कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अशोक चौधरी ने कहा कि तीन साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की सरकार सभी माेरचों पर फेल साबित हुई है. लोकसभा के अगले चुनाव में जनता भाजपा को सबक सीखा देगी. बिहार की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन का प्रयास हो रहा है. इसमें गैर भाजपा पार्टियां एक मंच पर होंगी. सेकुलर मतों के बिखराव को रोक कर भाजपा को परास्त किया जायेगा. तीन साल में भाजपा की सरकार ने किसानों को ठगा, युवाओं को निराश किया. निर्यात घट गया, खेती चौपट हो गयी. कुल मिलाकर सभी मोरचे पर नरेंद्र मोदी की सरकार विफल साबित हुई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अशोक चौधरी से राज्य ब्यूरो प्रमुख मिथिलेश के बातचीत के अंश.
सवाल : भाजपा सरकार के तीन साल के कार्यकाल को कांग्रेस किस रूप में देखती है?
डॉ अशोक चौधरी: केंद्र सरकार की तीन साल की उपलब्धि जीरो है. किसी भी फ्रंट पर सरकार सफल नहीं रही. किसानों की हालत खराब है. युवाओं को रोजगार नहीं मिला. आइटी सेक्टर की नौकरियों में कटौती की गयी है. महंगाई कम नहीं हो पायी. देश में इनके पहले मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. वह बोलते कम थे. नरेंद्र मोदी बोलते अधिक हैं. जो कम बोलने वाले प्रधानमंत्री थे उनके कार्यकाल से नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की तुलना करें तो कृषिगत निर्यात में भारी कमी आयी. जीडीपी में गिरावट आया. नोटबंदी के बाद यह कमतर होता गया. नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के पचास फीसदी अधिक लागत मूल्य देने की घोषणा पर अमल नहीं कर पायी. भारत एक कृषि प्रधान देश है. किसानों को जो उम्मीद बंधी थी वह पूरी तरह समाप्त हो गयी. उनके चेहरे की निराशा से यह आकलन किया जा सकता है. मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तो उस समय लंदन में हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बहस चली कि भारत पर आर्थिक मंदी का असर क्यों नहीं पड़ा. बहस में एक बात उभरकर सामने आयी कि इसके तीन कारण है, पहला प्रधानमंत्री, दूसरा वित्तमंत्री और तीसरा यह कि भारत की समानांतर इकोनोमी. पर इस तीन साल में भारत इन सभी माेरचों पर फिसड्डी साबित हुई. निर्यात का रेशियो गिर गया. जीडीपी की दरों में गिरावट आयी.
सवाल : भाजपा का दावा है कि तीन साल में केंद्र ने सभी वर्गों के लिए योजनाएं शुरू की है, आने वाले समय में इसका लाभ उसे मिलेगा?
डॉ अशोक चौधरी: बड़े-बड़े वादे कर सरकार में आना बड़ी बात नहीं है. बल्कि, बड़ी बात है सरकार में आकर पूर्ववर्ती सरकार से अधिक काम कर दिखाना और चुनावी वादों को पूरा करना. लेकिन, भाजपा ने लंबे चौड़े वादे कर और जनता को दिग्भ्रमित कर सरकार में आ गयी. लेकिन, सत्ता में आने के बाद उसने जितने भी कार्यक्रम शुरू किये, एक का भी सरोकार आमलोगों के हित से नहीं रहा. भाजपा बताए कि मेक इन इंडिया, कौशल विकास योजना का बजट क्या है. शिक्षा और स्वास्थ्य में देश में बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है, इन विभागों के बजट में कटौती कर दी गयी. तीन साल में सरकार ने सिर्फ अपनी मार्केटिंग की है. अपना औरा फैला कर जनता को बहलाने की कोशिश की है. तीन साल में एक पाई का निवेश बढ़ नहीं पाया. जो भी निर्यात हो रहे थे, उनमें भी भारी गिरावट आयी. नोटबंदी का सीधा असर गरीब जनता पर पड़ा. यह सब अपने उद्योगपति मित्रों की सुविधा के लिए किया गया. देश व राज्य की जनता अब सबकुछ जान गयी है.
