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बख्तियारपुर थाने में आग लगाने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे अर्जुन दास

बिहारशरीफ : देश को आजाद कराने के लिए कई लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी हैं. कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि को आजादी दिलाने की खातिर स्वतंत्रता संग्राम में कूदकर अपनी जवानी को न्योछावर कर दिया. देश के कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने जीवन के बहुमूल्य समय […]

बिहारशरीफ : देश को आजाद कराने के लिए कई लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी हैं. कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि को आजादी दिलाने की खातिर स्वतंत्रता संग्राम में कूदकर अपनी जवानी को न्योछावर कर दिया. देश के कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने जीवन के बहुमूल्य समय लगाया, उनकी इस कुर्बानी को हम कैसे भूल सकते हैं.

ऐसे ही एक शख्स हैं शहर के मथुरिया मुहल्ला निवासी अर्जुन दास. अपनी उम्र का शतक पूरा करने के दहलीज पर खड़े अर्जुन दास 05 मार्च, 2020 को 100 वर्ष पूरा कर लेंगे. अर्जुन दास ने देश की आजादी की लड़ाई में बख्तियारपुर थाने को आग के हवाले करने में अपनी भूमिका निभायी थी.
अर्जुन दास बताते हैं कि अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों ने बख्तियारपुर थाने को आग के हवाले कर दिया था. इस जुर्म में उन्हें गिरफ्तार कर कैंप जेल पटना में रखा गया था. शेखपुरा जिले के घाटकुसुंभा में अर्जुन दास का पैतृक घर है. आजकल वे बिहारशरीफ में रहते हैं. उनके तीन बेटे हैं. तीनों कपड़े का व्यवसाय करते हैं.
उम्र अधिक हो जाने की वजह से वे न तो ठीक से सुन पाते हैं और न ही बोल पाते हैं. अपने पोते-पोतियों की मदद से वे थोड़ा-बहुत बातचीत कर पाते हैं. वह बताते हैं कि उस वक्त दिन-रात आजादी के ही ख्याल आते थे. अंग्रेजों के जुल्म से लोग तंग थे व हर हाल में देश को आजाद कराने पर तुले हुए थे.
देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात पर होता है दुख
अर्जुन दास बताते हैं कि हमलोग देश को बड़ी जतन से आजाद कराये. आजकल अक्सर टीवी पर देश को टुकड़े-टुकड़े करने की बात होती है. देश के विरोध में एक से बढ़कर एक नारे लगाये जाते हैं. इन नारों को सुनकर मन व दिल को बड़ी पीड़ा होती है. आजाद भारत में इस तरह की बातें बड़ी शान से लोग कह रहे हैं.
दिल को ठेस पहुंचती है, लगता है कि ऐसा ही दिन देखने के लिए देश आजाद हुआ था. यहां पूरी आजादी है, देश आजाद है तभी इस तरह के नारे पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है. देश की आजादी का कुछ लोग गलत फायदा उठा रहे हैं.
हमें सिखाया जाता था वतन से प्रेम करना
अर्जुन दास पुराने जमाने की बात करते हुए कहते हैं कि मैं ज्यादा तो नहीं, मगर सातवीं क्लास तक पढ़ा हूं. उस वक्त हमें अपने वतन से प्रेम की सीख दी जाती थी. मातृभूमि को मां कहा जाता था. आज के कुछ लोग इन बातों से अनभिज्ञ हैं ऐसा लगता है या फिर उन्हें यह सब नहीं पढ़ाया गया है. अर्जुन दास बताते हैं कि आजादी सभी को अच्छी लगती है. अंग्रेजों के शासन में लोग बंदिशों की जंजीरों में जकड़े थे. देश आजाद और हमेशा आजाद ही रहे ऐसी मेरी कामना है.
हमने युवा जोश को देशहित में लगाया
अर्जुन दास बताते हैं कि करीब 19-20 की उम्र में ही देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. अपने युवा जोश को देश हित में न्योछावर कर दिया. पढ़-लिखकर नौकरी के बजाय, युवाओं में देश को आजाद कराने का जुनून सवार था. देशवासियों पर अंग्रेजों के जुल्म व सितम के खिलाफ लोग गोलबंद हो गये थे.

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