मुजफ्फरपुर: सर, अमीर का खून-खून है, और गरीब का खून पानी है, जब चाहे अमीर उसे अपने पैरों तले रौंद देता है. अगर आम लोग कोई अपराध करे तो पूरे जिले की पुलिस उसके पीछे पड़ जाती है, लेकिन एक गरीब ठेला चलाने वाले को पुलिस की कार ने रौंद दिया, उसको कौन पकड़ेगा. कार सवार दो ही लोग पकड़ाये. बाकी बचे बड़े पुलिस पदाधिकारी कहां गये़ सर, बताइए अब गरीब को सड़क पर निकलना नहीं चाहिए.
हम गरीबों को जवाब चाहिए. सर, अब इस गरीब की पत्नी और मासूम बेटी कहां और किसके यहां जाकर रहेगी. उसके लिए कौन दो वक्त की रोटी जुटा कर देगा. यह सवाल शुक्रवार को एलएस कॉलेज गेट पर पुलिस की कार से ठोकर लगने से गणेश महतो की हुई मौत से आक्रोशित लोगों ने काजीमोहम्मदपुर थानेदार मिथिलेश झा से किये. थानेदार ने आक्रोशित लोगों को समझाया कि कार चालक व एक अन्य के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज कर जेल भेज दिया गया है. तब जाकर आक्रोशित लोग शांंत हुए.
अखबार में खबर पढ़ शव लेने एसकेएमसीएच पहुंचे परिजन
गणेश महतो की मौत के बाद पुलिस उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए एसकेएमसीएच भेज दिया था. शुक्रवार की सुबह अखबारों में खबर पढ़ने के बाद मुहल्ले के लोगों ने पत्नी सुनीता देवी को दी. वह मुहल्ले की लोगों की सहायता से शव को लाने के लिए एसकेएमसीएच पहुंच गयी. आक्रोशित लोगों ने कॉलेज गेट पर तंबू लगाकर शव को सड़क पर रख कर जाम कर दिया. बांस-बल्ला से सड़क को घेर छाता चौक-कलमबाग चौक रोड को बंद कर दिया. पुलिस प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। थानेदार ने भी समझाने का प्रयास किया, लेकिन लोगों ने उनकी एक नहीं सुनी. मृतक के दामाद रवि कुमार ने जिला प्रशासन से तत्काल मिलने वाले मुआवजा के अलावा पांच लाख रुपये की मांग कर रहे थे. तीन घंटे बाद मौके पर पहुंचे सीओ प्रतिनिधि ने तात्कालिक लाभ के तहत पीड़ित परिवार को 20 हजार रुपये का चेक दिया,तब जाकर जाम समाप्त हुआ. जाम के दौरान स्थानीय लोगों से कई राहगीरों की नोक- झोंक भी हुई, लेकिन वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने समझा कर मामले को शांत करा दिया.
ठेला चला कर की थी चार बेटियों की शादी. गणेश महतो ने अपनी चार बेटी नूतन, कुंदन, गुड़िया और रानी की शादी की थी. पांचवी बेटी मुन्नी कुमारी पांचवी की छात्रा है. भूमिहीन होने के कारण गणेश महतो पिछले 60 साल से नया टोला में किराये की मकान में रह रहे थे. पत्नी सुनीता देवी दूसरों के घरों में चौका- बर्तन करके अपने पति का सहयोग करती थी. अचानक पति की मौत के बाद सुनीता बदहवास हो गयी. वह बार- बार अपनी 12 वर्षीय मासूम बेटी को पकड़ बेहोश हो जाती थी. होश में आने के बाद बस एक ही बात कहती थी कि अब इसका परवरिश कौन करेगा, कौन घर का किराया देगा. मुहल्ले की महिलाएं और उसकी शादीशुदा बेटी लगातार उसका हिम्मत बढ़ा रही थी.