पर ही नव वर्ष की दे रहे बधाईयां
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अब ग्रिटिंग कार्ड नहीं लाते डाकिये, मोबाइल बना साधन
पर ही नव वर्ष की दे रहे बधाईयां बिहारशरीफ : नव वर्ष 2017 में अब गिने-चूने दिन शेष है, लेकिंक बाजारों में ग्रिटिंग कार्ड खरीदने-बेचने वालों की संख्या भारी कम नजर आ रही है. पिछले कुछ वर्षो की तरह न ग्रिटिंग कार्ड खरीदने की जल्दबाजी दिख रही है और न डाकघर में जल्दी से इसे […]
बिहारशरीफ : नव वर्ष 2017 में अब गिने-चूने दिन शेष है, लेकिंक बाजारों में ग्रिटिंग कार्ड खरीदने-बेचने वालों की संख्या भारी कम नजर आ रही है. पिछले कुछ वर्षो की तरह न ग्रिटिंग कार्ड खरीदने की जल्दबाजी दिख रही है और न डाकघर में जल्दी से इसे भेजने की होड़ है.
कारण मोबाईल है जो नव वर्ष की बधाई संदेश भेजने के स्वरूप को बदलकर ग्रिटिंग कार्ड्स को दर-किनार कर दिया है. लोग मोबाईल तथा इन्टरनेट के माध्यम से कोई सुन्दर सी फोटो निकालकर कुछ शब्दों को टाईप करते है और झट से अपने मित्रों तथा परिजनों को पोस्ट कर दे ६रे है. बधाई संदेश देने वाले तो 15-20 दिनों पूर्व से ही अपने मित्रों-
परिजनों को एडवांस में नव वर्ष की बधाई भेज रहे हैं. विगत 2-3 दशकों तक ग्रिटिंग कार्ड से बधाईयां देने का चलन तो नई टेकनोलॉजी की भेंट चढ़ गयी. अपने मित्रों तथा परिजनों को ग्रिटिंग कार्ड के माध्यम से नव वर्ष की शुभकामना भेजने वाले लोग अब ओल्ड जेनरेशन में शामिल हो गए हैं न्यू जेनरेशन तो सीधे मोबाईल तथा इन्टरनेट की मदद से आकर्षक तस्वीर निकालकर हृवाट ऐप्स तथा फेशबुक पर सेन्ट कर देते हैं. समय के साथ-साथ पैसों की भी बचत हो जाती है तथा सेकेण्डों में बधाई संदेश पहुंच जाते है. जिसे मेसेज मिला वह भी अच्छा लगने पर किसी और को मेसेज सेन्ड कर अपना दायित्व निभा लेते हैं.
ग्रिडिंग कार्ड के लिए डाकिये का रहता था इंतजार:
कुछ ही वर्ष पहले दिसम्बर के अन्तिम हफ्ते में लोगों को ग्रिटिंग कार्ड के लिए डाकिये का इन्तजार रहता था. जनवरी के प्रथम सप्ताह तक डाकिये लोगों को उनके ग्रिटिंग कार्ड पहुंचाते रहते थे. टेक्नोलॉजी के विकास ने डाकिये के महत्वको घटा दिया, बल्कि डाकिये नजर ही नहीं आते है. यदि डाकिये नजर आ भी गये तो कोई अन्य चिट्ठी-पत्री देकर चले जाते है. कारण
लोग ग्रिटिंग कार्ड भेजते ही नही तो डाकिये कहां से लायेंगे.
उत्साह के साथ-साथ कारोबार भी ठंडा :
ग्रिटिंग कार्डो के माध्यम से नववर्ष की बधाई देने-लने में बाजारों में बड़े कारोबार होते थे. इससे कार्ड बनाने वाली कंपनियों के साथ-साथ कारोबारियों को भी अच्छा मुनाफा होता था. शहर के ग्रिटिंग कार्ड विक्रेता प्रमोद कुमार ने बताया कि अब कार्ड के प्रति लोगों में आकर्षण नहीं रहा. इस वर्ष तो पूंजी निकलना भी मुश्किल लग रहा है. विगत तीन-चार वर्षो में ग्रिटिंग कार्ड भेजने वालों का उत्साह तेजी से घटने के कारण इसका कारोबार भी ठंडा हो गया.
फुटपाथ तक बिकते थे कार्ड्स :
मध्य दिसम्बर आते-आते बाजारों में सैकड़ों प्रकार के ग्रिटिंग कार्ड पहुंच जाते थे. धीरे-धीरे छोटे कारोबारी भी फुटपाथों तथा ठेलों पर भी रंग-बिरंगे ग्रिटिंग कार्ड बेचने लगते थे जहां युवाआंें की भीड़ उमड़ पड़ती िाी. 10 रूपये से लेकर 50-60 रूपये के आकर्षक ग्रिटिंग कार्ड भेजने के लिए लोग डाकघरों में भी उमड़ पड़ते थे. हर कोई अपने-अपने पसंद के कार्ड खरीदकर मित्रों तथा परिजनों को भेजते थे. कांर्ड में लिखे संदेश भेजने वालों की भावनाओं को प्रकट करते थे. ग्रिटिंग कार्ड का व्यवसाय ही अब अन्तिम सांसे ले रहा है.
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