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नाम एक, काम अनेक, कहीं जुगाड़ तो कहीं झरझरिया

बिहारशरीफ (नालंदा) : यूपी में इसे जुगाड़ कहते हैं. बिहार की भाषा में कहें तो यह झरझरिया है. नाम को लेकर इसे कहीं से एनओसी नहीं मिला है. सरकार तो इसे गाड़ी मानती ही नहीं है. नाम के अनुरूप इसके काम भी हैं. जुगाड़ तकनीक से विकसित यह ठेला (इंजन चालित) बड़ा विचित्र है. ठेले […]

बिहारशरीफ (नालंदा) : यूपी में इसे जुगाड़ कहते हैं. बिहार की भाषा में कहें तो यह झरझरिया है. नाम को लेकर इसे कहीं से एनओसी नहीं मिला है. सरकार तो इसे गाड़ी मानती ही नहीं है. नाम के अनुरूप इसके काम भी हैं. जुगाड़ तकनीक से विकसित यह ठेला (इंजन चालित) बड़ा विचित्र है.

ठेले का हरेक पार्ट दूसरे वाहनों के सपोर्ट से तैयार किया गया है. मसलन इसका इंजन खेत में पटवन करने के प्रयोग में लाये जानेवाली मशीन है,जो डीजल से चलता है.इसकी अन्य खासियत भी जानने योग्य है.तीन टायर के सहारे सड़क पर दौर लगाने वाले इस झरझरिया के पीछे का दोनों पहिया फियेट कार से लिया गया है, जबकि आगे का एक पहिया बाइक का लगा होता है. इंजन में लगी चेन भी बाइक का ही होता है. तेल की टंकी का जुगाड़ कोई बड़ी बात नहीं होती है.

जानकार बताते हैं कि इसकी खरीदारी करीब 50 हजार में हो जाती है. एक लीटर में करीब 20 किलोमीटर का सफर तय करनेवाले इस वाहन को इसके इंजीनियर घर में ही तैयार कर लेते हैं. झरझरिया पर सामान के अलावे सवारी को भी बैठाया जाता है. ऐसे नजारे जिला मुख्यालय में भी देखे जा सकते हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में तो ऐसे दृश्य आम हो गये हैं. अब तीन दिन पूर्व झरझरिया चालक की मौत एक भीषण सड़क हादसे में हो गयी थी.

कहते हैं जिला परिवहन पदाधिकारी

जिला परिवहन पदाधिकारी ब्रजेश कुमार कहते हैं कि झरझरिया व जुगाड़ के नाम से प्रसिद्ध यह ठेले को सरकार ने वाहन का दर्जा नहीं दिया है. उन्होंने कहा कि ठेले में इंजन फिट कर के चलाना पूरी तरह गैर कानूनी है.

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