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श्रीमद्भाागवत कथा का समापन

गायघाट : श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा ने बचपन में एक बार छल से उनके हिस्से का खाना खा गये. इस हकमारी के कारण वे विपन्न हो गये. श्रीमद्भागवत कथा का यह प्रसंग संदेश देता है कि दूसरे का हक कभी नहीं खाना चाहिए. दूसरे के हिस्से की खाने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता. मिल-बांटकर […]

गायघाट : श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा ने बचपन में एक बार छल से उनके हिस्से का खाना खा गये. इस हकमारी के कारण वे विपन्न हो गये. श्रीमद्भागवत कथा का यह प्रसंग संदेश देता है कि दूसरे का हक कभी नहीं खाना चाहिए. दूसरे के हिस्से की खाने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता. मिल-बांटकर खाने से ही सुखी जीवन प्राप्त होगा.

केवटसा गांव के ब्रह्मस्थान में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन बाल व्यास ओमप्रकाश शास्त्री ने यह कहा.
भारी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं से उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत भक्तिदायिनी व मुक्तिदायिनी दोनों है. इसके कथा का श्रवण जीवन के हर पल में सहायक होता है. कथावाचक ने कहा कि हृदय में अभिमान रूपी कंस का शमन सत्य व धर्म के सहारे किया जा सकता है. इस अवसर पर रुक्मिणी-कृष्ण विवाह की झांकी की प्रस्तुति भी की गई. सुमधुर भजनों से श्रोता विभोर होते रहे.

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