प्रारंभिक स्कूलों में पिछले साल की किताबों से नये सत्र का आगाज
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साहब! रद्दी के सहारे कैसे संवरेगा देश का भविष्य
प्रारंभिक स्कूलों में पिछले साल की किताबों से नये सत्र का आगाज 40 से 50 प्रतिशत बच्चों की पिछले सत्र में ही गायब हो गयी किताब मुजफ्फरपुर : मुशहरी प्रखंड के राजकीयकृत प्राथमिक विद्यालय शेखपुर में पहली से पांचवीं कक्षा तक 80 बच्चों का नामांकन है. अभी 50-60 बच्चों की उपस्थिति बनती है. मूल्यांकन के […]
40 से 50 प्रतिशत बच्चों की पिछले सत्र में ही गायब हो गयी किताब
मुजफ्फरपुर : मुशहरी प्रखंड के राजकीयकृत प्राथमिक विद्यालय शेखपुर में पहली से पांचवीं कक्षा तक 80 बच्चों का नामांकन है. अभी 50-60 बच्चों की उपस्थिति बनती है. मूल्यांकन के बाद विभाग के निर्देश पर तीसरी कक्षा की 10, चौथी की सात व पांचवीं की 12 किताबें जमा करायी गयी हैं. इसमें अधिकांश किताबों का आगे व पीछे से 10-15 पन्ना गायब है. प्रधानाध्यापिका उषा शाही ने बताया कि किताबों के पन्ने उखड़ चुके हैं. बच्चे उसे लेने से भी इनकार कर दे रहे हैं. सभी का कहना है कि जब नयी किताब आयेगी, तो लेंगे. कुछ किताबें ठीक थी, तो बच्चों में बांट दिया गया.
इसी तरह प्राथमिक विद्यालय अहियापुर दुब्बा में 50 बच्चों का नामांकन है. मूल्यांकन के बाद बड़ी मुश्किल 20 बच्चों की किताबें वापस ली जा सकीं. उसमें भी अधिकतर किताबें रद्दी की तरह हो चुकी हैं. स्कूल प्रभारी संगीता कुमारी छुट्टी पर थीं. सहायक शिक्षिका पूनम कुमारी ने बताया कि किताब नहीं होने से बच्चों को पढ़ाने में
दिक्कत होती है. वहीं नया सत्र शुरू होने के बाद अभिभावक भी किताबों के लिए दबाव बनाने लगे हैं, क्योंकि सरकारी स्कूल की किताबें बाजार में उपलब्ध नहीं हैं.
बच्चों के लिए अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है, लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते शिक्षा व्यवस्था बेपटरी होती जा रही है. स्थिति यह है कि सरकारी स्कूलों में रद्दी किताबों के सहारे देश का भविष्य संवारने की कोशिश की जा रही है.
पिछले साल करीब 50% किताबें ही स्कूलों को उपलब्ध करायी जा सकी थी. इस साल भी सत्र शुरू हुए एक महीना गुजरने को है. बिहार शिक्षा परियोजना परिषद पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि इस सत्र में भी नि:शुल्क किताब उपलब्ध कराने में विलंब हो सकती है.
इसके लिए वार्षिक मूल्यांकन के दौरान ही पिछले साल की किताबें जमा करा लेने का निर्देश दिया गया था. स्कूल प्रभारियों ने मुख्यालय के निर्देश का पालन तो किया, लेकिन अधिकतर किताबें रद्दी बन चुकी हैं. काफी मुश्किल से 40 से 50 प्रतिशत किताबें वापस ली जा सकी हैं. उस पर भी उनके आगे व पीछे से दो- चार अध्याय ही गायब हो चुके हैं, तो पढ़ाई किस तरह होगी.
कैसे होगी पहली-दूसरी व छठवीं-सातवीं की पढ़ाई : नये सत्र में सरकार की ओर से अभी तक नि:शुल्क किताबें नहीं मिलने से चार कक्षाओं की पढ़ाई मुश्किल हो गयी है. पहली व दूसरी कक्षा में अभ्यास पुस्तिका मिलती है, तो एक सत्र के बाद बेकार हो जाती है.