सवाल : 2019 में आप भाजपा का क्या भविष्य देखते हैं. उसका दावा तो राज्य की सभी चालीस सीटों पर है?
डॉ अशोक चौधरी: भाजपा सपना देख रही है. बिहार में जिस प्रकार तीन दलों का महागठबंधन बना, उसी तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ गठबंधन की कोशिशें हो रही है. गैर भाजपा सारे दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास चल रहा है. जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, भाजपा के खिलाफ लोगों में आक्रोश बढ़ता जायेगा. लोकसभा चुनाव के करीब आते-आते भाजपा के खिलाफ देश की तमाम पार्टियां एकजुट होंगी. जब सेकुलर मतों का बिखराव नहीं होगा तो भाजपा अपने आप परास्त होगी. बिहार उदाहरण है. यूपी में देखा जाये तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को मिले मतों को जोड़ दिया जाये तो यह भाजपा को मिले वोट से अधिक है. इसी प्रकार असम का भी उदाहरण है. हमने यूपी और असम में कोशिश की थी, पर वह सफल नहीं हुआ. लेकिन, लोकसभा के आगामी चुनाव में हम सबका प्रयास रंग लायेगा और भाजपा कहीं की नहीं रहेगी. न बिहार में और न राष्ट्रीय स्तर पर.
सवाल : मगर, भाजपा कहती है कि बिहार में महागठबंधन ने आरक्षण को लेकर गलत अफवाह फैलाया. यही उसकी हार का कारण बना?
डॉ अशोक चौधरी: बिहार गंगा-जमुनी तहजीब वाला प्रदेश रहा है. भाजपा गलतबयानी कर रही है आैर हार के कारणों से अब भी सबक नहीं लिया है. भाजपा को अब हार के लिए कोई न कोई बहाना तो चाहिए. वोटों के बंटवारे में भाजपा फेल हो गयी. भाजपा तो शुरू से ही आरक्षण का विरोधी रही है. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान लोगों ने इसे समझा. महागठबंधन का दायरा बढ़ता गया. दूसरे राज्यों में भी सेकुलर मतों काे जोड़ दिया जाये तो भाजपा कहीं नहीं ठहरती. भाजपा का वोट प्रतिशत वैसे भी गिरा है. इसलिए वह हार का बहाना गढ़ रही है. जबकि, वास्तविकता यह है कि भाजपा को वोटरों ने तवज्जो ही नहीं दिया. भाजपा तब-तब हारेगी जब-जब गैर भाजपा पार्टियां एक होकर लड़ेगी.
सवाल: भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को अजमाना चाहती है. यूपी की तरह बिहार में भी जातियों की गोलबंदी चाह रही है?
डॉ अशोक चौधरी: भाजपा की मानसिकता किसी भी तरह सत्ता पाने की रही है. हाल के दिनों में उस दल में जो कोई भी शामिल हुए, उनके साथ जनता नहीं है. नेताओं का जमावड़ा हो सकता है लेकिन, वोट और जनता भाजपा के साथ नहीं है. तीन साल में भाजपा ने कोई काम किया तो वह है सर्टिफिकेट बांटने का. चाहे किसी को देशभक्ति का प्रमाणपत्र बांटना हो या किसी दल को बेहतर कहना हो, इसी काम में उसने तीन साल गंवा दिये. अब वह सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लेना चाहती है. उसके साथ जो भी लोग आ रहे हैं, उन्हें जनाधार वाले दल में कहीं स्पेस नहीं मिला तो भाजपा में शामिल हो गये. आगामी चुनावों में इसका कोई असर नहीं दिखेगा. परिस्थितियां बदली हैं. जनता जागरूक है, उसे अब कोई बरगला नहीं सकता.