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अब प्याज रुला रही किसानों को

जिले में नहीं है भंडारण की व्यवस्था खेतों में नहीं पहुंच रहे व्यापारी बिहारशरीफ : सुखाड़ की त्रासदी झेल रहे किसानों को अब प्याज रूलांने लगी है. प्याज की खरीदार नहीं मिलने से किसानों को भारी क्षति उठानी पड़ रही है. खेत में प्याज का भंडार होने के बाद भी खेतों तक व्यापारी नहीं पहुंच […]

जिले में नहीं है भंडारण की व्यवस्था

खेतों में नहीं पहुंच रहे व्यापारी
बिहारशरीफ : सुखाड़ की त्रासदी झेल रहे किसानों को अब प्याज रूलांने लगी है. प्याज की खरीदार नहीं मिलने से किसानों को भारी क्षति उठानी पड़ रही है. खेत में प्याज का भंडार होने के बाद भी खेतों तक व्यापारी नहीं पहुंच रहें हैं. प्याज की खेती करने वाले किसानों का बुरा हाल है.
किसानों का कहना है कि लागत पूंजी भी नहीं निकल रही है. प्याज को नकदी फसल मानी जाती है. जिले के लाखों किसान मुनाफा के लिए इसकी खेती करते हैं. खासकर बिहारशरीफ, नूरसराय व जिले के अन्य क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर खेती की जाती है. इस साल फसल अच्छी हुई है. बरसात का दंश नहीं झेंलने के कारण उत्पादन अच्छी होने की बात किसान कर रहे हैं. किसानों का हाल जानने के लिए जब खेत पर पहुंचे तो किसान सुनील कुमार निराला ने बताया कि प्याज के भाव तो रूलां रही है. पांच रुपये किलो में भी खेत तक व्यापारी नहीं पहुंचे रहे हैं
. कीमत नहीं मिलने के कारण किसान घर में स्टॉक करने को विवश है. वे बातते हैं कि जितनी लागत लगी है उतनी कीमत भी नहीं मिल पा रही है. आगे न जाने क्या होगा. किसान बताते हैं कि 1300 से 1600 रुपये बीज में ही लग गया था. इसके बाद फसल तैयार करने में खाद्- तेल, पानी लगा सो अलग. फसल तैयार होने पर प्रति डला प्याज काटने के लिए आठ रुपये मजदूरी देनी पड़ी है. फसल बहुत अच्छा रहने पर प्रति कठा पांच से आठ मन दर जाता हैं.
पांच से छह माह में तैयार होती है प्याज की फसल:
प्याज की खेती में करीब छह माह का समय लग जाता है. छह माह तक अगर मौसम ठीक रहा तो किसानों को अहो भाग्य. अगर मौसम ने दगा दिया तो फिर पूंजीं भी खत्म. इस साल मौसम ठीक ठाक रहा. किसान बताते है कि सबसे पहले प्याज का बीज बोया जाता है. बीज से गाछी बनने में डेढ़ माह का समय लग जाता है. इसके बाद गाछी खेतों में लगाया जाती है. फसल तैयार होने में चार माह का समय लग जाता हैं.
नहीं है भंडारण व मार्केटिग की व्यवस्था:
जिले में प्याज को सुरक्षित रखने की कोई व्यवस्था नहीं है. सरकारी या प्राईवेट स्तर पर व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को मजबूरी में अपने स्तर व पारंपरिक तरीके से इसे सुरक्षित रखने पड़ता है. इसमें सुरक्षा कम जोखिम ज्यादा है. गर्मी से बचाने के लिए जितना तापामन चाहिए उतना नहीं मिलने पर प्याज सड़ने भी लगता है.
किसान बताते है कि घर में स्टॉक करने के बाद कुछ माह के बाद बाजार में कीमत में उछाल आती है तब आधे से ज्यादा प्याज गनौरा हो जाता है. किसान यह भी कहते हैं कि धान व गेहूं की तरह सरकारी स्तर पर खरीदारी की भी व्यवस्था होनी चाहिए.लेकिन इसकी कोई सरकारी व्यवस्था अभी तक नहीं है. इससे भी परेशानी उठानी पडती हैं.

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