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अब ठंडे बस्ते में चली गयी पीरपैंती बिजली परियोजना

पीरपैंती बिजलीघर की घोषणा के सवा साल बीत गये, हजार एकड़ जमीन भी अधिगृहीत हुई, खर्च भी हुए 400 करोड़ रुपये दीपक कुमार मिश्रा पटना : राज्य की एक महत्वपूर्ण बिजली परियोजना ठंढे बस्ते में चली गयी है. भागलपुर जिले के पीरपैंती में बनने वाले 1320 मेगावाट क्षमता वाले ताप बिजलीघर पर ग्रहण लग गया […]

पीरपैंती बिजलीघर की घोषणा के सवा साल बीत गये, हजार एकड़ जमीन भी अधिगृहीत हुई, खर्च भी हुए 400 करोड़ रुपये
दीपक कुमार मिश्रा
पटना : राज्य की एक महत्वपूर्ण बिजली परियोजना ठंढे बस्ते में चली गयी है. भागलपुर जिले के पीरपैंती में बनने वाले 1320 मेगावाट क्षमता वाले ताप बिजलीघर पर ग्रहण लग गया है यहां पर 660 मेगावाट की क्षमता की दो यूनिट लगनी थी. इसके लिए जमीन का अधिग्रहण भी हो गया है. चार सौ करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद परियोजना ठंडे बस्ते में है.
एनएचपीसी को यह बिजलीघर बनाना है. लेकिन सरकार के साथ हुए एमओयू (करार) की अवधि पिछले साल ही 22 फरवरी को समाप्त हो गयी. सवा साल बाद भी अवधि विस्तार नहीं हुआ. ऊर्जा विभाग की सूत्रों को माने तो तत्काल यह योजना ठंढ़े बस्ते में चली गयी है. ऊर्जा विभाग और बिजली कंपनी के कोई अधिकारी इस पर कुछ भी बोलने से कतराते हैं. वैसे विभाग में अभी इस योजना पर पूर्ण विराम भी नहीं लगा है. राज्य में बिजली की खपत लगातार बढ़ रही है.
उसकी तुलना में राज्य में बिजली का उत्पादन नगण्य है. 2010 में राज्य में बिजलीघर निर्माण की योजना बनी ताकि सेंट्रल पूल पर निर्भरता कम हो सके. इसके लिए लखीराय के कजरा, भागलपुर के पीरपैंती, बक्सर के चौसा और बांका में ताप बिजलीघर निर्माण की योजना बनी. इसके लिए जोर-शोर से काम भी शुरू हुआ. पीरपैंती के सुंदरपुर और आसपास को गांवों में जमीन अधिग्रहण भी शुरू हो गया.
पीरपैंती में 1320 मेगावाट का बिजलीघर बनना है. 660-660 मेगावाट की दो यूनिट यहां पर लगनी है. बिजलीघर के निर्माण के लिए एनएचपीसी से करार हुआ. बिजलीघर से उत्पादित 85 फीसदी राज्य को मिलना है. इसमें एनएचपीसी की हिस्सेदारी 76 फीसदी की और 24 फीसदी बिहार की है. केंद्र सरकार की प्रोजेक्ट इन्वेस्टमेंट बोर्ड से इसको अनुमति भी मिल गयी.
पीरपैंती में 1179 एकड़ में करीब एक हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण हो चुका है. किसानों को 50 से 85 लाख प्रति एकड़ की दर से जमीन मालिकों को भुगतान किया गया. अबतक करीब 400 करोड़ भुगतान हो चुका है. एमएचपीसी के साथ एमओयू की अवधि 22 फरवरी, 2016 को समाप्त हो गयी लेकिन उसके बाद इसका विस्तार नहीं हुआ.
फिर से एमओयू होना है. राज्य के ऊर्जा मंत्री विजेंद्र यादव ने बिजलीघर को शुरू करने के लिए कई बार केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने बात की लेकिन कोई फल नहीं निकला. पिछले दिनों ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने राज्य की लंबित बिजलीघरों पर कहा कि बिहार बिजली खरीद के लिए पहले करार तो करे. इसके बाद से और लगने लगा कि राज्य की लंबित बिजलीघरों पर तलवार लटक गयी है. बिजलीघर के निर्माण पर प्रति मेगावाट सात करोड़ का खर्च आता है. इस बिजलीघर को सिंहभूम के देवचा पश्चिमी कोल ब्लॉक से कोयले की आपूर्ति होगी. जानकार बताते हैं कि जिस समय बिजलीघर निर्माण की बात हुई थी उस समय देश में बिजली की काफी कमी थी. आज की तारीख में देश में पर्याप्त सरप्लस बिजली है.
और वह भी सस्ती. इसलिए जब तक बिजली बिक्री की व्यवस्था नहीं हो जाये तबतक कोई निवेश करना नहीं चाहता. इसी सब को देखते हुए ऊर्जा विभाग में पीरपैंती बिजलीघर को लेकर अभी कोई चर्चा नहीं है.

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