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”मैं राजकुमार शुक्ल हूं” में चंपारण सत्याग्रह की दास्तान

लेजर शो एनीमेशन के जरिये राजकुमार शुक्ल के नजरिये से दिखायी गयी निलहों के अत्याचार की कहानी मुजफ्फरपुर : पतला-दुबला चंपारण के एक किसान ने चंपारण के किसानों की स्थिति बदल दी. इस शख्स ने गांधी को यहां नहीं लाया होता तो न जाने कितने वर्षों तक किसानों को नीलहें जमींदारों के उत्पीड़न का शिकार […]

लेजर शो एनीमेशन के जरिये राजकुमार शुक्ल के नजरिये से दिखायी गयी निलहों के अत्याचार की कहानी

मुजफ्फरपुर : पतला-दुबला चंपारण के एक किसान ने चंपारण के किसानों की स्थिति बदल दी. इस शख्स ने गांधी को यहां नहीं लाया होता तो न जाने कितने वर्षों तक किसानों को नीलहें जमींदारों के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता. इस शख्स का नाम था पं.राजकुमार शुक्ल. इन्होंने गांधी को यहां लाकर चंपारण के किसानों की स्थिति बदल दी. चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के मौके पर मंगलवार को एलएस कॉलेज ग्राउंड में पं. राजकुमार शुक्ल के गांधी को चंपारण लाने के प्रयासों पर केंद्रित लेजर शो मैं हूं
राजकुमार शुक्ल भी लोगों ने काफी पसंद किया. सीएम सहित यहां आये मंत्रियों व आलाधिकारियों ने मंच से नीचे उतर कर लेजर शो का आनंद लिया. लाइट एनीमेशन के जरिये प्राचीन भारत टूरिज्म प्राइवेट लिमिटेड ने बड़े रोचक ढंग से पं. शुक्ल के प्रयासों को दिखलाया. चंपारण के इतिहास से शुरू हुआ शो में बताया गया कि 1765 में शाह आलम ने हार के बाद चंपारण को अंग्रेजों के हवाले कर दिया. अंग्रेज धीरे-धीरे बेतिया महाराज से जमीन ठेके लेकर कोठियां बनाते गये.
बिहार में 1782 में शुरू हुई नील की खेती. शो में बताया गया कि बिहार में नील की खेती कमिश्नर ने 1782 में शुरू करायी. यहां 1785 तक 70 कोठियां स्स्थापित हो गयी थी. गरीब किसानों को नील की खेती करने के लिए कठोर नियम बनाये गये. तिनकोठिया, ताबानी सहित कई कर वसूले जाने लगे. किसानों की मृत्यु पर भी परिजनों से मृत्यु कर लिया जाने लगा.
यहां किसानों ने सबसे पहली लड़ाई 1907 में लड़ी.उस वक्त संत राउत, डुममराव जी व राघोरमण जैसे अनेक लोगाें ने इसके खिलाफ लड़ाइयां लड़ी. जिसके कारण 250 लोगाें को जेल हुई. इस दौरान जर्मनी में सिंथेटिक नील बन रहा था, लेकिन वह बाजार तक नहीं पहुंच रहा था. ऐसे में यहां के नीलहे जमींदारों ने नील की खेती से काफी कमाया.
पं. शुक्ल से नहीं देखी गयी पीड़ा. पं. शुक्ल से किसानों की पीड़ा नहीं देखी गयी. उन्होंनें गांधी जी से लखनऊ कान्फ्रेंस में यह बात उठाने को कही. कान्फ्रेंस में यह मांग उठी कि सरकारी व गैर सरकारी लोगाें की कमेटी बनायी जाये. पं. शुक्ल ने गांधी जी से बिहार आने को कहा. जब गांधी जी लखनऊ से कानपुर पहुंचे तो राजकुमार वहां भी पहुंच गये. गांधी जी ने पं. शुक्ल को बताया कि वे तीन अप्रैल, 1917 को कोलकाता पहुंच रहे हैं. पं. राजकुमार शुक्ल कोलकाता गये व गांधी जी को साथ लेकर मुजफ्फरपुर पहुंचे. यहां 11 को मि. विल्सन व 13 अप्रैल को कमिश्नर मॉरसेट से चंपारण के संदर्भ में बात की.
कमिश्नर ने भी गांधी को वापस जाने को कहा. इसके बाद गांधी जी ने संघर्ष की कमान अपने हाथों संभाल ली. इस कारण 18 अप्रैल को गांधी जी को मोतिहारी कोर्ट में पेश होना पड़ा. उस वक्त गांधी जी का बयान सुनने के बाद मजिस्ट्रेट ने कहा कि इसका फैसला 21 अप्रैल को होगा. उसने गांधी जी को 100 रुपये में मुचलके पर छोड़ने का आदेश दिया. लेकिन गांधी जी ने कहा कि उनके पास रुपये नहीं है तो मजिस्ट्रेट ने अपने पास से बांड भर कर गांधी
जी को जमानत दी. 20 अप्रैल की शाम उन पर से मुकदमा हटा लिया गया. उसके बाद से गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह की कमान अपने हाथ में संभाल ली.

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