये हुए हैं. इसमें बुधन सहनी का परिवार ही है. बुधन ठेला चलाकर अपना गुजर-बसर करते हैं.
लेकिन, बाढ़ की मार ने इनके कारोबार को भी प्रभावित कर दिया है. बुधन के बगल में खड़ी उनकी पत्नी सुमित्रा देवी हंसते हुए कहती है, भदवइला हइ, अहि लेल काम न चल रहलइ ह. बुधन की चिंता रोजी-रोटी से ज्यादा घर की है. घर छोड़े आठ दिन से अधिक गुजर गये. राहत शिविर में खाने-पीने की दिक्कत नहीं है. दोनों शाम भरपेट भोजन मिलता है. हालांकि टाइम काे लेकर समस्या है.
बारह बजे दिन में भोजन मिलने से बच्चों को परेशानी होती है.वैसे रात में समय पर खाना मिल जाता है. मैदान में खेल रहे बिट्टू ने बताया कि सब ठीक है. लेकिन दो टाइम खाना मिलने से काम थोड़े ही चलता है. हमलोग खाना बनाते है. सरकार को सुबह में नाश्ता बंटवाना चाहिए.
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