इसलिए तीसरी कक्षा के बाद की किताबें जमा कराने का ही निर्देश मिला था. ऐसे में पहली व दूसरी कक्षा के बच्चों को किस तरह पढ़ाया जाये, इसको लेकर शिक्षक परेशान हैं. बताते हैं कि अभ्यास पुस्तिका जल्द भेजने को कहा गया है. वहीं छठवीं व सातवीं कक्षा के छात्रों के लिए भी काफी परेशानी है, क्योंकि पिछले सत्र में भी दोनों कक्षाओं के लिए किताब नहीं मिली थी.
अधिकतर किताबों के आगे व पीछे से 10-15 पन्ने गायब
हिंदी की किताबों का पन्ना-पन्ना बिखर गया
राजकीयकृत प्राथमिक विद्यालय शेखपुर की प्रधानाध्यापिका उषा शाही ने बताया कि प्रारंभिक कक्षा में हिंदी, गणित व अंगरेजी पढ़ाया जाता है. गणित व अंग्रेजी की किताबें तो कुछ सुरक्षित बची हैं, लेकिन हिंदी की अधिकतर किताबों का पन्ना-पन्ना बिखर गया है. बताया कि हिंदी की किताबें बच्चे ज्यादा पढ़ते हैं, इसके चलते अधिकतर किताबें फट चुकी हैं.
नहीं मिल रही प्रखंडों से रिपोर्ट : वार्षिक मूल्यांकन के दौरान ही बच्चों से किताब जमा कराने का निर्देश दिया गया था. सभी प्रधानाध्यापकों से कहा गया था कि किताब वापस करनेवाले बच्चों के साथ ही उन बच्चों की भी लिस्ट तैयार की जाये, जिन्हें किताब दी जा रही हैं. 29 मार्च को वार्षिक मूल्यांकन समाप्त हुआ, जिसके एक सप्ताह के अंदर सभी बीइओ को यह रिपोर्ट बीइपी कार्यालय में देनी थी. विभागीय लापरवाही का आलम यह है कि महीना भर गुजर जाने के बाद भी नगर सहित 14 प्रखंडों की रिपोर्ट नहीं मिली है. मुशहरी, पारू व बंदरा प्रखंड से ही केवल रिपोर्ट जमा की गयी है.
छह महीने से चल रही विभागीय कवायद : नि:शुल्क पाठ्यपुस्तक को लेकर विभागीय कवायद पिछले छह महीने से चल रही है. पिछले साल दिसंबर में ही बिहार शिक्षा परियोजना कार्यालय से कक्षा एक से आठ तक नामांकित बच्चों के आधार पर राज्य कार्यालय को डिमांड भेज दी गयी है. इसके बाद राज्य कार्यालय से प्रक्रिया शुरू होने की बात कही जा रही है, जबकि पिछले महीने ही स्पष्ट कर दिया गया कि किताब मिलने में इस बार भी देर होगी.
एक तरफ प्रारंभिक स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए रोज नये प्रयोग हो रहे, वहीं सरकारी स्कूलों में बच्चों को किताब ही नहीं मिल रही. प्रारंभिक स्कूल के बच्चों के अंदर तरह-तरह से पढ़ाई के प्रति इंटरेस्ट बढ़ाना होता है. इसमें किताबें बड़ा महत्व रखती हैं. इसलिए प्रारंभिक स्कूल की किताबों को रंग-बिरंगा भी बनाया जाता है. लेकिन विभाग की लापरवाही से बच्चों को पुरानी किताबें दी जा रही हैं. ऐसे में किताबों के प्रति उनकी रुचि किस तरह बढ़ेगी.
वंशीधर ब्रजवासी, प्रदेश अध्यक्ष, प्रारंभिक शिक्षक संघ
नये सत्र के लिए नि:शुल्क पाठ्य पुस्तक मिलने में विलंब होगा, जिसके चलते पुराने सत्र की किताबें जमा कराने का निर्देश दिया गया था. पिछले साल की किताब के सहारे ही अभी बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. प्रारंभिक विद्यालयों में कक्षावार नामांकन के अनुसार पहले ही बिहार शिक्षा परियोजना परिषद को जिले से डिमांड भेज दी गयी है. नयी किताबें मिलते ही बांट दिया जायेगा.
मो असगर अली, डीपीओ, प्रारंभिक शिक्षा व सर्व शिक्षा अभियान
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